Purvottar Lok: Manipur शांत परन्तु दिल्ली में हो रहा राजनीतिक हंगामा, Meghalaya CM Office पर हमला, Arunachal भूकंप से दहला

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ANI

केंद्र की मोदी सरकार ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने हिंसाग्रस्त मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र किए जाने संबंधी घटना की जांच सीबीआई को सौंप दी है और कहा कि सरकार का रुख ‘‘महिलाओं के खिलाफ किसी भी अपराध को बिल्कुल बर्दाश्त न करने का’’ है।

मणिपुर की हिंसा को लेकर देश में राजनीतिक बवाल जारी है। एक ओर प्रधानमंत्री मणिपुर के हालात की पल-पल की अपडेट ले रहे हैं तो दूसरी ओर गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर के दोनों प्रमुख समुदायों के लोगों से मुलाकात की है। साथ ही केंद्र सरकार ने मणिपुर हिंसा और महिलाओं के अपमान से जुड़ी कुछ घटनाओं की जांच सीबीआई को सौंप दी है। इसके अलावा केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय राज्य सरकार के लगातार संपर्क में हैं और शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। माना जा रहा है कि अगले सप्ताह जब लोकसभा में विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होगी तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर की स्थिति पर भी विस्तृत जानकारी देंगे। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है इसलिए केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया है कि उसने अब तक मणिपुर में क्या कदम उठाये हैं। साथ ही विपक्षी गठबंधन इंडिया के सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल भी मणिपुर रवाना हुआ है जहां वह हिंसा प्रभावितों से मुलाकात कर उनकी समस्याएं जानेगा। हम आपको याद दिला दें कि कुछ समय पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी मणिपुर के हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा किया था। वैसे, मणिपुर हिंसा को लेकर मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह ने तो पुरजोर मांग के बावजूद अपना इस्तीफा अब तक नहीं सौंपा है लेकिन राज्य के हालात को लेकर विपक्ष ने केंद्र सरकार को जरूर घेर लिया है। लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है ताकि चर्चा के दौरान हिंसा और दुर्व्यवहार से जुड़े मामलों को लेकर सरकार को घेरा जा सके। देखना होगा कि केंद्र सरकार कैसे अपना बचाव करती है। इसके अलावा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की बात करें तो असम बाढ़ से प्रभावित है। केंद्र के एक दल ने राज्य में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा कर नुकसान का जायजा लिया है। त्रिपुरा से टिपरा मोथा के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों से नयी दिल्ली में मुलाकात कर अपनी मांगें रखीं। इसके अलावा, मेघालय में मुख्यमंत्री के कार्यालय पर हुए हमले से राज्य में सनसनी फैल गयी। वहीं, नगालैंड से पहली महिला राज्यसभा सदस्य एस फान्गनॉन कोन्याक ने इस सप्ताह सदन में पीठासीन उपाध्यक्ष के रूप में उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन कर इतिहास रच दिया। इसके अलावा, अरुणाचल प्रदेश शुक्रवार को भूकंप के झटकों से दहल गया। साथ ही अरुणाचल प्रदेश के खिलाड़ियों को चीन ने स्टेपल वीजा जारी किया तो भारत ने अपनी टीम को ही वापस बुला लिया। बहरहाल, आइये डालते हैं एक नजर पूर्वोत्तर भारत के हर राज्य से जुड़ी बड़ी खबर पर, सबसे पहले बात करते हैं मणिपुर की।

मणिपुर

केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि उसने हिंसाग्रस्त मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र किए जाने संबंधी घटना की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी है और कहा कि सरकार का रुख ‘‘महिलाओं के खिलाफ किसी भी अपराध को बिल्कुल बर्दाश्त न करने का’’ है। गृह मंत्रालय ने अपने सचिव अजय कुमार भल्ला के जरिए दाखिल हलफनामे में शीर्ष न्यायालय से इस मामले की सुनवाई मणिपुर से बाहर स्थानांतरित करने का भी अनुरोध किया ताकि मुकदमे की सुनवाई समयबद्ध तरीके से पूरी हो सके। हम आपको बता दें कि मणिपुर के कांगपोकपी जिले में चार मई को दो महिलाओं को भीड़ द्वारा निर्वस्त्र कर उन्हें घुमाए जाने की घटना का पता 19 जुलाई को सामने आए एक वीडियो के जरिए चला। शीर्ष न्यायालय ने 20 जुलाई को घटना पर संज्ञान लिया था और कहा था कि वह वीडियो से ‘‘बहुत व्यथित’’ है और हिंसा को अंजाम देने के हथियार के रूप में महिलाओं का इस्तेमाल ‘‘किसी भी संवैधानिक लोकतंत्र में पूरी तरह अस्वीकार्य है।’’

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र तथा मणिपुर सरकार को तत्काल उपचारात्मक तथा एहतियाती कदम उठाने तथा उन कदमों की जानकारी उसे देने का निर्देश दिया था। केंद्र ने अपना जवाब देते हुए कहा, ‘‘मणिपुर सरकार ने 26 जुलाई 2023 को लिखे एक पत्र में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के सचिव से इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की सिफारिश की थी जिसकी गृह मंत्रालय ने 27 जुलाई को लिखे पत्र द्वारा सचिव को अनुशंसा कर दी है। अत: जांच सीबीआई को सौंपी जाएगी।’’ हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र सरकार का मानना है कि जांच जल्द से जल्द पूरी होनी चाहिए और मुकदमे की सुनवाई समयबद्ध तरीके से पूरी हो और यह सुनवाई ‘‘मणिपुर के बाहर होनी चाहिए।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘अत: केंद्र सरकार एक विशेष अनुरोध करती है कि यह अदालत अपराध के मुकदमे समेत पूरे मामले को मणिपुर के बाहर किसी भी राज्य में स्थानांतरित करने का आदेश दें।’’ हलफनामे में कहा गया है, ‘‘मुकदमे की सुनवाई किसी भी राज्य के बाहर स्थानांतरित करने का अधिकार केवल इस अदालत को है और केंद्र सीबीआई द्वारा आरोपपत्र दाखिल करने की तारीख से लेकर छह महीने की सीमा के भीतर मुकदमे की सुनवाई पूरी करने का निर्देश देने का इस अदालत से अनुरोध कर रहा है।’’

इसमें कहा गया है कि मणिपुर सरकार ने बताया है कि सात मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है और वे पुलिस हिरासत में हैं। केंद्र ने बताया कि पहचाने गए दोषियों को गिरफ्तार करने के लिए विभिन्न स्थानों पर विशेष पुलिस दल गठित किए गए और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रैंक के अधिकारी को अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की निगरानी में मामले की जांच करने का जिम्मा सौंपा गया है। उसने कहा, ‘‘केंद्र सरकार का महिलाओं के खिलाफ किसी भी अपराध को बिल्कुल न बर्दाश्त करने का रवैया है। केंद्र सरकार इसके जैसे अपराधों को जघन्य मानती है जिनसे न केवल गंभीरता से निपटा जाना चाहिए बल्कि ऐसे न्याय होते दिखना चाहिए कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के संबंध में देशभर में इसका एक निवारक प्रभाव पड़े।’’ उपचारात्मक कदमों पर गृह मंत्रालय के सचिव ने बताया कि मणिपुर सरकार ने ‘‘विभिन्न राहत शिवरों में मानसिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के लिए जिला मनोवैज्ञानिक सहयोग दलों’’ का गठन किया है। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी घटनाओं के दोबारा होने से रोकने के लिए पुलिस थाना प्रभारी द्वारा ऐसे सभी मामलों को पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को बताना अनिवार्य कर दिया गया है।’’ हलफनामे में कहा गया है कि डीजीपी स्तर के अधिकारी की सीधी निगरानी में एसपी पद का वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इन जांच पर नजर रखेगा। उच्चतम न्यायालय की पीठ मणिपुर में जातीय हिंसा से जुड़ी याचिकाओं पर 28 जुलाई को सुनवाई करेगी।

इसके अलावा, मणिपुर सरकार ने मंगलवार को ब्रॉडबैंड इंटरनेट पर लगे प्रतिबंध को सशर्त आंशिक रूप से हटाने की घोषणा की। हालांकि, मोबाइल इंटरनेट पर लगा प्रतिबंध जारी रहेगा। राज्य के गृह विभाग ने एक अधिसूचना में यह जानकारी दी। मणिपुर में पिछले करीब तीन महीने से जारी जातीय हिंसा के कारण इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। गृह विभाग ने कहा कि कई नियमों और शर्तों के साथ ही ब्रॉडबैंड इंटरनेट पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया है। राज्य के गृह विभाग के मुताबिक इंटरनेट कनेक्शन केवल स्टेटिक आईपी के माध्यम से उपलब्ध होगा और संबंधित ग्राहक अस्थायी तौर पर दी गयी अनुमति वाले कनेक्शन के अलावा कोई अन्य कनेक्शन स्वीकार नहीं करेगा। (इस शर्त का अनुपालन न करने के लिए टीएसपी/आईएसपी को जिम्मेदार ठहराया जाएगा)। संबंधित ग्राहक को किसी भी कीमत की अदायगी पर किसी भी राउटर और सिस्टम से वाईफ़ाई हॉटस्पॉट की अनुमति नहीं दी जाएगी। गृह विभाग की अधिसूचना में कहा गया है कि स्थानीय स्तर पर सोशल मीडिया वेबसाइटों और वीपीएन को ब्लॉक करना ग्राहकों द्वारा सुनिश्चित किया जाना चाहिए, और लॉग-इन आईडी तथा पासवर्ड को दैनिक आधार पर बदलना होगा। इसमें कहा गया है कि किसी भी उल्लंघन के सिलसिले में ग्राहकों को कानून के अनुसार दंडित किया जाएगा। गृह विभाग ने बताया कि सरकार ने लोगों की पीड़ा पर विचार किया है, क्योंकि इंटरनेट पर प्रतिबंध के कारण कार्यालय और संस्थान प्रभावित हुए हैं और लोग घर से काम कर रहे हैं, इसके अलावा मोबाइल रिचार्ज, एलपीजी सिलेंडर बुकिंग, बिजली बिल का भुगतान और अन्य ऑनलाइन सेवाएं भी प्रभावित हो रही हैं। हालांकि, मोबाइल इंटरनेट सेवा पर लगा प्रतिबंध जारी रहेगा क्योंकि विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से दुष्प्रचार और अफवाहों के फैलने की आशंका अब भी बनी हुई है। भीड़ को संगठित करने के लिए बड़ी संख्या में एसएमएस भेजे जाने की आशंका भी बनी हुई है, जिसके परिणामस्वरूप जानमाल या संपत्ति का नुकसान हो सकता है। पुलिस महानिदेशक राजीव सिंह ने सोमवार को बताया था कि राज्य में अब भी घरों और परिसरों में हिंसा, हमले और आगजनी की घटनाओं की खबरें हैं, जिसमें गोलीबारी भी शामिल है। मणिपुर में दो आदिवासी महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने और उनके साथ छेड़छाड़ करने का एक वीडियो सामने आने के बाद राज्य में तनाव और बढ़ गया है। गौरतलब है कि मणिपुर मई की शुरुआत से ही जातीय संघर्ष की चपेट में है। तीन मई को वहां जातीय हिंसा शुरू हुई थी जिसमें 160 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है जबकि कई अन्य घायल हुए हैं।

इसके अलावा, केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में कहा कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने उन उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्र बदलने का विकल्प दिया था जिन्होंने विभिन्न परीक्षाओं के लिए इंफाल को चुना था। सिंह ने एक सवाल के लिखित जवाब में उच्च सदन को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि परीक्षार्थियों को यह विकल्प 28 मई को आयोजित सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा, 2023 एवं दो जुलाई को आयोजित कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) परीक्षा में प्रदान किया गया था। ईपीएफओ में लेखा अधिकारी/प्रवर्तन अधिकारी और सहायक भविष्य निधि आयुक्त के लिए भर्ती परीक्षा दो जुलाई को आयोजित की गई थी। उन्होंने कहा कि यूपीएससी ने इंफाल को परीक्षा केंद्र चुनने वाले अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र बदलने का विकल्प दिया था और उन्हें आइजोल, दिल्ली, दिसपुर, जोरहाट, कोहिमा, कोलकाता और शिलांग में से किसी एक केंद्र पर परीक्षा में शामिल होने को कहा था। कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री सिंह ने कहा कि कर्मचारी चयन आयोग ने मणिपुर में विभिन्न परीक्षाओं के आयोजन के लिए तीन केन्द्र-इंफाल, चुराचांदपुर और उखरुल बनाए हैं। तथापि, मल्टी टास्किंग (गैर- तकनीकी) स्टाफ और हवलदार (सीबीआईसी एवं सीबीएन) परीक्षा, 2022 के लिए मणिपुर के उम्मीदवारों को उत्तर-पूर्व में आइजोल, कोहिमा जैसे विकल्प प्रदान किए गए थे। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, उम्मीदवारों को भारत में कहीं भी उनकी सुविधा के अनुसार केन्द्र बदलने का विकल्प भी दिया गया था।

इसके अलावा, मणिपुर के बिष्णुपुर जिले में उग्रवादियों के साथ गोलीबारी में सेना के एक जवान समेत दो सुरक्षाकर्मी घायल हो गये। अधिकारियों ने बताया कि राज्य की राजधानी इंफाल से लगभग 50 किलोमीटर दूर फौबाकचाओ इखाई इलाके में बृहस्पतिवार को सुबह गोलीबारी शुरू हुई और विद्रोहियों के भागने तक देर रात लगभग 15 घंटे गोलीबारी का दौर जारी रहा। गोलीबारी के दौरान तेरा खोंगसांगबी के पास एक मकान में आग लगा दी गई। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि दोनों पक्षों में हो रही गोलीबारी के बीच भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिसकर्मियों को हस्तक्षेप करना पड़ा। मणिपुर पुलिस के घायल कमांडो की पहचान 40 वर्षीय नामीराकपम इबोम्चा के रूप में हुई है। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि मोर्टार फटने की वजह से इबोम्चा के दाहिने पैर और दाहिने कान में छर्रे लगे हैं। उन्होंने बताया कि सेना का जवान कुमाऊं रेजिमेंट का है, लेकिन अभी तक उसकी पहचान नहीं हो पाई है। उन्होंने कहा, ‘‘वहां उड़ रहे ड्रोन में उग्रवादियों की अपने कुछ साथियों को ले जाते हुए कुछ तस्वीरें आई हैं। यह अभी स्पष्ट नहीं है कि कार्रवाई में वे घायल हुए या मारे गए।’’ 

इसके अलावा, मणिपुर के कंगपोकपी जिले में कुकी-जो समुदाय के लोगों ने प्रदर्शन कर जनजाति वर्ग के लिए एक अलग प्रशासन की मांग की। उन्होंने यह भी मांग की कि केंद्र उन कुकी समूहों के साथ बातचीत करे जिन्होंने सरकार के साथ अभियान निलंबन संबंधी समझौते (एसओओ) पर हस्ताक्षर किए थे। ट्राइबल यूनिटी सदर हिल्स के बैनर तले प्रदर्शनकारियों ने कंगपोकपी और इंफाल पश्चिम जिलों की सीमा पर स्थित एक गांव गमगीफई में धरना दिया। एक प्रदर्शनकारी ने बुधवार को कहा, “हम शांतिपूर्वक धरना दे रहे हैं। हम चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए अलग प्रशासन की हमारी मांग को स्वीकार करे।'' मणिपुर में चिन-कुकी-मिजो-जोमी समूह के दस जनजातीय विधायकों ने राज्य में मेइती और कुकी जनजाति के बीच हिंसक झड़पों के मद्देनजर केंद्र से उनके समुदाय के लिए अलग प्रशासन बनाने का आग्रह किया है। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया है। कुकी-जो प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वे यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (यूपीएफ) और कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (केएनओ) का समर्थन करते हैं, क्योंकि ऐसी चर्चा है कि केंद्र उन दो समूहों के साथ बातचीत करेगा जिन्होंने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। एसओओ समझौते पर केंद्र, मणिपुर सरकार के साथ ही दो कुकी उग्रवादी संगठनों- केएनओ और यूपीएफ ने हस्ताक्षर किए थे। समझौते पर पहली बार 2008 में हस्ताक्षर किए गए थे और समय-समय पर इसे बढ़ाया जाता रहा है।

इसके अलावा, मणिपुर सरकार ने बृहस्पतिवार को घोषणा की कि वह अगस्त के दूसरे या तीसरे सप्ताह में विधानसभा का विशेष सत्र आहूत करेगी। सरकारी प्रवक्ता तथा सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री सपाम राजन ने बताया कि सरकार इसके लिए प्रयास कर रही है। विभिन्न वर्गों से राज्य की वर्तमान स्थिति पर चर्चा के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाये जाने की मांग उठ रही है। राजन ने इन खबरों का भी खंडन किया कि राज्य सरकार ने भाजपा विधायक वुंगजागिन वाल्टे के इलाज की परवाह नहीं की। वह मई में जातीय संघर्ष शुरू होने के प्रारंभिक दिनों में हमले में घायल हो गये थे। 

इसके अलावा, सेना की 3 कोर की कमान के तहत काम कर रहे असम राइफल्स के लिये मणिपुर में संघर्षरत दो जातीय समूहों के बीच शांति बनाए रखने का काम मौजूदा हालात में कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। बल के अधिकारियों का कहना है कि देश के सबसे पुराने अर्द्धसैनिक बल को अकसर विरोधी भीड़ और कभी-कभी असहयोगात्मक राज्य मशीनरी का भी सामना करना पड़ता है। ‘पूर्वोत्तर के प्रहरी’ और ‘पहाड़ी लोगों के मित्र’ के रूप में पहचाने जाने वाले अधिकारी और जवान तीन मई को बहुसंख्यक मेइती और पहाड़ी जनजाति कुकी के बीच जातीय संघर्ष के बाद से मनोवैज्ञानिक लड़ाई लड़ रहे हैं। इन जातीय झड़पों में अब तक 160 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। पूरे मणिपुर में मौजूदगी वाले असम राइफल्स के साथ सेना व अन्य अर्द्धसैनिक बलों को प्रदेश में शांति बनाए रखने अथवा दोनों समुदायों के नाराज लोगों को समझाने-बुझाने का काम सौंपा गया है। नाम न उजागर करने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘‘लेकिन अंतत: हमें हर तरफ से आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।’’ हिंसा भड़कने के बाद से घाटी और पहाड़ी इलाकों में स्थिति की निगरानी करने वाले अधिकारी ने कहा, ‘‘हममें से कोई भी 96 घंटों तक नहीं सोया और हमने विस्थापित लोगों के लिए अपने शिविर खोल दिए हैं, चाहे वह मेइती हों या कुकी। दंगों में फंसा हर व्यक्ति कोई सुरक्षित ठिकाना जानता था तो वह था असम राइफल या सेना का शिविर।’’ अधिकारी ने बताया, ‘‘लेकिन आज दोनों समुदाय हम पर दूसरे की मदद करने का आरोप लगा रहे हैं, जबकि हमारा एकमात्र काम यह सुनिश्चित करना है कि शांति बनी रहे और मानव जीवन और गरिमा का सम्मान किया जाए।’’ हाल ही में 31 विधायकों ने राज्य में एकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता का हवाला देते हुए असम राइफल्स की 9वीं, 22वीं और 37वीं बटालियन को अन्य केंद्रीय सुरक्षा बलों से बदलने की मांग की थी। प्रदेश के चुराचांदपुर और बिष्णुपुर जिलों की सीमा पर नौ असम राइफल्स के जवानों को तैनात किया गया है, 22 असम राइफल्स को कांगपोकपी क्षेत्र में और 37 असम राइफल्स को सुगनू क्षेत्रों में तैनात किया गया है। हालांकि, विधायकों की इस मांग ने इन इकाइयों के अधिकारियों और जवानों को हैरान कर दिया है क्योंकि हिंसा भड़कने के बाद बल के जवानों ने कई लोगों की जान बचायी थी । उसके बाद, ये इकाइयां ‘बफ़र ज़ोन’, जहां दोनों जातीय समूहों के गांव आसपास हैं, में शांति स्थापना में मदद कर रही हैं।

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रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण, इन इकाइयों के संचालन के बारे में बताते हुए, अधिकारी ने बताया कि तीन मई से इकाई के जवानों ने दो पक्षों के संघर्ष के कारण अपने-अपने घरों को छोड़कर भागने वाले अनेक लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अधिकारियों को लगता है कि कुछ लोग प्रत्यक्षदर्शी की विश्वसनीयता को कमतर करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं, और इस मामले में, असम राइफल्स को इस बात का अंदाजा है कि चीजें कहां सही या गलत हुई हैं। एक अन्य अधिकारी ने उदाहरण के तौर पर एक छोटे से शहर सुगनू में हुयी एक घटना का जिक्र किया, जहां भारतीय सेना के कर्नल रैंक के एक अधिकारी के साथ मणिपुर पुलिस के कर्मियों ने मारपीट की थी। उन्होंने कहा कि यह पूरी घटना कैमरे में कैद हो गई, जिसमें एक कनिष्ठ पुलिस अधिकारी ने सेना अधिकारी पर गुस्से में अपनी राइफल तान दी, जो उनके शिविर के सामने बदमाशों द्वारा पूरी सड़क खोदने की शिकायत करने आया था। सड़कों की खुदाई यह सुनिश्चित करने के लिए की गई थी कि अगर आसपास के क्षेत्र में सशस्त्र झड़प होती है, जहां संघर्षरत समुदायों के दोनों पक्ष रहते हैं, तो असम राइफल्स के वाहनों को मौके पर जाने से रोका जा सके।

अधिकारियों ने कहा कि तीन मई से पहले भी, सेना और असम राइफल्स ने कम समय में सूचना पर किसी भी आकस्मिक स्थिति का जवाब देने के लिए 17 टुकड़ियों को तैयार रखा था । असम राइफल्स और सेना की एक टुकड़ी में 40 से 50 जवान होते हैं। उन्होंने कहा कि असम राइफल्स की मौजूदगी और स्थिति के समय से आंकलन के फलस्वरूप सेना और असम राइफल्स को पूरे मणिपुर में पहले कुछ घंटों के भीतर लगभग 8,000 लोगों को बचाने में मदद मिली, खास तौर से बहुसंख्यक समुदाय से। एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि संघर्ष के शुरूआती दिनों में ही विस्थापित लोगों की संख्या बढ़ कर 24,000 हो गई। यह असम राइफल्स और पड़ोसी असम एवं अन्य राज्यों से सेना की तीव्र आमद का परिणाम था कि पहले पांच दिनों के भीतर 128 टुकड़ियां तैनात की गयी जो अब बढ़ कर 140 हो गयी है। अधिकारियों ने बताया कि चुराचांदपुर में बहुसंख्यक समुदाय गंभीर खतरों का सामना कर रहा है, 4,600 से अधिक नागरिकों को खुमुजाम्बा, हमार वेंग, सैकोट और मंटोप लिकाई से सुरक्षित बचाया गया था। सक्रियता के साथ तैनाती ने इम्फाल के गैर-अधिसूचित क्षेत्रों के साथ-साथ तेगनौपाल और चुराचांदपुर जिलों के गांवों में भी तेजी से स्थिति को सामान्य बनाने में मदद की जबकि आस-पास असम राइफल्स का कोई ठिकाना नहीं है ।

असम

असम से आई खबरों की बात करें तो आपको बता दें कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन बोरा द्वारा गोलाघाट तिहरे हत्याकांड पर की गई टिप्पणियों के लिए उनकी आलोचना करते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने बृहस्पतिवार को कहा कि अगर धार्मिक भावनाओं को आहत करने को लेकर कोई उनके खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज कराता है तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। गोलाघाट जिले में सोमवार को 25 वर्षीय एक व्यक्ति ने पारिवारिक विवाद के कारण अपनी पत्नी और सास-ससुर की हत्या कर दी तथा बाद में पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। शर्मा ने इसे ‘लव जिहाद’ का मामला बताया था क्योंकि पति मुस्लिम और पत्नी हिंदू थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बोरा ने कहा, ‘‘प्यार और जंग में सब कुछ जायज है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में कृष्ण का रुक्मणी को भगाकर ले जाने समेत कई कहानियां हैं और मुख्यमंत्री को आज के दौर में विभिन्न धर्मों तथा समुदायों के लोगों के बीच शादियों को लेकर विरोध का राग नहीं अलापना चाहिए।’’ शर्मा ने कहा कि ‘लव जिहाद’ और भगवान कृष्ण तथा रुक्मणी की प्रेम कहानी के बीच समानता बताना निंदनीय है। उन्होंने कहा, ‘‘हम लोगों को गिरफ्तार करने का कदम नहीं उठाना चाहते लेकिन अगर भगवान कृष्ण को विवाद में लाया जाएगा तो कई ‘सनातनी’ लोग पुलिस थानों में मामले दर्ज कराएंगे और फिर मैं पुलिस को कार्रवाई करने से कैसे रोक पाऊंगा?’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर कोई ऐसी टिप्पणियां करने वाले किसी व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज कराता है तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा।’’

शर्मा ने कहा कि इंसानों द्वारा की गयी ‘‘गलतियों’’ की तुलना भगवान से नहीं की जानी चाहिए ‘‘जैसे कि हम हजरत मुहम्मद तथा ईसा मसीह को किसी विवाद में नहीं लाते हैं।’’ मुख्यमंत्री ने दावा किया कि अगर हिंदू पुरुष अपने समुदाय की महिलाओं से शादी करते हैं और मुस्लिम पुरुष अपने समुदाय की महिलाओं से शादी करते हैं तो देश में शांति रहेगी। उन्होंने कहा, ‘‘हमने गोलाघाट में तिहरे हत्याकांड में ‘लव जिहाद’ का अंजाम देखा है। इसका शिकार हुईं लड़कियों की आत्महत्या की कई दुखद घटनाएं हुई हैं। मैं युवाओं से हमारे राज्य की शांति तथा सौहार्द के हित में ‘लक्ष्मण-रेखा’ पार नहीं करने की अपील करता हूं।''

इसके अलावा, असम में कांग्रेस सहित 12 विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों ने बृहस्पतिवार को राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया से 'ब्रह्मपुत्र वैली फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन लिमिटेड' (बीवीएफसीएल) की ‘संभावित बंदी’ को रोकने और नामरूप में इसकी प्रस्तावित चौथी इकाई के निर्माण को सुनिश्चित करने का आग्रह किया। एक ज्ञापन में राजनीतिक दलों ने कहा कि वे बीवीएफसीएल को बंद करने के केंद्र सरकार के विचार को लेकर आ रही हालिया खबरों से बहुत चिंतित हैं। बता दें कि बीवीएफसीएल नामरूप में पूर्वी भारत की एकमात्र यूरिया विनिर्माण कंपनी है और केंद्र सरकार ने नीति आयोग के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आने वाले अधिकारी समूह की सिफारिशों पर इसे बंद करने का फैसला किया है। ज्ञापन में कहा गया, 'कंपनी के ऐतिहासिक महत्व और राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था में योगदान को देखते हुए इस फैसले ने असम के लोगों में डर और अनिश्चितता को बढ़ा दिया है।' विपक्षी दलों ने ज्ञापन में कहा कि बीवीएफसीएल के भविष्य पर दो अलग-अलग केंद्रीय मंत्रियों के हालिया विरोधाभासी बयानों ने लोगों के मन में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने 25 जुलाई को एक वीडियो संदेश जारी किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार की बीवीएफएसीएल को बंद करने की कोई मंशा नहीं है बल्कि इस सुविधा केंद्र को आधुनिक बनाने की योजना है। हालांकि यह बयान 21 जुलाई को लोकसभा में कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई द्वारा पूछे गए एक सवाल पर रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री भगवंत खुबा द्वारा दिए गए जवाब से मेल नहीं खाता है। खुबा ने अपने जवाब में कहा था कि नीति आयोग ने आत्मनिर्भर भारत के लिए नई सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (पीएसई) नीति के हिस्से के रूप में बीवीएफसीएल को बंद करने की सिफारिश की है। ज्ञापन में कहा गया, 'इस घटनाक्रम के मद्देनजर हम आपसे (राज्यपाल से) भारत सरकार के समक्ष यह मुद्दा उठाने और कंपनी को बंद करने से संबंधित लोगों की चिंताओं और नामरूप-4 में प्रस्तावित चौथी इकाई के निर्माण को शुरू करने की पहल करने का आग्रह करते हैं।'

इसके अलावा, असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने बुधवार को दावा किया कि गोलाघाट जिले में तिहरे हत्याकांड की हालिया घटना ‘लव-जिहाद’ का परिणाम है। शर्मा ने कहा कि दोषी पर त्वरित अदालत में मुकदमा चलाने के लिए 15 दिन के भीतर आरोपपत्र दाखिल कर दिया जाएगा। गोलाघाट जिले में सोमवार को 25 वर्षीय एक व्यक्ति ने पारिवारिक विवाद के कारण अपनी पत्नी और उसके माता-पिता की हत्या कर दी तथा बाद में पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। शर्मा ने मृतकों के परिजनों से भी मुलाकात की और आश्वासन दिया कि मामले में गहन जांच की जाएगी और दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। मुख्यमंत्री ने पत्रकारों को बताया, ‘‘पीड़ित परिवार हिंदू है और आरोपी मुसलमान समुदाय से है। उसने पहले फेसबुक में खुद को हिंदू नाम वाला दिखाया....जब जोड़ा कोलकाता फरार हो गया, तब कहा जाता है कि महिला मादक पदार्थ लेने लगी थी।’’ उन्होंने कहा कि सूचना मिली की आरोपी मेकैनिकल इंजीनियर है और उसे नशे की लत है, साथ ही वह प्रतिबंधित पदार्थों की तस्करी में भी शामिल है। मुख्यमंत्री ने दावा किया, ''महिला को सूई के जरिए मादक पदार्थ दिया गया जिसके प्रभाव में आने के बाद उसे गर्भवती कर दिया गया। जब महिला आरोपी के घर पहुंची तो उसे प्रताड़ित किया गया जिसके बाद वह अपने माता-पिता के घर लौट आई।'' शर्मा ने कहा कि महिला ने उत्पीड़न संबंधी शिकायत दर्ज कराई थी जिसके आधार पर उसके पति को जेल भेजा गया था। उन्होंने कहा, ''मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसे मामले से चिंतित हूं जिसमें एक महिला को विवाह के लिए प्रेरित करने के वास्ते फेसबुक में धार्मिक पहचान छिपाई गई और अंत में ऐसे हालात पैदा किए गए कि वह लौट नहीं पाई। अगर वह लौट भी आती है तो समाज उसे स्वीकार नहीं करता।’’ ऐसे हालात में वह अपना धर्म परिवर्तित कर लेती है, सब कुछ कुर्बान कर देती है। मुख्यमंत्री ने कहा, ''पूरी जांच की जाएगी और मुझे उम्मीद है कि इसके बाद पूरी जानकारी सामने आ सकेगी....हम कड़ी कार्रवाई करेंगे और किसी को बख्शा नहीं जाएगा।’’ उन्होंने कहा कि पुलिस अगले 15 दिन में आरोपपत्र दाखिल करेगी। बाद में शर्मा ने ट्वीट किया कि असम सरकार यहां के समाज को अपराध मुक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है और संकल्प जताया कि ‘‘कोई अपराधी कानून से बच नहीं पाएगा’’। इस बीच, असम के पुलिस महानिदेशक ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि मामले की जांच के संबंध में निर्देशों का पालन किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘हम अपराधियों और उकसाने वालों के खिलाफ ठोस आरोपपत्र सुनिश्चित करेंगे। पिछली जांच में जोड़े गए विवाह प्रमाण पत्र की वैधता सहित पहले के मामलों की जांच में खामियों पर भी ध्यान दिया जाएगा।’’ शर्मा ने कहा, ‘‘मैं अपनी बेटियों से अनुरोध करूंगा कि इतनी आसानी से जान न दें। उन्हें फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया मंचों पर आसानी से लोगों से दोस्ती नहीं करनी चाहिए। किसी अलग धर्म के व्यक्ति से शादी करने से पहले गंभीरता से सोचने की जरूरत है।’’ मुख्यमंत्री ने कहा कि यह तिहरा हत्याकांड मामला साबित करता है कि ‘द केरल स्टोरी’ में बतायी कहानी झूठी नहीं है। असम के पुलिस महानिदेशक द्वारा दंपति का वैवाहिक प्रमाणपत्र साझा करने के बारे में शर्मा ने कहा कि यह किसी ‘काजी’ ने जारी किया है और इसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है क्योंकि यह किसी अदालत में पंजीकृत नहीं है। पुलिस के मुताबिक, आरोपी पहले भी अपनी पत्नी से मारपीट के मामले में जेल जा चुका है और रिहा होने के बाद वह घर आया और फिर से झगड़ा करने लगा। इसके बाद उसने अपनी पत्नी और सास-ससुर की हत्या कर दी। वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी अपने नौ महीने के बेटे के साथ गोलाघाट थाने पहुंचा और आत्मसमर्पण कर दिया।

इसके अलावा, उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग द्वारा असम की लोकसभा की 14 और विधानसभा की 126 सीट के लिए मौजूदा परिसीमन कवायद पर रोक लगाने से सोमवार को इंकार कर दिया और केंद्र तथा निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा-आठ(ए) की संवैधानिक वैधता पर गौर करने के लिए सहमत हुई, जो निर्वाचन आयोग को निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का अधिकार देती है। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इस चरण में जब परिसीमन शुरू हो गया है, 20 जून, 2023 को मसौदा प्रस्ताव जारी करने के मद्देनजर प्रक्रिया पर रोक लगाना उचित नहीं होगा। इसलिए संवैधानिक चुनौती बरकरार रखते हुए हम निर्वाचन आयोग को कोई और कदम उठाने से रोकने वाला आदेश जारी नहीं कर रहे हैं।’’ शीर्ष अदालत ने तीन याचिकाओं पर केंद्र और निर्वाचन आयोग से तीन सप्ताह में जवाब भी मांगा तथा कहा कि याचिकाकर्ता इसके बाद अगले दो सप्ताह में अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं। पीठ ने याचिकाएं दायर करने वाले राजनीतिक दलों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की इन दलीलों का संज्ञान लिया कि अब सभी राज्य इसका अनुसरण करेंगे और कदम उठायेंगे, क्योंकि अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड जैसे राज्यों के लिए परिसीमन की कवायद का रास्ता साफ हो गया है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम दिल्ली सेवा अध्यादेश मामले के तुरंत बाद इसे सूचीबद्ध करेंगे।’’ असम में नौ विपक्षी दलों- कांग्रेस, रायजोर दल, असम जातीय परिषद, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और आंचलिक गण मोर्चा के दस नेताओं ने हाल में परिसीमन प्रक्रिया को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की है। इस पहलू पर दो अन्य याचिकाएं भी शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित हैं। याचिकाकर्ताओं ने विशेष रूप से निर्वाचन आयोग द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली और 20 जून, 2023 को अधिसूचित उसके प्रस्तावों को चुनौती दी है। एक याचिका में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा आठ-ए को चुनौती दी गई, जिसके आधार पर निर्वाचन आयोग ने असम में परिसीमन प्रक्रिया संचालित करने की अपनी शक्ति का प्रयोग किया। सिब्बल ने कहा कि असम में परिसीमन की कवायद नियमों और परिसीमन अधिनियम के प्रावधानों को कुछ हद तक नजरंदाज करके की जा रही है, क्योंकि इस कानून में विधायकों-सांसदों की भी भागीदारी का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया उच्चतम न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले परिसीमन आयोग द्वारा की जानी है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की कवायद शीर्ष अदालत की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले आयोग द्वारा की गई थी। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘‘जिन कारणों से (असम एवं अन्य राज्यों में परिसीमन प्रक्रिया को) टाला गया था, वे अब मौजूद नहीं हैं और वह प्रक्रिया परिसीमन अधिनियम के तहत एक प्रतिनिधि प्रक्रिया होनी चाहिए। अब अधिसूचना में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग इस प्रक्रिया को पूरा करेगा।’’ सिब्बल ने पूछा कि कानून मंत्रालय को यह शक्ति कहां से मिलती है? केंद्र और राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसके धारक द्वारा शक्ति का प्रयोग सिर्फ इसलिए अमान्य नहीं हो जाता है कि इसका इस्तेमाल याचिकाकर्ता की दृष्टि से गलत तरीके से किया गया है। तीन-दिवसीय सार्वजनिक सुनवाई के बाद, निर्वाचन आयोग को 22 जुलाई को विभिन्न समूहों से 1,200 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें वे समूह भी शामिल थे, जिन्होंने असम के मसौदा परिसीमन प्रस्ताव पर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का नाम बदलने जैसे मामलों पर अलग-अलग विचार साझा किए थे। निर्वाचन आयोग ने 20 जून को परिसीमन के जारी मसौदे में असम में विधानसभा सीट की संख्या 126 और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 14 बनाए रखने का प्रस्ताव दिया।

इसके अलावा, असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने विपक्ष के गठबंधन पर तंज कसते हुए सोमवार को कहा कि उन्होंने अपने ‘ट्विटर परिचय’ में ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ कर दिया है जो कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में जाने की उनकी ‘‘यात्रा’’ को दर्शाता है। विपक्षी दलों ने बेंगलुरु में हुई बैठक के बाद 18 जुलाई को अपने गठबंधन का ऐलान किया था जिसका नाम ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलांयस’ (इंडिया) रखा था। इसके बाद शर्मा ने अपने ट्विटर पर दिए अपने परिचय से ‘चीफ मिनिस्टर ऑफ असम, इंडिया’ में बदलाव करते हुए ‘चीफ मिनिस्टर ऑफ असम, भारत’ कर दिया। उन्होंने ट्विटर पर कहा, “(ट्विटर पर) मेरे पिछले परिचय में मैंने असम, ‘इंडिया’ का उल्लेख किया था। मैं ‘इंडियन नेशनल कांग्रेस’ से ‘भारतीय जनता पार्टी’ में जाने की अपनी यात्रा को अपडेट करना भूल गया था। अब मैंने अपने परिचय में गर्व से बदलाव करते हुए इसे ‘असम, भारत’ कर दिया है। कांग्रेस के कुछ मित्र मुझसे पूछ रहे हैं कि मैंने अपने परिचय में बदलाव क्यों किया है। मुझे उम्मीद है कि यह स्पष्टीकरण उन्हें संतुष्ट कर देगा।” ट्विटर परिचय में बदलाव करते हुए शर्मा ने कहा कि सभ्यतागत संघर्ष ‘इंडिया’ और ‘भारत’ के इर्द-गिर्द केंद्रित है। उन्होंने कहा, “औपनिवेशिक विरासतों से खुद को मुक्त कराने के लिए संघर्ष करना चाहिए।'' शर्मा पर पलटवार करते हुए कांग्रेस ने कहा कि उन्हें यह प्रधानमंत्री को बताना चाहिए जिन्होंने सरकारी योजनाओं के ‘स्किल इंडिया’ और ‘स्टार्ट-अप इंडिया’ जैसे नाम दिए हैं। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि मोदी ने अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों से ‘टीम इंडिया’ के तौर पर साथ में काम करने के लिए कहा था तथा ‘वोट इंडिया’ संबंधी अपील भी की थी। कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा, “इंडिया भारत है और भारत इंडिया है।''

इसके अलावा, असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने सोमवार को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात की और राज्य में अहम अवसंरचना परियोजनाओं में तेज़ी लाने के लिए उनसे मदद का आग्रह किया। असम सरकार की ओर से जारी बयान के मुताबिक, शर्मा ने जिन परियोजनाओं को पूरा करने में गडकरी से मदद का आग्रह किया है, उनमें गोहपुर और नुमालीगढ़ के बीच पानी के नीचे सुरंग, गुवाहाटी रिंग रोड और काज़ीरंगा एलिवेटिड कॉरिडोर और पूर्वोत्तरी राज्य में विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्गों को चार लेन का करने की परियोजनाएं शामिल हैं। गडकरी ने शर्मा को आश्वस्त किया है कि उनका मंत्रालय असम में अहम अवसंरचना परियोजनाओं में तेज़ी लाने के लिए सहायता प्रदान करेगा। शर्मा ने बाद में ट्विटर पर कहा कि माननीय केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी से मुलाकात हमेशा ज्ञानवर्धक होती है। बहुत कुछ सीखने को मिलता है। मैंने उनसे असम में अहम अवसंरचना परियोजनाओं में तेज़ी लाने में मदद का आग्रह किया है जिसमें गोहपुर और नुमालीगढ़ के बीच पानी के नीचे सुरंग, गुवाहाटी रिंग रोड, काज़ीरंगा एलिवेटिड कॉरिडोर और राज्य में विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्गों को चार लेन का करने की परियोजनाएं शामिल हैं।

इसके अलावा, असम में पुलिस मुख्यालय के निकट एक इलाके में रविवार को मोटरसाइकिल सवार बदमाशों ने पुलिस उपमहानिरीक्षक (कानून-व्यवस्था) विवेक राज सिंह का मोबाइल फोन झपट लिया। अधिकारियों ने कहा कि घटना उलुबरी में मजार रोड पर हुई जब सिंह सुबह की सैर के लिए निकले थे। मजार रोड मध्य गुवाहाटी में पुलिस मुख्यालय से कुछ ही दूर स्थित है, जहां सिंह डीजीपी समेत अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठते हैं। भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के कई वरिष्ठ अधिकारियों के आधिकारिक आवास मजार रोड के किनारे स्थित हैं। गुवाहाटी पुलिस के सहायक आयुक्त (पानबाजार) पृथ्वी राजखोवा ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “यह घटना पलटनबाजार थाना क्षेत्र में हुई। हम इसकी जांच कर रहे हैं।” हालांकि, उन्होंने घटना का विवरण साझा करने से इंकार कर दिया। कई अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने इस घटना पर बोलने से इनकार कर दिया, जबकि कुछ ने स्वीकार किया कि यह पुलिस के लिए “शर्मिंदगी” की बात है। पलटनबाजार थाने के एक अधिकारी ने बताया कि वह मामले की जांच कर रहे हैं और मोबाइल झपटमारों को पकड़ने के लिए तलाशी अभियान शुरू कर दिया है।

त्रिपुरा

त्रिपुरा से आई खबरों की बात करें तो आपको बता दें कि आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग कर रही त्रिपुरा की मुख्य विपक्षी पार्टी टिपरा मोथा के एक प्रतिनिधिमंडल ने बृहस्पतिवार को नयी दिल्ली में गृह मंत्रालय के साथ एक ‘‘आधिकारिक’’ बैठक की। पार्टी प्रमुख प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने इसकी जानकारी दी। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले देबबर्मा ने कहा कि संवैधानिक समाधान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता सच है। देबबर्मा ने ट्वीट किया, ‘‘पांच महीने की ट्रोलिंग, दुर्व्यवहार, अपमान आज समाप्त हो गया क्योंकि हम आधिकारिक तौर पर अन्य संगठनों के साथ गृह मंत्रालय के अधिकारियों से मिले। मैं प्रार्थना करता हूं कि ईश्वर उन लोगों को कुछ सद्बुद्धि दे जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में मेरा मजाक उड़ाया है।’’ हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक में किन मुद्दों पर चर्चा हुई और उसके नतीजे क्या रहे। देबबर्मा ने कहा, ‘‘मैंने बहुत कष्ट सहा है, लेकिन हमारे लोगों के प्रति मेरा प्यार बना हुआ है और मेरी प्रतिबद्धता भी बनी हुई है।’’ इससे पहले, एक जुलाई को उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी और उनसे ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की मांग का ‘संवैधानिक समाधान’ लाने का आग्रह किया था।

इसके अलावा, इस वर्ष की शुरुआत में त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सत्ता में लाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले मुख्यमंत्री माणिक साहा का मानना है कि पड़ोसी राज्य मणिपुर में ‘‘समस्याओं का समय रहते समाधान हो जाएगा’’। विशेष साक्षात्कार में साहा ने यह भी दावा किया कि भाजपा राज्य के जनजातीय इलाके में अपनी पैठ बना रही है जो अब तक जनजातीय संगठन टिपरा मोथा का गढ़ था और उनका मानना है कि यह क्षेत्र ‘‘अपनी ही समस्याओं’’ से जूझ रहा है। मुख्यमंत्री साहा (70) ने कहा, ‘‘मणिपुर में पहले भी इस तरह की चीजें (समस्याएं) हुई हैं। मेरा मानना है कि समय रहते (जातीय हिंसा) मामले को सुलझा लिया जाएगा।’’ उनके अपने राज्य में जहां जनजातीय संघर्ष और हिंसा का लंबा इतिहास रहा है, वहां इस सप्ताह की शुरुआत में कुकी समुदाय एवं जमपुई पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले जनजातीय समुदाय के लोगों ने मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर प्रदर्शन किया था। टिपरा मोथा का गठन चार वर्ष पूर्व हुआ था। राज्य के पूर्व राजघराने के वंशज प्रोद्युत माणिक्य देबबर्मा और पूर्व उग्रवादी बिजॉय कुमार ह्रांगखॉल के नेतृत्व में टिपरा मोथा आदिवासी नियंत्रित ग्रेटर टिपरालैंड के साथ-साथ त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) के लिए अधिक धन और स्वायत्तता की मांग को लेकर त्रिपुरा सरकार और केंद्र से बातचीत कर रहे हैं। मणिपुर में पिछले तीन महीनों से जातीय हिंसा जारी रही है। मणिपुर हिंसा के विरोध में कुकी और अन्य जनजातीय समुदायों के लोगों ने इन जातीय हिंसा के समाधान के रूप में एक अलग प्रशासन या मणिपुर से वृहद स्वायत्तता की मांग की है। हालांकि अब तक त्रिपुरा में बातचीत में गतिरोध कायम है, जबकि मणिपुर में कुकी नेताओं के साथ बातचीत अभी शुरू नहीं हुई है। दंत चिकित्सक (सर्जन) से राजनेता बने साहा को लगता है कि इससे आगामी 2024 के संसदीय चुनावों में पार्टी की छवि खराब नहीं होगी। उन्होंने दावा किया कि टिपरा मोथा के भीतर असंतोष है और संकेत दिया कि इसका मतदाता आधार कम हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘उनकी (टिपरा मोथा) अपनी समस्याएं हैं। हम जनजातीय क्षेत्रों तक पहुंच बना रहे हैं... जनजातीय संगठनों के माध्यम से हमारी स्थिति मजबूत हुई है।’’ टिपरा मोथा ने 60 सदस्यीय त्रिपुरा विधानसभा में 13 सीटें जीती थीं और लगभग 20 प्रतिशत वोट हासिल किए थे और माना जाता है कि उसने त्रिकोणीय चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाई थी, जिसके परिणामस्वरूप गैर-जनजातीय बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में प्राप्त वोट प्रतिशत के कारण कई विपक्षी उम्मीदवारों की हार हुई थी। इससे भाजपा को इन क्षेत्रों में अपनी बढ़त सुनिश्चित करने में मदद मिली। टिपरा मोथा के ‘शांति’ समझौते के तहत भाजपा सरकार में शामिल होने की अटकलों के बीच साहा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘वर्तमान में हमारे पास ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।’’ हालांकि उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘राजनीति में सब कुछ संभव है।’’ साहा ने यह भी विश्वास जताया कि उनकी पार्टी राज्य से दोनों लोकसभा सीटें जीतेगी, जिनमें से एक जनजातीय समुदाय के लिए सुरक्षित है। उन्होंने कहा, ‘‘कोई समस्या नहीं होगी। पिछली बार हमने दोनों सीटें जीतीं... इस बार हम बड़े अंतर से जीतेंगे।’’ उन्होंने दावा किया, ‘‘प्रधानमंत्री की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति ने हमें कई बुनियादी ढांचा परियोजनाएं दी हैं।’’ भाजपा एक नयी रेलवे लाइन सहित राजमार्ग और रेलवे निर्माण कार्य कर रही है, जो बांग्लादेश और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से होते हुए मुख्य भूमि भारत की यात्रा के समय में कटौती करेगी। साहा ने बताया, ‘‘त्रिपुरा में सबरूम से चटगांव तक की सड़कें हमें एक तरफ दक्षिण पूर्व एशिया से कनेक्टिविटी प्रदान करेंगी, वहीं बांग्लादेश के माध्यम से रेलवे लाइन कोलकाता तक यात्रा के समय में कटौती करेगी।’’

इसके अलावा, त्रिपुरा के उनाकोटी जिले में जून में रथ यात्रा से लौटने के दौरान रथ के एक हाईटेंशन तार के संपर्क में आने की घटना में घायल हुई 32 वर्षीय महिला के दम तोड़ने के बाद इस मामले में मृतक संख्या बढ़कर नौ हो गई है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि घटना में घायल हुई द्रौपदी नामा ने असम के गुवाहाटी में एक अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। इससे पूर्व कुमारघाट इलाके में 28 जून को रथ यात्रा महोत्सव से लौट रहे भगवान जगन्नाथ के रथ के हाईटेंशन तार के संपर्क में आने से दो बच्चों समेत आठ लोगों की करंट लगने से मौत हो गई थी। सहायक महानिरीक्षक, कानून व्यवस्था ज्योतिष्मान दास चौधरी ने बताया, ‘‘घायल महिला का गुवाहाटी में इलाज चल रहा था। उसने 23 जुलाई को दम तोड़ दिया। उसके शव को यहां लाया गया है।’’ घटना में नामा के साढ़े पांच साल के बेटे की मौत हो गई थी। मुख्यमंत्री माणिक साहा ने दुर्घटना स्थल का दौरा किया था और जिला मजिस्ट्रेट से जांच कराए जाने का निर्देश दिया था। हालांकि अब तक जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है। मुख्यमंत्री ने घटना में मारे गए लोगों के परिजनों से भी मुलाकात की थी। पुलिस ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्यक्रम के आयोजक के खिलाफ मामला दर्ज किया था लेकिन अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं की गई है।

इसके अलावा, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की त्रिपुरा इकाई के अध्यक्ष पीयूष कांति बिश्वास ने मंगलवार को अपने पद के साथ-साथ पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। बिश्वास ने अपने इस्तीफे में कोई कारण नहीं बताया है लेकिन बाद में संवाददाताओं से कहा कि उनके इस कदम की वजह ‘निजी’ है। त्रिपुरा उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता बिश्वास को इस साल फरवरी में हुए राज्य विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस ने अपना प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त किया था। पार्टी का राज्य विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन रहा और 28 सीटों पर किस्मत आज रहे उसके उम्मीदवारों में से एक को भी सफलता नहीं मिली। पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी को भेजे गए इस्तीफे में बिश्वास ने कहा, ‘‘मैं त्रिपुरा प्रदेश तृणमूल कांग्रेस कमेटी और इसकी प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हूं। कृपया इसे स्वीकार करें।''

मेघालय

मेघालय से आई खबरों की बात करें तो आपको बता दें कि राज्य के पुलिस प्रमुख एल.आर. बिश्नोई ने मंगलवार को बताया कि तुरा में मुख्यमंत्री कार्यालय पर 24 जुलाई को भीड़ द्वारा किया गया हमला पूर्व नियोजित था और मुख्यमंत्री कोनराड संगमा को शारीरिक नुकसान पहुंचाने की साजिश रची गई थी। पुलिस महानिदेशक ने बताया कि सभी साजिशकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया जाएगा। उन्होंने बताया कि घटना में कथित संलिप्तता के लिए विपक्षी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता रिचर्ड एम. मारक सहित कम से कम 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने बताया कि पत्थरबाजी और आगजनी की घटना के वीडियो फुटेज की मदद से अन्य 26 लोगों की पहचान की गई है। अधिकारी ने बताया, 'खुफिया जानकारी से यह संकेत मिला है कि भीड़ ने पत्थर और बोतल को मुख्यमंत्री के सिर पर मारकर उनकी हत्या करने की साजिश रची थी।' बिश्नोई ने बताया, 'टीएमसी नेता ने मुख्यमंत्री को शारीरिक नुकसान पहुंचाने के लिए भीड़ को उकसाया था और हत्या आदि जैसे अतिवादी कदम उठाने के लिए भीड़ को भड़काने का काम किया था। हिंसक युवाओं के इस तरह के कृत्य यह दर्शाते हैं कि घटना पूर्व नियोजित थी और मुख्यमंत्री को शारीरिक नुकसान पहुंचाने की साजिश रची गई थी।' प्रदेश पुलिस प्रमुख ने बताया कि हालात अब पूरी तरह से काबू में हैं। उन्होंने बताया, 'मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हिंसा, मुख्यमंत्री पर हमले के प्रयास और सरकारी वाहनों को नुकसान पहुंचाने में शामिल जो कोई भी है उसे बख्शा नहीं जाएगा और जल्द ही उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया जाएगा।' उन्होंने बताया कि पुलिस साजिशकर्ताओं की तलाश में जुटी है और सोमवार रात से छापेमारी कर रही है।

मिजोरम

मिजोरम से आई खबरों की बात करें तो आपको बता दें कि हाल में मणिपुर में भीड़ द्वारा दो आदिवासी महिलाओं को निर्वस्त्र कर उन्हें घुमाए जाने का वीडिया सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित होने के बाद हुए विरोध प्रदर्शन और निशाना बनाए जाने के डर से मेइती समुदाय के 600 से ज्यादा लोग मिजोरम छोड़कर चले गए हैं। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी। अपराध जांच विभाग के पुलिस अधीक्षक (विशेष जांच) वनलालफाका राल्ते ने बताया कि इस वीडियो के सामने आने के बाद एक पूर्व उग्रवादी संगठन ने परामर्श जारी किया है, ऐसे में मेइती लोग हमले का शिकार बनाए जाने के भय से मिजोरम से चले गये। पुलिस अधीक्षक ने कहा कि नागरिक संस्थाओं द्वारा मंगलवार को एकजुटता मार्च निकाले जाने के कारण भी मेइती लोगों में “असुरक्षा” की भावना है। राल्ते के मुताबिक मंगलवार तक 600 से अधिक मेइती अपने गृह राज्य जा चुके हैं। उनका कहना है कि बुधवार से मेइती लोगों के जाने की कोई खबर नहीं है। मेइती संगठन के एक नेता ने हालांकि दावा किया कि बृहस्पतिवार तक मेइती लोगों का मिजोरम से जाना जारी था। ‘ऑल मिजोरम मणिपुरी एसोसिएशन’ के उपाध्यक्ष रामबीर ने कहा कि राज्य की प्रमुख नागरिक संस्थाओं के समूह द्वारा हाल ही में की गई विरोध रैली के कारण मेइती लोगों का मिजोरम छोड़ना जारी है क्योंकि वे “असुरक्षित” महसूस कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि मिजोरम में 3000 से अधिक मेइती रहते हैं जिनमें अधिकतर अध्यापक, विद्यार्थी एवं श्रमिक हैं। सेंट्रल यंग मिजो एसोसिएशन समेत पांच बड़ी नागरिक संस्थाओं के गठबंधन, एनजीओ कोर्डिनेशन कमिटी ने मणिपुर के कुकी-जो जातीय समुदाय के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए मिजोरम के विभिन्न हिस्सों में विरोध रैली निकाली थीं। मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा, उपमुख्यमंत्री तानलुइया, मंत्रियों और विभिन्न दलों के विधायकों ने आइजोल में एक ऐसी ही रैली में हिस्सा लिया था। पुलिस ने कहा कि एकजुटता मार्च के बाद से किसी अप्रिय घटना की कोई खबर नहीं है।

इसके अलावा, मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने मंगलवार को कहा कि उनकी पार्टी एमएनएफ ने अब तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होने पर विचार नहीं किया है। एमएनएफ केंद्र में राजग का हिस्सा है, और क्षेत्र में भाजपा के नेतृत्व वाले पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक गठबंधन (एनईडीए) की सदस्य है। पड़ोसी राज्य मणिपुर में हिंसा को लेकर आइजोल में प्रदर्शन से इतर पत्रकारों से बात करते हुए ज़ोरमथांगा ने कहा कि राजग से संबंध तोड़ना राजनीतिक जरूरत पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा, ''अब तक पार्टी ने इस मुद्दे पर कोई विचार नहीं किया है। यह राजनीतिक आवश्यकता पर निर्भर करता है।” उन्होंने कहा कि एमएनएफ का राजग के साथ गठबंधन मुद्दों पर आधारित है। मुख्यमंत्री ने कहा, ''जब राजग की नीति अल्पसंख्यकों और बड़ी आबादी के हित के खिलाफ होगी, तो हम इसका पुरजोर विरोध करेंगे।” ज़ोरमथांगा ने सोमवार को कहा था कि वह "राजग से नहीं डरते’ हैं।

इसके अलावा, जातीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर में ‘जो’ समुदाय के प्रति एकजुटता व्यक्त करने के लिए मिजोरम में हजारों लोगों ने मंगलवार को प्रदर्शन किया। ‘सेंट्रल यंग मिजो एसोसिएशन’ (सीवाईएमए) और ‘मिजो जिरलाई पावल’ (एमजेडपी) सहित पांच प्रमुख नागरिक संस्थाओं के समूह ‘एनजीओ को-ऑर्डिनेशन कमेटी’ ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में रैलियां आयोजित कीं। मुख्यमंत्री जोरमथंगा, उपमुख्यमंत्री तावंलुइया, मंत्रियों एवं राज्य के विभिन्न दलों के विधायकों ने आइजोल में बड़े पैमाने पर हुई प्रदर्शन रैली में भाग लिया। इस रैली में हजारों आम लोग भी शामिल हुए। इस दौरान लोगों ने पड़ोसी राज्य में हिंसा की निंदा करने वाले पोस्टर थाम रखे थे। आइजोल में रैली में एकत्र हुई भीड़ इतनी अधिक थी कि शहर मानो थम गया हो। रैली में भाग लेने वालों ने दावा किया कि राज्य में हालिया वर्षों में इतना बड़ा प्रदर्शन नहीं देखा गया है। इस रैली के समर्थन में सत्तारुढ़ मिजो नेशनल पार्टी’ (एमएनएफ) के कार्यालय बंद रहे। विपक्षी दलों भाजपा, कांग्रेस और जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने भी रैलियों के समर्थन में अपने पार्टी कार्यालय बंद रखे। ‘एनजीओ को-ऑर्डिनेशन कमेटी’ के अध्यक्ष आर ललंघेटा ने केंद्र से मणिपुर में हिंसा रोकने का आग्रह किया। उन्होंने रैली में कहा, ‘‘यदि भारत हमें भारतीय मानता है, तो उसे मणिपुर में ‘जो’ समुदाय के लोगों की समस्या को दूर करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए।’’ प्रदर्शनकारियों ने एक प्रस्ताव भी पारित किया, जिसमें केंद्र से जातीय संघर्ष के पीड़ितों को मुआवजा देने और दो महिलाओं के जघन्य यौन उत्पीड़न की घटना में शामिल लोगों के लिए कड़ी सजा सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मिजोरम में मिजो समुदाय के लोगों का मणिपुर के कुकी, बांग्लादेश के चटगांव पहाड़ी इलाकों के कुकी-चिन और म्यांमा के चिन समुदाय के लोगों के साथ जातीय संबंध है। इन्हें सामूहिक रूप से ‘जो’ कहा जाता है। प्रदर्शनों के मद्देनजर राज्य में सुरक्षा कड़ी कर दी गई। अधिकारियों ने बताया कि सभी जिलों में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया और विशेषकर संवेदनशील क्षेत्रों में कड़ी सतर्कता बरती गई ताकि किसी प्रकार की अप्रिय घटना न हो। मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान हिंसा भड़कने के बाद से राज्य में अब तक 160 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं तथा कई अन्य घायल हुए हैं। राज्य में मेइती समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं। वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और वे अधिकतर पर्वतीय जिलों में रहते हैं।

नगालैंड

नगालैंड से आई खबरों की बात करें तो आपको बता दें कि राज्य सरकार ने राज्य को ‘लम्पी स्किन डिजीज’ (एलएसडी) से प्रभावित घोषित किया है। सरकार ने 16 जिलों में से आठ में 900 से अधिक मवेशियों के संक्रामक बीमारी से पीड़ित पाए जाने का बाद यह फैसला किया है। एक सरकारी अधिसूचना में बृहस्पतिवार को कहा गया है कि पूर्वोत्तर राज्य की सरकार ने पशुओं को बचाने के लिए टीकाकरण और उन्हें पृथक करने सहित सभी निवारक उपाय करने का निर्णय लिया है। बीमारी से प्रभावित हुए ज्यादा पशु ‘थूटो’ हैं जो मूल रूप से नगालैंड में पाए जाते हैं। पशुपालन और पशु चिकित्सा सेवा विभाग के आयुक्त और सचिव वी. केन्या की ओर से जारी सरकारी अधिसूचना में कहा गया है कि संक्रमित मामले मिलने के बाद नगालैंड को एलएसडी प्रभावित राज्य घोषित कर दिया गया है। उन्होंने कहा, ''यह घोषणा पशुओं में संक्रामक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम, 2009 के तहत की गई है।’'

इसके अलावा, नगालैंड पुलिस के एक निरीक्षक और एक महिला समेत पांच अन्य लोगों को यहां सुरक्षा बल के केंद्रीय भंडार से राइफल की गोलियां चुराकर बेचने का प्रयास करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। दीमापुर पुलिस आयुक्त केविथुटो सोफे ने बताया कि पुलिस निरीक्षक माइकल यान्थान इस मामले का मुख्य आरोपी पाया गया है और उसने राइफल की गोलियों को चुराने व उन्हें बेचने के अपने अपराध को कबूल कर लिया है। उन्होंने बताया कि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि किसे ये गोलियां बेची जा रही थीं। भंडार की जांच के दौरान राइफल की गोलियाों की चोरी का पता चलने के बाद नौ जुलाई को इसके खिलाफ पुलिस अभियान शुरू किया गया था। सोफे ने बताया कि पुलिस ने राष्ट्रीय राजमार्ग 29 के कई स्थानों पर जांच चौकियां स्थापित की थीं, लेकिन पहले दिन कुछ हाथ नहीं लगा। उन्होंने बताया कि 10 जुलाई को पुलिस ने चुमुकेदिमा के छह मील इलाके में एक कार को रोका और जांच के दौरान चावल के तीन थैलों से भारी मात्रा में राइफल की गोलियां बरामद की गईं। उन्होंने बताया कि दो लोगों को गिरफ्तार किया गया और पूछताछ के दौरान उन्होंने कबूल किया कि खेप को नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-इसाक मुइवा (एनएससीएन-आईएम) के एक कार्यकर्ता की विधवा के घर से लाया गया था। उन्होंने बताया कि महिला को भी गिरफ्तार कर लिया गया है और उसने कबूल किया कि ये खेप नगा अलगाववादी समूह के एक स्वयंभू नेता (उपमंत्री) से प्राप्त की थी। अधिकारी ने बताया कि एनएससीएन नेता को गिरफ्तार कर लिया गया और पूछताछ के दौरान नेता ने पुलिस को बताया कि उसने यह गोलियां पुलिस केंद्रीय भंडार की हथियार व गोला-बारूद शाखा के प्रभारी यान्थान से खरीदी हैं। उन्होंने बताया कि यान्थान ने गोलियों को चुराने और उसे बेचने का आरोप स्वीकार कर लिया है। अधिकारी ने बताया कि यान्थान ने कबूल किया कि उसे सेल्फ लोडिंग राइफल (एसएलआर) की 1500 गोलियों और इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम (इंसास) राइफल की 5.56 एमएम की एक हजार गोलियों के लिए एक व्यक्ति ने 4.25 लाख रुपये दिए थे। उन्होंने बताया कि इस मामले में एक अन्य व्यक्ति को भी गिरफ्तार किया गया है। अधिकारी ने बताया कि मामले की जांच और अन्य लोगों की संलिप्तता का पता लगाने के लिए एक विशेष जांच दल गठित किया गया है।

इसके अलावा, राज्यसभा की सदस्य एस फान्गनॉन कोन्याक ने मंगलवार को पीठासीन उपाध्यक्ष के रूप में उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन किया। वह ऐसा करने वाली नगालैंड की पहली महिला सदस्य हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे गर्व का क्षण बताया। कोन्याक ने एक ट्वीट में कहा कि वह इससे काफी गौरवान्वित और अभिभूत हैं। उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आज महिलाओं को राजनीति और नेतृत्व के क्षेत्र में उचित सम्मान और स्थान दिया जा रहा है।" कोन्याक के इस ट्वीट पर प्रधानमंत्री ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा, "गर्व का क्षण।" कोन्याक ने इस अवसर के लिए राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के प्रति भी आभार व्यक्त किया। दरअसल, भोजनावकाश के बाद राज्यसभा में, छत्तीसगढ़ में धनुहार, धनुवार, किसान, सौंरा, साओंरा और बिंझिया समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के प्रस्ताव वाले संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (पांचवां संशोधन) विधेयक, 2022 पर चर्चा हो रही थी तब उन्होंने पीठासीन उपाध्यक्ष के रूप में सदन का संचालन किया। सदन में मौजूद सदस्यों ने मेज थपथपाकर उनका अभिनंदन किया। जब यह विधेयक पारित हुआ, उस समय कोन्याक ही उपाध्यक्ष के रूप में आसीन थीं। उच्च सदन ने चर्चा के बाद इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। विधेयक पर चर्चा के दौरान, मणिपुर हिंसा पर चर्चा की मांग कर रहे विपक्षी सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया। विधेयक के पारित होने के बाद उपराष्ट्रपति कार्यालय ने एक बयान में कहा, ‘‘एस. फान्गनॉन कोन्याक राज्यसभा की अध्यक्षता करने वाली नगालैंड की पहली महिला सदस्य बनीं।’’ राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने पिछले हफ्ते उच्च सदन के उपाध्यक्षों के पैनल का पुनर्गठन किया था और इसमें 50 प्रतिशत महिला सदस्यों को स्थान दिया गया था। आठ सदस्यीय उपाध्यक्षों के पैनल में पीटी उषा (मनोनीत), एस. फान्गनॉन कोन्याक (भारतीय जनता पार्टी), फौजिया खान (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी), सुलता देव (बीजू जनता दल), वी. विजयसाई रेड्डी (वाईएसआर कांग्रेस), घनश्याम तिवाड़ी (भाजपा), एल. हनुमंतय्या (कांग्रेस) और सुखेन्दु शेखर राय (तृणमूल कांग्रेस) शामिल हैं। जिन चार महिला सदस्यों को पैनल में शामिल किया गया है, वह सभी पहली बार राज्यसभा की सदस्य बनी हैं। कोन्याक भारतीय जनता पार्टी की सदस्य हैं। वह नगालैंड से राज्यसभा पहुंचने वाली पहली महिला हैं।

इसके अलावा, नगालैंड सरकार राज्य में प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने के खिलाफ है और उसने भारत के विधि आयोग से राज्य को इससे छूट देने का आग्रह किया है। एक मंत्री ने मंगलवार को यह जानकारी दी। विधि आयोग ने 14 जून को एक सार्वजनिक नोटिस जारी कर यूसीसी को लागू करने को लेकर जनता और धार्मिक संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों से सुझाव मांगे गए थे। मंत्री ने कहा कि नगालैंड सरकार ने विधि आयोग से आग्रह किया है कि राज्य को यूसीसी लागू करने से छूट दी जाए। नगालैंड के बिजली और संसदीय मामलों के मंत्री के.जी. केन्ये ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के नेतृत्व में एक मंत्रिस्तरीय टीम की हाल में दिल्ली यात्रा के दौरान आधिकारिक तौर पर 22वें विधि आयोग से यह आग्रह किया है। केन्ये ने दावा किया कि टीम ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की थी और उन्होंने आश्वासन दिया है कि केंद्र ईसाइयों और कुछ आदिवासी राज्यों को यूसीसी के दायरे से छूट देने पर विचार कर रहा है। उन्होंने कहा, ''हमारे लोगों ने यूसीसी लागू करने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है और वे ऐसे कानून के विचार के भी खिलाफ हैं और हर तरफ नाराजगी है। आदिवासी निकाय और नागरिक संस्थाओं ने खुले तौर पर घोषणा की है कि वे यूसीसी थोपे जाने को स्वीकार नहीं करेंगे।” केन्ये ने कहा कि भारत के संविधान में अनुच्छेद 371 (ए) शामिल होने के साथ नगालैंड देश का 16वां राज्य बना था। यह अनुच्छेद नगाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत कानून और प्रक्रियाएं, नगा परंपरा कानून के अनुसार फैसलों से जुड़े दीवानी और फौजदारी न्याय प्रशासन और भूमि तथा संसाधनों के स्वामित्व और हस्तांतरण को संरक्षित करता है। राज्य सरकार ने चार जुलाई को विधि आयोग को दिए पत्र में कहा था, “ हमारा यह मानना है कि ऐसा नजरिया हमारे पारंपरिक कानूनों, सामाजिक प्रथाओं और धार्मिक प्रथाओं के लिए सीधा खतरा है।” मंत्री ने उम्मीद जताई कि केंद्र अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहेगा और संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) को भी बरकरार रखेगा और नगालैंड को समान नागरिक संहिता लागू करने से छूट देगा। यूसीसी शादी, तलाक और विरासत पर एक समान कानून होगा जो सभी भारतीय नागरिकों पर लागू होगा, भले ही उनका धर्म, जनजाति या स्थानीय परंपरा कुछ भी हो।

अरुणाचल प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश से आई खबरों की बात करें तो आपको बता दें कि राज्य में शुक्रवार को सुबह 4.0 तीव्रता का भूकंप आया। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (एनसीएस) ने यह जानकारी दी। संस्थान के अधिकारियों ने बताया कि भूकंप से अरुणाचल प्रदेश में जानमाल के नुकसान की फिलहाल कोई खबर नहीं है। एनसीएस के मुताबिक, भूकंप का केंद्र सियांग जिले के उत्तर में, पांगिन में था। एनसीएस ने ट्वीट किया, “अरुणाचल प्रदेश में 28 जुलाई 2023 को भारतीय समयानुसार सुबह आठ बज कर करीब 50 मिनट पर पांगिग से 221 किलोमीटर उत्तर-उत्तर पश्चिम में 30.01 अक्षांस और 98.48 देशांतर में 10 किलोमीटर की गहराई में 4.0 तीव्रता का भूकंप आया।” इससे पहले, 22 जुलाई को अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में 3.3 तीव्रता का भूकंप आया था।

इसके अलावा, भारत ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ खिलाड़ियों को स्टेपल वीजा जारी किए जाने को अस्वीकार्य बताया और कहा कि वह ऐसे कदमों का ‘‘समुचित उत्तर’’ देने का अधिकार रखता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारत पहले ही इस मामले पर चीनी पक्ष के समक्ष अपना ‘‘कड़ा विरोध’’ दर्ज करा चुका है और भारतीय नागरिकों के लिए वीजा व्यवस्था में अधिवास या जातीयता के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। इस मामले से अवगत लोगों ने कहा कि विश्व-विश्वविद्यालय खेलों (वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम) में प्रतिस्पर्धा करने के लिए चीन के चेंगदू की वुशु खिलाड़ियों की 12 सदस्यीय टीम की यात्रा बुधवार रात को रद्द कर दी गई क्योंकि समूह में अरुणाचल प्रदेश के तीन खिलाड़ियों को स्टेपल वीजा दिया गया था। सरकार द्वारा मामले की जांच किए जाने के बाद टीम की यात्रा पर रोक लगाने का निर्णय लिया गया। बागची ने कहा कि यह सरकार के संज्ञान में आया है कि उन कुछ भारतीय नागरिकों को स्टेपल वीजा जारी किया गया, जिन्हें चीन में एक अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन में देश का प्रतिनिधित्व करना था। उन्होंने कहा, ‘‘यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और हमने चीनी पक्ष के समक्ष कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है तथा भारत ऐसे कदमों का समुचित जवाब देने का अधिकार रखता है।’’ उन्होंने एक मीडिया ब्रीफिंग में यह बात तब कही जब उनसे पूछा गया कि क्या अरुणाचल प्रदेश के कई खिलाड़ियों को स्टेपल वीजा जारी किया गया है। बागची ने कहा, ‘‘हमारी दीर्घकालिक और स्पष्ट स्थिति यह है कि वैध भारतीय पासपोर्ट रखने वाले भारतीय नागरिकों के लिए वीजा व्यवस्था में अधिवास या जातीयता के आधार पर कोई भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए।’’ यदि आव्रजन अधिकारी किसी पासपोर्ट पर वीजा की मोहर न लगाते हुए अलग से कागज पर मोहर लगाकर देते हैं और मोहर लगाकर पासपोर्ट के साथ नत्थी कर देते हैं, तो उसे स्टेपल वीजा कहा जाता है। इस मामले से अवगत लोगों ने बताया कि जहां टीम के अन्य सदस्यों को सामान्य वीजा मिला, वहीं अरुणाचल प्रदेश के खिलाड़ियों को स्टेपल वीजा दिया गया। चीन द्वारा पहले भी अरुणाचल प्रदेश के लोगों को स्टेपल वीजा जारी करने के मामले सामने आए थे, जिस पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताकर उस पर दावा करता रहा है। भारत ने अप्रैल में चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों का नाम बदले जाने को सिरे से खारिज किया था और कहा था कि राज्य भारत का अभिन्न अंग है।

इसके अलावा, अरुणाचल प्रदेश में कंजंक्टिवाइटिस (आंखों में संक्रमण) के मामले बढ़ रहे हैं जिससे बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। इसलिए कई जिलों में प्रशासन ने इस बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए स्कूलों को अस्थायी रूप से बंद करने का आदेश दिया है। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि राज्य की राजधानी ईटानगर और लोंगडिंग जिले के कनुबारी उप-मंडल के बाद नामसाई और पूर्वी सियांग प्रशासन ने कंजंक्टिवाइटिस के संक्रमण पर काबू के लिए कुछ दिनों तक स्कूलों को बंद रखने का आदेश दिया है। एक अधिकारी ने बताया कि पूर्वी सियांग में सभी निजी और सरकारी स्कूल दो अगस्त तक बंद रहेंगे जबकि नामसाई के शैक्षणिक संस्थानों में गतिविधियां 31 जुलाई तक निलंबित कर दी गई हैं। उन्होंने बताया कि यह निर्णय जिला निगरानी इकाइयों द्वारा किए गए व्यापक सर्वेक्षण के बाद लिया गया जिसमें पता चला कि कंजंक्टिवाइटिस के मामले बढ़ रहे हैं। पूर्वी सियांग के उपायुक्त ताई तग्गू ने संक्रमण को रोकने के लिए स्वच्छता पर जोर दिया। उन्होंने लोगों से जिला चिकित्सा अधिकारी द्वारा जारी दिशानिर्देशों और परामर्श का पालन करने का आग्रह किया। कंजंक्टिवाइटिस प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क के जरिए आसानी से फैल सकता है। नामसाई के एक अधिकारी ने बताया कि स्थानीय प्रशासन ने बच्चों में संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए एहतियात के तौर पर स्कूलों को अस्थायी रूप से बंद करने का फैसला किया है। एक जिला अधिकारी ने बताया कि दिबांग घाटी के निचले क्षेत्रों के विभिन्न स्कूलों में कंजंक्टिवाइटिस के 100 से अधिक मामले सामने आए हैं और यह संख्या बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि जिले के सभी स्कूलों को सार्वजनिक स्वास्थ्य परामर्श का पालन करने का निर्देश दिया गया है। परामर्श में लोगों को बार-बार हाथ धोने, आंखों को छूने से बचने, व्यक्तिगत वस्तुओं को साझा नहीं करने और संक्रमित व्यक्ति को अलग रहने की सलाह दी गई है। तिराप प्रशासन ने जिला स्वास्थ्य सोसायटी के सहयोग से बुधवार को रामकृष्ण सारदा मिशन गर्ल्स स्कूल खोंसा में इस संबंध में एक सर्वेक्षण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया। तिराप के उपायुक्त हेंटो कार्गा ने छात्रों और शिक्षण कर्मचारियों को संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए स्वच्छता बनाए रखने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि स्कूलों को बंद करना कोई समाधान नहीं होगा क्योंकि इससे पढ़ाई प्रभावित होगी। उन्होंने कहा कि सभी लोगों को सामाजिक दूरी और स्वच्छता का पालन करते हुए संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रयास करना चाहिए।

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