कभी पूर्वांचल में बजती थी मुख्तार अंसारी के नाम की तूती, कृष्णानंद हत्याकांड के बाद आया था सुर्खियों में

Mukhtar Ansari
अंकित सिंह । Dec 23 2021 12:24PM

मुख्तार अंसारी ने 1996 में पहली बार चुनाव जीता। इसके बाद 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 से भी मऊ विधानसभा सीट से वह लगातार चुनाव जीता रहा। आखरी के तीन चुनाव तो वह जेल में रहते हुए लड़ा और जीत हासिल की। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सियासत में उसका कितना बड़ा दबदबा है।

चुनाव में बाहुबलियों का एक अलग ही वर्चस्व होता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में देखा जाए तो चुनाव के दौरान बाहुबलियों का अपना सिक्का चलता है। यही कारण है कि इन राज्यों में ऐसे कई बाहुबली हैं जो राजनीति में कदम रखने के बाद सत्ता पर भी अपनी पैठ बनाने में कामयाबी हासिल की। उत्तर प्रदेश में भी एक ऐसा ही बाहुबली है जिनका नाम मुख्तार अंसारी है। पिछले 1 साल में देखें तो मुख्तार अंसारी का नाम सियासत की गलियारों में खूब गुंजा है। वर्तमान में मुख्तार अंसारी विधायक हैं जो कि जेल में बंद है। मुख्तार अंसारी मऊ से विधायक हैं। जेल में बंद रहने के बावजूद भी उन्होंने चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की थी। जेल में रहने के साथ ही वह रणनीति बनाने में भी माहिर है।

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छात्र जीवन से ही सियासत तक में दिलचस्पी रखने वाला मुख्तार अंसारी उस वक्त सुर्खियों में आ गया जब भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या हुई थी। कृष्णानंद राय की हत्या में उसका नाम आया था। हालांकि इससे पहले भी मुख्तार अंसारी का नाम लाइट मशीन गन केस में भी सामने आ चुका था। इसके ठीक 1 साल बाद कृष्णानंद राय की हत्या के साथ ही वह सुर्खियों में आ गया। पूर्वांचल के कुछ जिलों में मुख्तार अंसारी की तूती बोलती है। दरअसल, मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट पर अंसारी परिवार का दबा माना जाता है। 1985 से यह सीट अंसारी परिवार के ही कब्जे में रहा है।

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हालांकि, अंसारी परिवार को उस समय बड़ा झटका लगा था जब भाजपा उम्मीदवार कृष्णानंद राय ने 2002 में इस सीट से अफजाल अंसारी को हराकर जीत हासिल की थी। तभी कृष्णानंद राय दबंग मुख्तार अंसारी के निशाने पर आ गए। 2005 में कृष्णानंद राय के काफिले पर हमला किया गया जिसमें उनकी मौत हो गई। इस हत्याकांड के दौरान मुख्तार अंसारी जेल में बंद था। लेकिन इस कांड का मास्टरमाइंड उसे ही माना गया। मुख्तार अंसारी पर कई और मामले हैं जिसकी वजह से वह जेल में बंद है। पिछले साल ही उसे पंजाब से उत्तर प्रदेश शिफ्ट किया गया है। 

मुख्तार अंसारी का पूरा परिवार एक प्रतिष्ठित राजनीतिक खानदान से आता है। मुख्तार अंसारी के दादा अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने गांधीजी के साथ काम भी किया था और 1926-27 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे थे। मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947 की लड़ाई में शहादत मिली थी जिसके लिए बाद में उन्हें महावीर चक्र से नवाजा गया था। मुख्तार अंसारी के पिता सुभानउल्लाह अंसारी भी लगातार राजनीति में सक्रिय रहे हैं। गाजीपुर क्षेत्र में वह अपनी साफ-सुथरी छवि के लिए जाने जाते थे। जबकि भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी भी रिश्ते में मुख्तार अंसारी के चाचा लगते हैं। मुख्तार अंसारी ने 1996 में पहली बार चुनाव जीता। इसके बाद 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 से भी मऊ विधानसभा सीट से वह लगातार चुनाव जीता रहा। आखरी के तीन चुनाव तो वह जेल में रहते हुए लड़ा और जीत हासिल की। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सियासत में उसका कितना बड़ा दबदबा है। 

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