उपसभापति चुनावः कांग्रेस का ''गेम'' समझ आते ही शरद पवार ने बाजी पलट दी
राज्यसभा में उप−सभापति पद के लिये कल (09 अगस्त 2018) होने वाले चुनाव में सत्तापक्ष के उम्मीदवार और जनता दल युनाइटेड के नेता हरिवंश और विपक्षी उम्मीदवार और कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है।
नई दिल्ली। राज्यसभा में उप−सभापति पद के लिये कल (09 अगस्त 2018) होने वाले चुनाव में सत्तापक्ष के उम्मीदवार और जनता दल युनाइटेड के नेता हरिवंश और विपक्षी उम्मीदवार और कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है। कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद विपक्ष के उम्मीदवार होंगे। इससे पूर्व गत दिवस शरद पवार की नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की वंदना चव्हाण का नाम पूरे दिन उम्मीदवारी के लिए लिये उछलता रहा, लेकिन अंत समय में शरद पवार ने हाथ खड़े कर दिये। अब यह तय है कि हरिप्रसाद की जीत−हार का नफा−नुकसान कांग्रेस के ही खाते में जायेगा और विपक्ष के अन्य नेता तमाशबीन साबित होंगे।
कांग्रेस के लिये राह आसान नहीं लग रही है। सूत्र बता रहे हैं कि बीजू जनता दल ने राजग उम्मीदवार हरिवंश के समर्थन का मन बना लिया है, जिसके चलते जदयू से पहली बार सांसद बने हरिवंश की जीत सुनिश्चित लग रही है। वैसे दिलचस्प यह भी है कि जीते कोई भी, उप−सभापित की कुर्सी पर 'हरि' यानी हरि प्रसाद या हरि वंश ही बैठेंगें। उप-सभापति का पद पीजे कुरियन के जुलाई में सेवानिवृत्त होने के बाद खाली हुआ था।
राज्यसभा में मौजूदा गणित के हिसाब से उप-सभापति पद पर जीत के लिए किसी भी पक्ष को 123 सांसदों का समर्थन चाहिए। सत्ताधारी राजग के खाते में अभी कुल 115 सांसद हैं तो कांग्रेस नेतृत्व वाले विपक्ष के पास 113 सांसद। ऐसे में यदि बीजद के 9 सांसद राजग के उम्मीदवार के साथ जाते हैं जिसकी उम्मीद भी जताई जा रही है तो राजग प्रत्याशी का जीतना तय है। इसी प्रकार यदि बीजद सांसद विपक्ष के साथ गए(फिलहाल जिसकी उम्मीद अब न के बराबर है) तो यह खेमा एक अतिरिक्त सदस्य का समर्थन हासिल कर मोदी सरकार को झटका दे सकता है।
बहरहाल, कहा यही जा रहा है कि उप−सभापति चुनाव में कांग्रेस की तेजी ने ही उसके लिये 'बलि के बकरे' जैसी स्थिति कर दी है। पहले वंदना चव्हाण का नाम सामने आने पर कहा जा रहा था कि वंदना को संयुक्त उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस ने अपनी सहयोगी एनसीपी का दिल जीत लिया है, लेकिन सियासत में जो दिखता है, वैसा होता नहीं है। एनसीपी को यह बात समझने में देर नहीं लगी और उसने कांग्रेस को उम्मीदवार उतारने की दावत देकर पूरी बाजी पलट दी। वैसे जानकारों का मानना है कि सब कुछ अचानक और इतनी सहजता से नहीं हुआ। ऐसे लोग कहते हैं कि जब एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को समझ में आ गया कि बीजू जनता दल का उसके प्रत्याशी को साथ नहीं मिलेगा, तभी उन्होंने अपना रूख बदला। अब कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद की उम्मीदवारी के बाद विपक्ष की एकता का क्या होगा, यह आने वाले वक्त में ही पता चलेगा।
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