विपक्षी दलों ने प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ दिया महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस
कांग्रेस और छह अन्य विपक्षी दलों ने देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर ‘दुर्व्यवहार’ और ‘पद के दुरुपयोग’ का आरोप लगाते हुए आज उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया।
नयी दिल्ली। कांग्रेस और छह अन्य विपक्षी दलों ने देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर ‘दुर्व्यवहार’ और ‘पद के दुरुपयोग’ का आरोप लगाते हुए आज उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया। राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को महाभियोग का नोटिस देने के बाद इन दलों ने कहा कि ‘संविधान और न्यायपालिका की रक्षा’ के लिए उनको ‘भारी मन से’ यह कदम उठाना पड़ा है। महाभियोग प्रस्ताव पर कुल 71 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं जिनमें सात सदस्य सेवानिवृत्त हो चुके हैं। महाभियोग के नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सांसदों में कांग्रेस, राकांपा, माकपा, भाकपा, सपा, बसपा और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के सदस्य शामिल हैं। आजाद भारत में अब तक किसी भी प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग नहीं चलाया गया है। इन दलों ने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के खिलाफ ‘दुर्व्यवहार’ और ‘पद के दुरुपयोग’ का आरोप लगाया और कहा कि इस कदम के पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है।
सभापति वेंकैया नायडू को महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने के बाद राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सभापति से पिछले सप्ताह ही समय मांगा था लेकिन वह पूर्वोत्तर दौरे पर थे और समय नहीं मिल पाया। ऐसे में आज समय मिला जिसके बाद नायडू को यह नोटिस दिया गया। ।कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘हम भी चाहते थे कि न्यायपालिका का मामला उसके भीतर सुलझ जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हम अपना कर्तव्य निभा रहे हैं लेकिन कर्तव्य निभाने में खुशी महसूस नहीं हो रही है। हमें भारी मन से ऐसा करना पड़ रहा है क्योंकि संविधान और एक संस्था की स्वतंत्रता और स्वायत्तता का सवाल है।’’ कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा कि उसके इस कदम के पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है तथा इसका न्यायाधीश बी एच लोया मामले में कल सुनाये गये फैसले और रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में हो रही सुनवाई से कोई संबंध नहीं है।
सिब्बल ने यह भी दावा किया कि महाभियोग प्रस्ताव के लिए हस्ताक्षर करने वाले सदस्यों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रणनीति के तहत शामिल नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि प्रस्ताव में प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ पांच आरोपों का उल्लेख किया गया है जिनके आधार पर विपक्षी दलों ने यह नोटिस दिया है। ।विपक्षी दलों ने कहा कि पहला आरोप प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट से संबंधित हैं। इस मामले में संबंधित व्यक्तियों को गैरकानूनी लाभ दिया गया। इस मामले को प्रधान न्यायाधीश ने जिस तरह से देखा उसे लेकर सवाल है। यह रिकॉर्ड पर है कि सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की है। इस मामले में बिचौलियों के बीच रिकॉर्ड की गयी बातचीत का ब्यौरा भी है। प्रस्ताव के अनुसार इस मामले में सीबीआई ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति नारायण शुक्ला के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की इजाजत मांगी और प्रधान न्यायाधीश के साथ साक्ष्य साझा किये। लेकिन उन्होंने जांच की इजाजत देने से इनकार कर दिया।
इस मामले की गहन जांच होनी चाहिए।दूसरा आरोप उस रिट याचिका को प्रधान न्यायाधीश द्वारा देखे जाने के प्रशासनिक और न्यायिक पहलू के संदर्भ में है जो प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मामले में जांच की मांग करते हुए दायर की गई थी।कांग्रेस और दूसरे दलों का तीसरा आरोप भी इसी मामले से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि यह परंपरा रही है कि जब प्रधान न्यायाधीश संविधान पीठ में होते हैं तो किसी मामले को शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश के पास भेजा जाता है। इस मामले में ऐसा नहीं करने दिया गया। उन्होंने प्रधान न्यायाधीश पर चौथा आरोप गलत हलफनामा देकर जमीन हासिल करने का लगाया है। प्रस्ताव में पार्टियों ने कहा कि न्यायमूर्ति मिश्रा ने वकील रहते हुए गलत हलफनामा देकर जमीन ली और 2012 में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनने के बाद उन्होंने जमीन वापस की, जबकि उक्त जमीन का आवंटन वर्ष 1985 में ही रद्द कर दिया गया था।
इन दलों का पांचवा आरोप है कि प्रधान न्यायाधीश ने उच्चतम न्यायालय में कुछ महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील मामलों को विभिन्न पीठ को आवंटित करने में अपने पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग किया।इससे पहले संसद भवन में विपक्षी दलों के नेताओं की इस मुद्दे पर बैठक हुई जिसमें कांग्रेस नेता आजाद, कपिल सिब्बल, रणदीप सुरजेवाला, भाकपा के डी. राजा और राकांपा की वंदना चव्हाण ने हिस्सा लिया। सूत्रों के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक पहले प्रधान न्यायाधीश के महाभियोग के पक्ष में थे, लेकिन बाद में इस मुहिम से अलग हो गये।
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