JNU चुनावों में हमारी नैतिक जीत, शहरी नक्सलवाद मिटाकर रहेंगे: एबीवीपी

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[email protected] । Sep 17 2018 5:50PM

उन्होंने कहा, हम लोग हताश नहीं हैं। केवल जेएनयू के विचार से देश नहीं बनता। देश में 750 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से केवल 150 विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव हो रहे हैं।

इंदौर। भाजपा समर्थित एबीवीपी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के हालिया छात्र संघ चुनावों में भले ही इस संस्थान की विद्यार्थी राजनीति के बरसों पुराने "वाम दबदबे" को मिटाने में नाकाम रही हो, लेकिन संगठन के एक आला पदाधिकारी का कहना है कि उसे इस चुनावी भिड़ंत में "एक तरह से नैतिक जीत" हासिल हुई है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील आम्बेकर ने यहां एक कार्यक्रम के दौरान संवाददाताओं से कहा, "जेएनयू में हमारी लगातार बढ़ती ताकत से घबराकर इस बार छात्र संघ चुनावों में चार वामपंथी विद्यार्थी संगठनों का गठबंधन हमारे खिलाफ खड़ा हुआ था। यह बताता है कि इन चुनावों में नैतिक तौर पर एक तरह से हमारी जीत और उनकी पराजय हुई है।"

उन्होंने कहा, "हम लोग हताश नहीं हैं। केवल जेएनयू के विचार से देश नहीं बनता। देश में 750 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से केवल 150 विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव हो रहे हैं।" आम्बेकर ने कहा, "दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में हमें 58,000 विद्यार्थियों के वोट मिले और हमें शानदार जीत हासिल हुई। आप (मीडिया) एबीवीपी के प्रति इन विद्यार्थियों की भावना का संज्ञान लेंगे या नहीं।" एबीवीपी के आला पदाधिकारी ने आरोप लगाया कि जेएनयू के कई प्राध्यापक "शहरी नक्सलियों" को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने कहा, "हम पूरे देश से शहरी नक्सलवाद समाप्त करने की बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं। भले ही कुछ समय लगे, लेकिन हम यह लड़ाई जीतेंगे। जेएनयू में केवल "भारत माता की जय" का नारा लगेगा।"

जेएनयू छात्र संघ चुनावों के नतीजे घोषित होने के बाद एबीवीपी और वाम समर्थित आइसा कार्यकर्ताओं की भिड़ंत पर आम्बेकर ने कहा, "मैं आपको अपने मोबाइल पर तस्वीरें दिखा सकता हूं कि एबीवीपी कार्यकर्ताओं को किस तरह पीटा गया और वे लोग (आइसा कार्यकर्ता) किस तरह डंडे लेकर जेएनयू परिसर में खड़े थे।" उन्होंने वामपंथी कार्यकर्ताओं पर हमला बोलते हुए कहा, "केरल हो या पश्चिम बंगाल या त्रिपुरा, वामपंथ जहां भी प्रभावी होता है, वह विरोधियों के खिलाफ हिंसा का सहारा लेता है। वामपंथी अलोकतांत्रिक तरीके से अपनी जगह बचाने का प्रयास करते हैं।"

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