ओवैसी ने सेना प्रमुख के बयान पर एतराज़ जताया

owaisi-objected-to-army-chief-statement
[email protected] । Dec 26 2019 8:10PM

नागरिकता संशोधन एक्ट के विरोध में हुई हिंसा पर सेना प्रमुख बिपिन रावत के बयान से राजनीतिक हलचल मच गई है। AIMIM प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने आर्मी चीफ पर पलटवार किया है और लिखा है कि अपने कार्यालय की हद जानना भी एक नेतृत्व ही है।

हैदराबाद। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने थल सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत द्वारा संशोधित नागरिकता कानून को लेकर हिंसक प्रदर्शनों की आलोचना करने पर बृहस्पतिवार को कड़ा एतराज जताते हुए दावा किया कि ऐसी टिप्पणियां सरकार को कमजोर करती हैं। हैदराबाद से सांसद ने कहा कि सेना को असैन्य मुद्दों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उस मानदंड के हिसाब से आपातकाल के खिलाफ संघर्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी छात्र के तौर हिस्सा लेना गलत था। ओवैसी ने यहां पत्रकारों से कहा कि संविधान के मुताबिक, सेना को असैन्य मुद्दों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। विरोध का हक मौलिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि यह सर्वव्यापी है और संविधान भी कहता है कि असैन्य मामलों में सेना दखलअंदाजी नहीं करेगी... यही जीवंत लोकतंत्र के तौर पर भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों के लोकतंत्र में फर्क है। कृपया असैन्य मामलों में दखलअंदाजी नहीं कीजिए... विरोध का हक लोकतांत्रिक अधिकार है।

इसे भी पढ़ें: NPR के जरिए गुप्त रूप से NRC लागू कर रही है मोदी सरकार: ओवैसी

उनसे राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित एक स्वास्थ्य सम्मेलन में सेना प्रमुख रावत की टिप्पणी के बारे में सवाल किया गया था। इस टिप्पणी में जनरल रावत ने कहा है कि यदि नेता हमारे शहरों में आगजनी और हिंसा के लिए विश्वविद्यालयों और कॉलेज के छात्रों सहित जनता को उकसाते हैं, तो यह नेतृत्व नहीं है।ओवैसी ने कहा कि सरकार को रावत की टिप्पणी का संज्ञान लेना चाहिए। उनके अनुसार जनरल रावत की टिप्पणी सरकार को कमजोर करती है। लोकसभा सदस्य ने कहा, ‘‘ जो भी सेना प्रमुख ने कहा है, अगर वह सच है, तो मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि हमारे प्रधानमंत्री अपनी वेबसाइट पर कहते हैं कि उन्होंने छात्र के तौर पर आपातकाल के दौरान संघर्ष में हिस्सा लिया था... उनके (रावत के) मुताबिक, यह भी गलत है।’’

इसे भी पढ़ें: सीएए केवल मुसलमानों के लिए नहीं, सभी भारतीयों के लिए चिंता का विषय : ओवैसी

उन्होंने कहा कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने छात्रों समेत सभी लोगों से 1975 में आपातकाल के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लेने का आह्वान किया था और सरकार को इसका जवाब देना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की यह टिप्पणी कि संघ भारत की 130 करोड़ आबादी को हिन्दू समाज के तौर पर देखता है भले ही उनका कोई भी धर्म हो। इस पर ओवैसी ने कहा कि संविधान के मुताबिक, भारत का कोई मजहब हो ही नहीं सकता है। ओवैसी ने कहा कि लगता है कि मोहन भागवत के पास संविधान की किताब नहीं है। इसमें समता का अधिकार, जीने का अधिकार है। इसमें भारत के बहुलवाद और विविधता की बात की गई है। संविधान में अनुच्छेद 26, 29 और 30 क्यों है? क्योंकि इस देश का कोई मजहब हो नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘ आरएसएस चाहता है कि भारत का सिर्फ एक ही मजहब हो। यह तब तक नहीं हो सकता है जब तक कि (बीआर) आंबेडकर द्वारा बनाया गया संविधान मौजूद है। यह जमीन सभी मजहबों में यकीन रखती है।’’ आरएसस के तेलंगाना में पांव पसारने पर लोकसभा सदस्य ने कहा कि राज्य शांतिपूर्ण है और लोग ऐसे लोगों को बर्दाश्त नहीं करेंगे जो शांति को भंग करें। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव धर्मनिरपेक्ष हैं और जबतक वह यहां हैं, आरएसएस और भाजपा के लिए यहां मुश्किल होगी।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़