ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाले विधेयक को संसद की मंजूरी

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[email protected] । Aug 6 2018 6:59PM

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक को आज संसद की मंजूरी मिल गयी।

नयी दिल्ली। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक को आज संसद की मंजूरी मिल गयी। राज्यसभा ने आज इससे संबंधित ‘संविधान (123वां संशोधन) विधेयक को 156 के मुकाबले शून्य मतों से पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। संविधान संशोधन होने के नाते विधेयक पर मत विभाजन किया गया जिसमें सभी 156 सदस्यों ने इसके पक्ष में मतदान किया। विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि इस विधेयक के पारित होने के बाद राज्यों के अधिकारों के हनन होने के संबंध में कुछ सदस्यों ने जो आशंका व्यक्त की है, वह निर्मूल है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की केंद्रीय और राज्य सूची एक समान होती है। लेकिन ओबीसी के मामले में यह अलग अलग है।

उन्होंने कहा कि राज्य अपने लिए ओबीसी जातियों का निर्णय करने के बारे में स्वतंत्र हैं। इस विधेयक के कानून बनने के बाद यदि राज्य किसी जाति को ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल करना चाहते हैं तो वे सीधे केंद्र या आयोग को भेज सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं आश्वस्त करता हूं कि आयोग की सिफारिशें राज्य के लिए बाध्यकारी नहीं होंगी।’’ ।गहलोत ने कहा कि नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने पहले ही भाषण की प्रथम पंक्ति में कहा था कि उनकी सरकार पिछड़ों और गरीबों के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि इसी प्रतिबद्धता के चलते मोदी सरकार ने पिछड़ों और गरीबों के कल्याण के लिए तमाम कदम उठाये हैं। इनमें घुमंतु आयोग का गठन शामिल हैं जो देश की घुमंतु जातियों से संबंधित है।उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मोदी सरकार आरक्षण के लिए न केवल प्रतिबद्ध थी, बल्कि है और रहेगी।

उन्होंने कहा कि इस प्रतिबद्धता को प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और स्वयं वह कई बार व्यक्त कर चुके हैं।उन्होंने कहा कि क्रीमी लेयर वाला प्रावधान वर्तमान सरकार ने नहीं बल्कि पूर्ववर्ती सरकार ने बनाया था। उन्होंने कहा कि सरकार ने उप वर्गीकरण के संबंध में एक आयोग बनाया है। उस आयोग की रिपोर्ट आने पर सरकार सकारात्मक कदम उठायेगी। गहलोत ने स्पष्ट किया कि ओबीसी आयोग में महिला को सदस्य बनाये जाने का प्रावधान इस विधेयक के नियमों में शामिल किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने मौजूदा विधेयक में उसी प्रक्रिया और प्रावधानों को अपनाया है जो अनुसूचित जाति आयोग तथा अनुसूचित जनजाति आयोग के लिए अपनायी गयी हैं। उन्होंने कहा कि आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से समुदाय के लोगों की विभिन्न जरूरतें पूरी होंगी और कई ऐसी समस्याओं का भी समाधान हो पाएगा जिनका हल अभी तक नहीं हो सका है।

इससे पूर्व विधेयक पर हुयी चर्चा में विभिन्न दलों के सदस्यों ने जाति आधारित जनगणना को सार्वजनिक किए जाने की मांग की। कई सदस्यों ने अफसोस जताया कि कानून मौजूद होने के बाद भी उनका सही तरीके से कार्यान्वयन नहीं किया जा रहा है जिससे अन्य पिछड़े वर्ग की समस्याओं का निराकरण नहीं हो पा रहा है।चर्चा की शुरूआत करते हुए कांग्रेस के बीके हरि प्रसाद ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने की मांग की और कहा कि ऐसा होने से पता चल सकेगा कि किस जाति की कितनी संख्या है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की पहचान करना आसान है लेकिन ओबीसी लोगों की पहचान करना न सिर्फ कठिन बल्कि जटिल भी है। ।उन्होंने आयोग में अल्पसंख्यक समुदाय के एक सदस्य की नियुक्ति पर जोर देते हुए उदाहरण दिया कि मुस्लिम समाज में पसमांदा और अंसारी जातियां भी हैं जो पिछड़ी हैं।

उन्होंने कहा कि अभी कानून की कमी नहीं है लेकिन कमी उसे लागू करने में है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा आरक्षण के मुद्दे पर घड़ियाली आंसू बहा रही है।भाजपा के भूपेंद्र यादव ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस नीत सरकारों ने विभिन्न स्थायी समिति की सिफारिशों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने आरोप लगाया कि ओबीसी वर्ग के लिए अधिकतर महत्वपूर्ण कदम गैर-कांग्रेसी सरकारों के कार्यकाल में उठाए गए। यादव ने आरोप लगाया कि कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दे दिया गया ताकि वहां ओबीसी समुदाय को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सके। मौजूदा विधेयक की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि 70 साल बाद यह पहल हो रही है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी समतामूलक समाज की पक्षधर है और यह सरकार सबका साथ और सबका विकास सिद्धांत में भरोसा करती है।

मनोनीत शंभाजी छत्रपति ने 100 साल से भी ज्यादा समय पहले कोल्हापुर राज में विभिन्न समुदायों के लिए आरक्षण की व्यवस्था होने का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आजादी के कई साल बाद तक ओबीसी सूची में मराठा शामिल थे। लेकिन बाद में मराठा को सूची से बाहर कर दिया गया। उन्होंने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इससे उन लोगों को फायदा होगा जिन्हें सामाजिक समानता का लाभ नहीं मिल सका है।सपा के रामगोपाल यादव ने आशंका जतायी कि प्रस्तावित आयोग बन जाने के बाद भी पिछड़े समुदाय के लोगों के साथ अन्याय नहीं रूक पाएगा। उन्होंने कहा कि विभिन्न परीक्षाओं में इस समुदाय के छात्रों का चयन हो जाने के बाद भी सैंकड़ों लोगों को प्रशिक्षण के लिए नहीं भेजा गया। उन्होंने दावा किया कि अभी विभिन्न वर्गो के लिए कुल 49.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। इसका अर्थ है कि शेष 50.5 प्रतिशत पद 15 प्रतिशत आबादी के लिए आरक्षित हैं।

उन्होंने न्यायपालिका में भी आरक्षण की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि विभिन्न जातियों को उनकी आबादी के हिसाब से ही आरक्षण की व्यवस्था हो जाए तो कई विवाद दूर हो जाएंगे। अन्नाद्रमुक के नवनीत कृष्णन ने तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण होने का जिक्र किया और क्रीमी लेयर व्यवस्था हटाने की मांग की। राजद के मनोज कुमार झा ने कहा कि कई ऐसे मामले हैं जिनमें विभिन्न आयोगों की सिफारिशों पर एटीआर (कार्रवाई रिपोर्ट) पेश नहीं की गयी। इनेलो के रामकुमार कश्यप ने ओबीसी वर्ग के लोगों के लिए राजनीतिक आरक्षण की मांग की वहीं बसपा के अशोक सिद्धार्थ ने भाजपा पर आरोप लगाया कि अगले साल के आम चुनाव और इस साल मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों को देखते हुए यह विधेयक लाया गया है।कांग्रेस की छाया वर्मा ने क्रीमी लेयर को हटाने की मांग की और आरोप लगाया कि संविदा के आधार पर लोगों को नियुक्त किया जा रहा है जिसमें आरक्षण की व्यवस्था नहीं है।चर्चा में टीआरएस के बंदा प्रकाश, तृणमूल कांग्रेस के अहमद हसन, माकपा के टी के रंगराजन आदि ने भी भाग लिया।

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