पटना उच्च न्यायलय ने OBC कोटा को अवैध करार दिया, अधर में लटका नगर निकाय चुनाव

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अदालत का यह आदेश ऐसे वक्त पर आया है, जब 10 अक्टूबर को पहले चरण का मतदान होने पर एक हफ्ते से भी कम समय रह गया है। अदालत के इस आदेश के बाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की की पार्टी जदयू और हाल में सत्ता से बाहर हुई भाजपा के बीच इसको लेकर आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है।

पटना। पटना उच्च न्यायालय ने मंगलवार को स्थानीय नगर निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग के लिए सीटों के आरक्षण को ‘‘अवैध’’ बताते हुए आदेश दिया कि इन सीटों को सामान्य श्रेणी में शामिल करने के बाद ही चुनाव कराए जाएं। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति एस. कुमार की खंडपीठ ने कोटा प्रणाली को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया कि ‘‘आरक्षित सीटों को सामान्य श्रेणी की सीटों में शामिल करके फिर से अधिसूचित करने के बाद ही चुनाव कराए जाएंगे।’’ अदालत का यह आदेश ऐसे वक्त पर आया है, जब 10 अक्टूबर को पहले चरण का मतदान होने पर एक हफ्ते से भी कम समय रह गया है। अदालत के इस आदेश के बाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और हाल में सत्ता से बाहर हुई भाजपा के बीच इसको लेकर आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है। 

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जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने ट्वीट कर कहा है, ‘‘बिहार में चल रहे नगर निकायों के चुनाव में अतिपिछड़ा वर्ग का आरक्षण रद्द करने एवं तत्काल चुनाव रोकने का उच्च न्यायालय का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा निर्णय केन्द्र सरकार और भाजपा की गहरी साज़िश का परिणाम है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर केंद्र की (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी सरकार ने समय पर जातीय जनगणना करावाकर आवश्यक संवैधानिक औपचारिकताएं पूरी कर ली होती तो आज ऐसी स्थिति नहीं आती।’’ भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने आरोप लगाया, ‘‘नीतीश कुमार की ज़िद का परिणाम है की पटना उच्च न्यायालय को नगर निकाय चुनावों में ईबीसी आरक्षण रोकने का आदेश देना पड़ा। उच्चतम न्यायालय के ट्रिपल टेस्ट के निर्देश को नीतीश कुमार ने नकार दिया। तत्काल चुनाव रोका जाय।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि अति पिछड़ों को नगर निकाय चुनाव में आरक्षण से वंचित करने के लिए नीतीश कुमार ज़िम्मेवार हैं। 

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सुशील ने कहा कि जातिगत जनगणना का नगर निकाय चुनाव से कोई सम्बन्ध नहीं है। उन्होंने कहा, अदालत का कहना था की एक समर्पित आयोग बना कर उसकी अनुशंसा पर आरक्षण दें, लेकिन नीतीश कुमार अपनी जिद पर अड़े रहे और महाधिवक्ता और राज्य चुनाव आयोग की राय भी नहीं मानी। छुट्टी के दिन पारित किये गए 86 पन्नों के इस आदेश में राज्य चुनाव आयोग से एक स्वायत्त और स्वतंत्र निकाय के रूप में इसके कामकाज की समीक्षा करने के लिए कहा गया है, जो बिहार सरकार के निर्देशों से बाध्य नहीं है। हालांकि अदालत ने चुनाव प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है लेकिन राज्य निर्वाचन आयोग ने 30 सितंबर को सभी संबंधित जिलाधिकारियों को एक परिपत्र जारी कर कहा था कि प्रथम चरण का मतदान जोकि 10 अक्टूबर को निर्धारित है उसकी निवाचन प्रक्रिया एवं परिणाम पटना उच्य न्यायालय द्वारा समादेश उक्त याचिका में पारित निर्णय से आच्छादित होगा और उक्त आशय की सूचना सभी अभ्यर्थियों को भी दे दिए जाने को कहा था। चुनाव दो चरणों में 10 और 20 अक्टूबर को होने थे जिसके परिणाम क्रमशः 12 और 22 अक्टूबर को घोषित किए जाने थे। राज्य चुनाव आयोग के अनुसार, कुल मिलाकर 1.14 करोड़ मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करना था।

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