सिविल सेवा परीक्षा में दिव्यांगों के लिए आरक्षण: PIL पर अदालत ने केंद्र और UPSC से मांगा जवाब

High Court

याचिका में सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा के विवरण की घोषणा करने वाली इस साल के नोटिस को चुनौती दी गई है। कोविड-19 महामारी के कारण के इस साल यह परीक्षा चार अक्टूबर को होने का कार्यक्रम है।

नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को अखिल भारतीय सिविल सेवाओं में रिक्तियों की गणना की पद्धति के बारे में ब्योरा देने को कहा। इन रिक्तियों के लिये आयोग भर्ती प्रक्रिया संचालित करता है। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायूर्ति प्रतीक जलान की पीठ ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए यूपीएससी से इस संबंध में जवाब मांगा है। याचिका में सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा के विवरण की घोषणा करने वाली इस साल के नोटिस को चुनौती दी गई है। कोविड-19 महामारी के कारण के इस साल यह परीक्षा चार अक्टूबर को होने का कार्यक्रम है। यह चुनौती इस आधार पर दी गई है कि नोटिस में दिव्यांग जनों को उपलब्ध कराये जाने वाले न्यूनतम आरक्षण की अनदेखी की गई है। 

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उच्च न्यायालय ने केंद्र, यूपीएससी और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईएफएस)जैसी विभन्न सेवाओं से संबद्ध मंत्रालयों को नोटिस जारी किये हैं। परीक्षा में सफल उम्मीदवारों की भर्ती इन सेवाओं में की जाती है। अदालत ने अपने नोटिस के जरिये गैर सरकारी संगठन संभावना की याचिका पर उनसे अपना रुख बताने को कहा है।   दरअसल, एनजीओ ने आरोप लगाया है किपरीक्षा के नोटिस के तहत दिव्यांगों के लिये सिर्फ संभावित लगभग रिक्तियों का उल्लेख किया गया है और कानून के मुताबिक अनिवार्य चार प्रतिशत आरक्षण का उल्लेख नहीं किया गया है।

अधिवक्ता कृष्ण महाजन और अजय चोपड़ा के माध्यम दायर याचिका में दलील दी गई है कि दिव्यांग जनों के अधिकार अधिनियम 2016 यह प्रावधान करता है कि प्रत्येक सरकारी प्रतिष्ठान अपनी कुल रिक्तियों का चार प्रतिशत दिव्यांगों के लिये आरक्षित करेगा। हालांकि, यूपीएससी की परीक्षा के नोटिस में सिर्फ ‘‘संभावित लगभग रिक्तियों’’ का जिक्र किया गया- जबकि यह श्रेणी कानून के तहत अस्तित्व में नहीं है। पीआईएल में दलील दी गई है कि यूपीएससी का नोटिस अधिनियम के साथ एक धोखा है। किसी ऐसी चीज के लिये आरक्षण का प्रावधान करना जो कानूनन अस्तित्व में ही नहीं है, वह कानून कुछ नहीं प्रदान करेगा। 

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एनजीओ ने यह दावा भी किया है कि 796 संभावित रिक्तियों में चार प्रतिशत आरक्षण की गणना में गणितीय त्रुटि भी है। इसमें कहा गया है कि 796 का चार प्रतिशत आरक्षण 31.8 या 32 रिक्तियां होंगी, जबकि नोटिस के मुताबिक यह 24 है। जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि यहां तक कि पुरानी रिक्तियों का भी उल्लेख नहीं किया गया है। बहरहाल, अदालत ने इस विषय की अगली सुनवाई 31 अगसत के लिये निर्धारित कर दी। साथ ही, यूपीएससी को अपने हलफनामे में पुरानी रिक्तियों (जो अब तक लंबित हैं और भरी नहीं गई हैं) के साथ-साथ दिव्यांगों के लिये रिक्तियों की गणना उसने कैसे की, इस बात का भी उल्लेख करना होगा।

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