Places of Worship Act: कांग्रेस ने लाया, बीजेपी ने विरोध जताया, उमा भारती ने बिल्ली को देखकर कबूतर की आंखें बंद करने जैसा बताया

Places of Worship Act
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अभिनय आकाश । May 17 2022 1:40PM

बीजेपी ने इस एक्ट का कड़ा विरोध किया था। उस वक्त बीजेपी की फायर ब्रांड नेता उमार भारती ने कहा था कि 1947 में धार्मिक स्थलों के संबंध में यथास्थिति बनाए रखना बिल्ली को देखकर कबूतर के आंख बंद करने सरीखा है।

वाराणसी में ज्ञानवापी के सर्वे का काम पूरा हो गया है और कोर्ट में इसकी रिपोर्ट को पेश करने के लिए दो दिन का समय मांगा गया है। वकील हरिशंकर जैन की तरफ से दावा किया गया है कि 16 मई 2022 को मस्जिद कॉम्पलैंक्स में शिवलिंग पाया गया है। ये बहुत ही महत्वपूर्ण साक्ष्य है। इसलिए सीआरपीएफ कमांडेंट को आदेश दिया जाए कि वो इस जगह को सील कर दें। मात्र 20 मुसलमानों को नमाज अदा करने की इजाजत दी जाए और वहां वजू करने से रोक दिया जाए। सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने इसे स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि डीएम उस स्थान को तत्काल सील कर दें।

अब आगे क्या?

इसको लेकर वाराणसी की निचली अदालत, इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ी कानूनी लड़ाई चलेगी। एससी में अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद की प्रबंधन समिति ने याचिका दायर करते हुए कहा कि जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 21 अप्रैल को बरकरार रखा था - वह पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का "स्पष्ट रूप से उल्लंघन" है। 

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जिसके बाद से ही इस कानून को लेकर बहस चल पड़ी है। दरअसल, हुआ ये था कि 1991 में पूजा स्थल विधेयक यानी रिलिजियस ऑफ वर्सिप एक्ट संसद से पास होकर कानून बना। इसके तहत 15 अगस्त 1947 को धार्मिक स्थलों की जो स्थिति है वो वैसी ही रहेगी। ये आदेश बाबरी मस्जिद जन्मभूमि विवाद मामले में लागू नहीं हुआ था क्योंकि ये इस कानून के बनने से पहले ही अदालत पहुंच चुका था। कानून आने के बाद वाराणसी के लोगों ने इस मामले को लेकर एक याचिका दाखिल की थी। वाराणसी की निचली अदालत ने उस वक्त भी ज्ञानवापी में सर्वेक्षण के आदेश दिए थे। 1996 में 18 मई को अदालत ने कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति कर सर्व करने को कहा था। तय तिथि को दोनों पक्षों को नोटिस देकर बुलाया गया। वादी पक्ष से पांच और दूसरे पक्ष से 500 लोग पहुंचे। तनातनी की स्थिति पैदा हुई तो कोर्ट कमिश्नर ने कार्यवाही खारिज कर दी थी।

क्या कहता है पूजा स्थल विधेयक 

1991 में लागू कानून में कहा गया है कि पूजा स्थालों की स्थिति जो 15 अगस्त 1947 को थी उसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। इस कानून में अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि को अलग रखा गया था। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि केस के अलावा अगालतों में लंबित ऐसे सभी मामले समाप्त समझे जाएंगे। कानून के बारे में बताते हुए तत्कालीन गृह मंत्री एस बी चव्हाण ने संसद में कहा कि यह सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए इसे लाया गया। इस अधिनियम की धारा 3 के अनुसार किसी पूजा स्थान या उसके खंड को अलग धार्मिक संप्रदाय की पूजा स्थली में बदलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह अधिनियम राज्य पर एक सकारात्मक दायित्व भी प्रदान करता है कि वह स्वतंत्रता के समय मौजूद प्रत्येक पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखे। अधिनियम की धारा 4 (1) में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को विद्यमान पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र वैसा ही रहेगा जैसा उस दिन था। अधिनियम की धारा 4 (2) का प्रावधान है अधिनियम के प्रारंभ होने पर 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के रूपांतरण के संबंध में कोई मुकदमा, अपील या अन्य कार्यवागी किसी भी अदालत के समक्ष लंबित है तो वो समाप्त होगा। इसके साथ ही इस प्रकार के किसी भी मामले के संबंध में कोई मुकदमा, अपील या अन्य कार्यवाही नहीं होगी। 

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पीवी नरसिम्हा राव सरकार लेकर आई कानून

कांग्रेस नीत पीवी नरसिम्हा राव की सरकार की तरफ से राम मंदिर आंदोलन के वक्त में ये अधिनियम लाया गया था। उस वक्त राम मंदिर आंदोलन चरम वक्त था। लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा, बिहार में गिरफ्तारी और उत्तर प्रदेश में कारसेवकों पर गोलीबारी ने उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव को जन्म दे दिया। संसद में विधेयक पेश करते हुए तत्कालीन गृह मंत्री एसबी चव्हाण ने कहा था कि सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने वाले पूजा स्थलों के बदलने के संबंध में समय-समय पर उत्पन्न होने वाले विवादों को देखते हुए इन उपायों को अपनाना आवश्यक है। 

बीजेपी ने कड़ा विरोध जताया

बीजेपी ने इस एक्ट का कड़ा विरोध किया था। उस वक्त बीजेपी की फायर ब्रांड नेता उमा भारती ने कहा था कि 1947 में धार्मिक स्थलों के संबंध में यथास्थिति बनाए रखना बिल्ली को देखकर कबूतर के आंख बंद करने सरीखा है। इसका मतलब तो ये हुआ कि आने वाली पीढ़ियों को तनाव से गुजरना होगा। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का जिक्र करते हुए कहा था कि क्या औरंगजेब का इरादा मंदिर के अवशेष को एक मस्जिद की जगह पर छोड़ देना हिन्दुओं को उनके ऐतिहासिक भाग्य की याद दिलाना और मुसलमानों की आने वाली पीढ़ियो को उनके अतीत के गौरव और शक्ति की याद दिलाना नहीं था?  

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