1984 दंगे के दोषी की अंतरिम जमानत बढ़ाने की अर्जी निरर्थक, कोरोना के कारण पहले ही दी जा चुकी है राहत: HC

High Court

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘पूर्ण पीठ के आदेश के मद्देनजर अंतरिम जमानत की अवधि बढ़ाने के आवेदन का अब कोई मतलब नहीं है।’’

नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि 1984 के सिख विरोधी दंगे मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे एक दोषी की अंतरिम जमानत की अवधि बढ़ाने का आवेदन अब निरर्थक हो गया है क्योंकि कोविड-19 महामारी ​​के कारण अदालत पहले ही ऐसे मामलों में राहत की अवधि 31 अक्टूबर तक बढ़ा चुकी है। न्यायमूर्ति जे आर मिधा और न्यायमूर्ति बृजेश सेठी की पीठ ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल की अध्यक्षता वाली पूर्ण पीठ पहले ही उन सभी अंतरिम आदेश को 31 अक्टूबर तक बढ़ा चुकी है, जो 31 अगस्त को या उसके बाद समाप्त होने वाले थे। अदालत ने आशंका जतायी थी कि कैदियों के अंतरिम जमानत या पैरोल की समाप्ति के बाद लौटने पर जेलों में कैदियों के बीच कोविड-19 संक्रमण के प्रसार का खतरा बढ़ जाएगा। 

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अदालत ने कहा, ‘‘पूर्ण पीठ के आदेश के मद्देनजर अंतरिम जमानत की अवधि बढ़ाने के आवेदन का अब कोई मतलब नहीं है।’’ उच्च न्यायालय ने एक जून को किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित दोषी नरेश सहरावत की उम्रकैद की सजा को 12 सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया था। अदालत ने इस आधार पर कैदी को राहत दी थी कि उसके कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारी की चपेट में आने का खतरा अधिक है। सुनवाई के दौरान, सरकार की ओर से पेश वकील कामना वोहरा ने कहा कि पूर्ण पीठ के आदेश के बाद, वह अंतरिम जमानत के विस्तार के लिए दायर अर्जी का विरोध नहीं कर रही थी। हालांकि, उन्होंने बताया कि सहरावत ने अदालत के समक्ष कोई आगे का उपचार रिकॉर्ड नहीं पेश किया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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