प्रधानमंत्री ने संतुलन के लिये लोगों को प्रकृति प्रेमी, प्रकृति रक्षक बनने का सुझाव दिया
देश के अलग अलग हिस्सों में अधिक बारिश और कम बारिश का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों को प्रकृति प्रेमी, प्रकृति रक्षक और प्रकृति संवर्धक बनने का सुझाव दिया ताकि प्रकृति प्रदत्त चीजों का संतुलन बना रहे।
नयी दिल्ली। देश के अलग अलग हिस्सों में अधिक बारिश और कम बारिश का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों को प्रकृति प्रेमी, प्रकृति रक्षक और प्रकृति संवर्धक बनने का सुझाव दिया ताकि प्रकृति प्रदत्त चीजों का संतुलन बना रहे। आकाशवाणी पर प्रसारित ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री ने कहा कि इन दिनों कई जगहों पर अच्छी वर्षा होने की ख़बरें आ रही हैं। कहीं-कहीं पर अधिक वर्षा के कारण चिन्ता की भी ख़बर आ रही है और कुछ स्थानों पर अभी भी लोग वर्षा की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत की विशालता, विविधता, कभी-कभी वर्षा भी पसंद-नापसंद का रूप दिखा देती है। लेकिन हम वर्षा को क्या दोष दें। मनुष्य ने ही प्रकृति से संघर्ष का रास्ता चुना जिसका नतीज़ा है कि कभी-कभी प्रकृति हम पर रूठ जाती है।’’ मोदी ने कहा, इसीलिये हम सबका दायित्व बनता है – हम प्रकृति प्रेमी बनें, हम प्रकृति के रक्षक बनें, हम प्रकृति के संवर्धक बनें, तो प्रकृतिदत्त जो चीज़े हैं उसमें संतुलन अपने आप बना रहता है।
प्रधानमंत्री ने इस दौरान कवि एवं गीतकार नीरज की आशा, भरोसा और दृढ़संकल्प से ओतप्रोत कविताओं का जिक्र किया। नीरज का हाल ही में देहांत हुआ है। कवि नीरज को श्रद्धांजलि देते हुए मोदी ने कहा ‘‘ नीरज जी की एक विशेषता रही थी - आशा, भरोसा, दृढसंकल्प, स्वयं पर विश्वास। हम हिन्दुस्तानियों को भी नीरज जी की हर बात बहुत ताक़त और प्रेरणा दे सकती है।’’
इस दौरान प्रधानमंत्री ने नीरज की कुछ पंक्तियों को भी पढ़ा जिसमें उन्होंने लिखा था - ‘अँधियार ढलकर ही रहेगा, आँधियाँ चाहे उठाओ, बिजलियाँ चाहे गिराओ, जल गया है दीप तो अँधियार ढलकर ही रहेगा’। प्रधानमंत्री ने इस दौरान थाईलैंड में 12 किशोर फुटबॉल खिलाड़ियों की टीम और उनके कोच के गुफ़ा में फंसने की घटना का भी जिक्र किया जो पिछले दिनों पूरे दुनिया में सुर्खियों में रही थी ।
उन्होंने कहा कि वहाँ आमतौर पर गुफ़ा में जाने और उससे बाहर निकलने, उन सबमें कुछ घंटों का समय लगता है। जब वे गुफ़ा के भीतर काफी अन्दर तक चले गए – अचानक भारी बारिश के कारण गुफ़ा के द्वार के पास काफी पानी जम गया। उनके बाहर निकलने का रास्ता बंद हो गया। कोई रास्ता न मिलने के कारण वे गुफ़ा के अन्दर के एक छोटे से टीले पर रुके रहे - और वह भी एक-दो दिन नहीं – 18 दिन तक। उन्होंने कहा कि आप कल्पना कर सकते हैं कि किशोर अवस्था में सामने जब मौत दिखती हो और पल-पल गुजारना पड़ता हो तो वो पल कैसे रहे होंगे !
पूरे विश्व में मानवता एकजुट होकर कर ईश्वरदत्त मानवीय गुणों को प्रकट कर रही थी। दुनिया भर में लोग इन बच्चों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए प्रार्थनाएँ कर रहे थे और उनका पता लगाने का हर-संभव प्रयास किये जा रहे थे। जब अच्छी ख़बर आयी तो दुनिया भर को शान्ति हुई, संतोष हुआ। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस घटना में सभी ने, चाहे सरकार हो, इन बच्चों के माता-पिता हों, उनके परिवारजन हों, मीडिया हो, देश के नागरिक हों - हर किसी ने शान्ति और धैर्य का अदभुत आचरण दिखाया। मोदी ने कहा,‘‘ हर किसी का संयमित व्यवहार – मैं समझता हूँ एक सीखने जैसा विषय है, समझने जैसा है।’’
उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं कि माँ-बाप दुखी नहीं हुए होंगे, ऐसा नहीं कि माँ के आँख से आँसू नहीं निकलते होंगे, लेकिन धैर्य, संयम, पूरे समाज का शान्तचित्त व्यवहार - ये अपने आप में हम सबके लिए सीखने जैसा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह दिखाता है कि जब मानवता एक साथ आती है, अदभुत चीज़ें होती हैं। बस ज़रूरत होती है कि हम शांत और स्थिर मन से अपने लक्ष्य पर ध्यान दें, उसके लिए काम करते रहें।
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