राजनाथ सिंह का आरक्षण पर बड़ा बयान, कहा- इसे कोई नहीं छीन सकता
विश्विद्यालयों और महाविद्यालयों में नियुक्तियों में आरक्षण लागू करने को लेकर विपक्ष के आरोप पर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आज स्पष्ट किया कि कोई व्यक्ति या संस्था अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गों का आरक्षण नहीं छीन सकती।
नयी दिल्ली। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्तियों के प्रति बढ़ते अपराधों पर राज्यसभा में आज व्यक्त की गयी चिंता के जवाब में कहा कि कोई भी व्यक्ति या संस्था इन समुदायों के संरक्षण संबंधी कानूनी प्रावधानों में कटौती नहीं कर सकता है। सिंह ने उच्च सदन में प्रश्नकाल के दौरान इस बारे में पूछे गये एक पूरक सवाल के जवाब में कहा ‘‘अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्तियों को संविधान में प्रदत्त संरक्षण को कोई व्यक्ति अथवा संस्था नहीं छीन सकती है।’’
सिंह ने अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण कानून के सख्त प्रावधानों में ढील देने के कारण इन समुदायों के प्रति अपराध बढ़ने के सवाल के जवाब में कहा कि सरकार ने इस कानून को मजबूत करने के लिये जरूरी बदलाव भी किये हैं। इतना ही नहीं इससे जुड़े नियमों में भी जरूरी संशोधन किये हैं। उन्होंने कहा ‘‘मैं सदन को आश्वस्त करना चाहता हूं कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को प्रताड़ित करने सहित अन्य प्रकार के अपराधों को रोकने के लिये भी सरकार ने नियमों में संशोधन किया है।’’
भाकपा के डी राजा ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्तियों के प्रति अपराधों से जुड़े मामलों में न्यायिक जांच, दोषसिद्धि की घटती दर और संबद्ध कानूनी प्रावधानों में ढील देने का मुद्दा उठाया। इसके जवाब में सिंह ने इस दिशा में सरकार द्वारा किये गये उपायों का जिक्र करते हुये कहा कि पहले इस तरह के मामलों की सुनवायी के लिये विशेष अदालतें थीं लेकिन सरकार ने अब देश भर में 194 ‘‘अनन्य विशेष’’ अदालतें गठित की हैं। उन्होंने अब त्वरित सुनवायी के आधार पर दोषसिद्धि की दर बढ़ने की उम्मीद जतायी।
इस दौरान गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने पिछले चार सालों में अनुसूचित जाति जनजाति के व्यक्तियों के प्रति अपराधों में इजाफे की आशंका को आंकड़ों के आधार पर गलत बताया। अहीर ने राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के हवाले से बताया कि साल 2013 में अनुसूचित जाति के व्यक्तियों के खिलाफ 39408 मामले दर्ज किये गये। उन्होंने कहा कि साल 2014 में यह आंकड़ा 40401 होने के बाद 2015 में घटकर 38670 पर आ गया और 2016 में फिर से बढ़कर 40801 हो गया। इसी तरह अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के खिलाफ साल 2013 में 6793 मामले, 2014 में 6827, 2015 में 6276 और 2016 में 6568 आपराधिक मामले दर्ज किये गये।
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