अयोध्या में रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद, जानें पूरा घटनाक्रम

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[email protected] । Mar 8 2019 7:07PM

उच्चतम न्यायालय ने मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजने से इंकार किया। मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर को तीन सदस्यीय नयी पीठ में होगी।

नयी दिल्ली। अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद का घटनाक्रम इस प्रकार से है जिसमें उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले को मध्यस्थता के लिए एक समिति के पास भेजा है। इस समिति के प्रमुख उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला होंगे और प्रक्रिया पूरा करने के लिए समिति को आठ हफ्ते का समय दिया गया है।

 1528 : मुगल बादशाह बाबर के कमांडर मीर बकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया।

 1885 : महंत रघुबीर दास ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर कर विवादित रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद ढांचे के बाहर शामियाना तानने की अनुमति मांगी। अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

 1949 : विवादित ढांचे के बाहर केंद्रीय गुंबद के अंदर रामलला की मूर्तियां लगाई गईं।

 1950 : रामलला की मूर्तियों की पूजा का अधिकार हासिल करने के लिए गोपाल सिमला विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर की।

1950 : परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा जारी रखने और मूर्तियां रखने के लिए याचिका दायर की।

1959 : निर्मोही अखाड़ा ने जमीन पर अधिकार दिए जाने के लिए याचिका दायर की।

 1981 : उत्तरप्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने स्थल पर अधिकार के लिए याचिका दायर की।

एक फरवरी 1986 : स्थानीय अदालत ने सरकार को हिंदू श्रद्धालुओं के लिए स्थान खोलने का आदेश दिया।

 14 अगस्त 1986 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित ढांचे के लिए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।

 छह दिसम्बर 1992 : रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद ढांचे को ढहाया गया।

 तीन अप्रैल 1993 : विवादित क्षेत्र में केंद्र द्वारा भूमि अधिग्रहण के लिए ‘अयोध्या में निश्चित क्षेत्र अधिग्रहण कानून’ बना। कई रिट याचिकाएं दायर की गईं जिनमें एक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस्माइल फारूकी द्वारा दायर याचिका शामिल थी। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 139ए के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रिट याचिकाओं को स्थानांतरित कर दिया जो उच्च न्यायालय में लंबित थीं।

 24 अक्टूबर 1994 : उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक इस्माइल फारूकी मामले में कहा कि मस्जिद इस्लाम से जुड़ा हुआ नहीं है।

अप्रैल 2002 : उच्च न्यायालय में विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू।

13 मार्च 2003 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि असलम उर्फ भूरे मामले में अधिग्रहित स्थल पर किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं है। 

 30 सितम्बर 2010 : उच्चतम न्यायालय ने 2 : 1 बहुमत से विवादित क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।

 9 मई 2011 : उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या जमीन विवाद में उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई।

 26 फरवरी 2016 : सुब्रमण्यम स्वामी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाए जाने की मांग की।

 21 मार्च 2017 : सीजेआई जे एस खेहर ने संबंधित पक्षों के बीच अदालत के बाहर समाधान का सुझाव दिया। 

 सात अगस्त : उच्चतम न्यायालय ने तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जो 1994 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

आठ अगस्त : उत्तरप्रदेश शिया केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि विवादित स्थल से उचित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बनाई जा सकती है। 11 सितम्बर : उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि दस दिनों के अंदर दो अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति करें जो विवादिस्त स्थल की यथास्थिति की निगरानी करे। 

 20 नवम्बर : यूपी शिया केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मंदिर का निर्माण अयोध्या में किया जा सकता है और मस्जिद का लखनऊ में। 

 एक दिसम्बर : इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती देते हुए 32 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने याचिका दायर की।

 आठ फरवरी 2018 : सिविल याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई शुरू की।

14 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने स्वामी की याचिका सहित सभी अंतरिम याचिकाओं को खारिज किया।

छह अप्रैल : राजीव धवन ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर 1994 के फैसले की टिप्पणियों पर पुनर्विचार के मुद्दे को बड़े पीठ के पास भेजने का आग्रह किया। 

छह जुलाई : यूपी सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि कुछ मुस्लिम समूह 1994 के फैसले की टिप्पणियों पर पुनर्विचार की मांग कर सुनवाई में विलंब करना चाहते हैं। 

 20 जुलाई : उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा।

27 सितम्बर : उच्चतम न्यायालय ने मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजने से इंकार किया। मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर को तीन सदस्यीय नयी पीठ में होगी।

29 अक्टूबर : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई उचित पीठ के समक्ष जनवरी के पहले हफ्ते में तय की जो सुनवाई के समय पर निर्णय करेगी। 

12 नवम्बर : अखिल भारत हिंदू महासभा की याचिकाओं पर जल्द सुनवाई से उच्चतम न्यायालय का इंकार।

चार जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मालिकाना हक मामले में सुनवाई की तारीख तय करने के लिए उसके द्वारा गठित उपयुक्त पीठ दस जनवरी को फैसला सुनाएगी। 

आठ जनवरी : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया जिसकी अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई करेंगे और इसमें न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना, न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ शामिल होंगे। 

 दस जनवरी : न्यायमूर्ति यू यू ललित ने मामले से खुद को अलग किया जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई 29 जनवरी को नयी पीठ के समक्ष तय की। 

 25 जनवरी : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का पुनर्गठन किया। नयी पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर शामिल थे।

 26 फरवरी : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता का सुझाव दिया और फैसले के लिए पांच मार्च की तारीख तय की जिसमें तय किया जाता कि मामले को अदालत की तरफ से नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए अथवा नहीं। 

 छह मार्च : उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा कि क्या जमीन विवाद को मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाया जा सकता है या नहीं। 

 आठ मार्च : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता के लिए विवाद को एक समिति के पास भेज दिया जिसके अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला होंगे।

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