शिवसेना और बीजेपी के रिश्ते असामान्य, लोकसभा चुनावों के लिए नहीं होगा गठबंधन

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि प्रदेश की 48 में से 40 सीटें हमें जीतनी है। जिसके बाद अमित शाह ने भी इस बयान का उल्लेख किया।

महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों को लेकर एक बार फिर बीजेपी और शिवसेना के बीच द्वंद्व शुरू हो गया है, पिछली बार जब ऐसा हुआ था तो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ अकेले एक कमरे में मुलाकात की थी। जिसके बाद दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते सामान्य होते हुए दिखाई दे रहे थे। लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा लगातार बीजेपी को राफेल मामले में निशाने पर लिए जाने के बाद से देखा जा रहा है कि शिवसेना अब बीजेपी को आंख दिखा रही है। 

पिछले दिनों शिवसेना प्रमुख ने राफेल पर जेपीसी बनाए जाने का समर्थन किया तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री पर हमला बोलते हुए चौकीदार का नारा अपनी रैलियों में लगवाया। हालांकि, इसके बाद भी बीजेपी ने नरम रुख अख्तियार करते हुए उद्धव ठाकरे के बयानों को नजरअंदाज किया। 

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इसी बीच अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि प्रदेश की 48 में से 40 सीटें हमें जीतनी है। जिसके बाद अमित शाह ने भी इस बयान का उल्लेख किया। 

2014 का लोकसभा चुनाव

साल 2014 में हुए लोकसभा चुनावों से ठीक पहले शिवसेना ने बीजेपी के साथ अपना नाता समाप्त कर दिया। विशेषज्ञों ने माना था कि करीब ढाई दशक से एक साथ काम कर रही शिवसेना के भीतर इतना आत्मविश्वास भर गया था कि वह प्रदेश की आधी सीटें आसानी से जीत सकती है। हालांकि चुनाव नतीजों में साफ हो गया और शिवसेना के खेमे में 18 सीटें आई। 

बता दें कि शिवसेना के मुखपत्र सामना में छप रहे लेखों से यह तो साफ हो गया कि भले ही शिवसेना ने चुनावों के बाद बीजेपी को समर्थन देकर देवेंद्र फडणवीस को प्रदेश की सत्ता सौंप दी हो लेकिन वह खुद को इसके काबिल मानते थे। 

अमित शाह के साथ उद्धव ठाकरे की मुलाकात

जून के पहले सप्ताह में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के आवास मातोश्री में संपर्क फॉर समर्थन के मुहीम के जरिए भाजपा प्रमुख अमित शाह एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मुलाकात की। यह मुलाकात एक कमरे में हुई जहां पर इन तीनों नेताओं के अलावा आदित्य ठाकरे मौजूद थे। इस मुलाकात के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि शिवसेना और बीजेपी के बीच रिश्ते सामान्य हो गए। 

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निकाय चुनाव से पहले बीजेपी और शिवसेना के बीच द्वंद्व

जून में हुई मुलाकात से पहले फरवरी में महाराष्ट्र में निकाय चुनाव हुए। इन चुनावों के बीच में बीजेपी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर सामना पर प्रतिबंध लगाने की गुहार लगाई। बीजेपी ने यह पत्र लिखा ही था कि उद्धव ठाकरे ने बीजेपी को निशाने में लेते हुए कहा कि क्या बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का मुंह बंद करा पाएगी।

सामना में छप रहे लेख में ऐसे ही बयानों के ढेर लग गए। हालांकि जब दोनों राजनीतिक दलों की मुलाकात हुई तो सामना में ठाकरे की तर्ज पर लेख छपा कि सरकार को सत्ता संभालते हुए चार साल बीत गए और उनके पास राजग के साथ मुलाकात करने का वक्त था मगर हमारे साथ नहीं। वहीं, इस मुलाकात को चुनावी रणनीति करार दिया और यह दर्शा दिया कि एक बार फिर वह आने वाले लोकसभा चुनावों में अपने दम पर प्रदेश की सीटें हासिल करेंगे।

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कांग्रेस नेताओं एवं गठबंधन का समर्थन करते हुए दिखे ठाकरे

कई बार ऐसे मौके सामने आए जहां पर कांग्रेसी नेताओं एवं कांग्रेस के साथ की राजनीतिक पार्टियों के समर्थन पर सामना मे लेख छपा। अमित शाह द्वारा सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर सवाल खड़ा करने के बाद सामना ने लिखा कि चुनावों के दौरान सोशल मीडिया के जरिए जनता को बरगलाने के बाद आज उपदेश देने आई है बीजेपी। 

पिछले साल अक्टूबर में सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए बीजेपी एक नया कानून ले कर आ रही थी। जिसके बाद सामना ने लिखा कि बीजेपी ने विरोधियों की बदनामी, अवमानना और दुष्प्रचार के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया और पर्दाफाश होने के बाद कानून की बात कर रही है।

इसी के बाद शिवसेना ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार का समर्थन करते किया और पवार का बयान छापा कि अभिव्यक्ति की आजादी वाले युवकों अपने विचार व्यक्त करते समय अपना एक पैर कारागृह में रखकर सोशल मीडिया में बोलते रहो।

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ऐसे कई मौके आए जब शिवसेना ने कांग्रेसियों का या फिर उनसे वास्ता रखने वाले राजनीतिक पार्टियों का समर्थन किया हो। हाल ही में राफेल मामले में कांग्रेस का समर्थन करते हुए जेपीसी की मांग की। उससे पहले राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री को चौकीदार चोर कहने वाले बयान का उपयोग अपनी रैलियों में करते हुए देखे गए।

विशषज्ञों का मानना है कि पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद शिवसेना को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि देश में बीजेपी की छवि धूमिल हुई है एवं 2019 के चुनावों में बीजेपी एवं उनके साथी पार्टियों को काफी नुकसान होने वाला है। ऐसे में शिवसेना अपने दम पर प्रदेश का चुनाव लड़ना चाहेगी और फिर चुनावों के बाद स्थिति को टटोलते हुए उस राजनीतिक पार्टी के साथ गठबंधन कर सकती है, जिसकी सरकार बनने के आसार हों। 

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शिवसेना नेताओं के बीच फूट के आसार

मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक शिवसेना के सांसदों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन करना चाहिए और मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए, तभी हम सभी सीटों को जीत पाएंगे। जबकि शिवसेना के राज्यसभा सांसदों की माने तो उनका साफ कहना है कि प्रदेश में इस बार हमें किसी के साथ गठबंधन करने की जरुरत नहीं है। पिछले लोकसभा चुनावों की तर्ज पर इस बार भी हमें अकेले ही चुनाव लड़ना चाहिए। ऐसे में यह माना जा रहा है कि बीजेपी के साथ गठबंधन के लिए शिवसेना के भीतर फूट पड़ सकती है और जैसा देखा गया कि दल-बदल का खेल शुरू हो सकता हैं। 

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