पारसियों के अंतिम संस्कार से जुड़ी परंपरागत पर बवाल क्यों? कोर्ट में की गयी संशोधन की मांग

funeral of Parsis

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र और गुजरात सरकार से उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें पारसी समुदाय के उन सदस्यों के पारंपरिक रूप से अंतिम संस्कार की मांग की गई थी, जिन्होंने कोविड-19 से अपनी जान गंवा दी थी।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र औरc से उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें पारसी समुदाय के उन सदस्यों के पारंपरिक रूप से अंतिम संस्कार की मांग की गई थी, जिन्होंने कोविड-19 से अपनी जान गंवा दी थी। सूरत पारसी पंचायत बोर्ड द्वारा दायर अपील में गुजरात उच्च न्यायालय के 23 जुलाई के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसने बोर्ड की याचिका को खारिज कर दिया है। पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार की ‘दोखमे नशीन’ परंपरा है जिसमें शव को गिद्धों व अन्य पक्षियों के लिए खुले में छोड़ दिया जाता है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ को बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरीमन ने बताया कि यह मुद्दा वायरस के एक नए स्वरूप के कारण प्रासंगिक था। नरीमन ने कहा कि पारसियों में पार्थिव शरीर उठाने वालों का एक समुदाय होता है और अगर किसी का निधन हो जाता है तो परिवार के सदस्य पार्थिव शरीर को नहीं छूते हैं और केवल विशिष्ट समुदाय के लोग ही ऐसा कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि कोविड-19 पीड़ितों के अंतिम संस्कार और शवों को दफनाने के लिए सामान्य दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं लेकिन पारसी समुदाय के बारे में कुछ भी नहीं है। पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर विचार करने की आवश्यकता है और इस पर प्रकाश डाला कि इस संबंध में निर्णय है, जो कुछ धर्मों में आवश्यक अधिकारों से संबंधित है। पीठ ने कहा कि वह शीतकालीन अवकाश के बाद अदालत के दोबारा खुलने पर मामले की सुनवाई करेगी।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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