संघ प्रभुत्व नहीं चाहता, सत्ता में कौन आता है इससे भी मतलब नहीं: भागवत

sangh-does-not-want-domination-does-not-mean-even-in-power-says-mohan-bhagwat
[email protected] । Sep 18 2018 8:43AM

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक मोहन भागवत ने संगठन की विचारधारा को लेकर आशंकाओं को दूर करने के अनूठे प्रयास में सोमवार को कहा कि संघ अपना प्रभुत्व नहीं चाहता है।

नयी दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक मोहन भागवत ने संगठन की विचारधारा को लेकर आशंकाओं को दूर करने के अनूठे प्रयास में सोमवार को कहा कि संघ अपना प्रभुत्व नहीं चाहता है और उसे इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि सत्ता में कौन आता है। संघ के बारे में व्यापक जागरुकता की मंशा के तहत यहां आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम ‘भविष्य का भारत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण’ के पहले दिन संघ प्रमुख ने करीब डेढ घंटे के संबोधन में इस बात पर भी जोर दिया कि आरएसएस सबसे अधिक लोकतांत्रिक संगठन है और ना तो किसी पर अपनी विचारधारा थोपता है और ना ही अपने संबद्ध संगठनों को दूर से बैठकर चलाता है। एक तरह से उन्होंने इस आलोचना को खारिज किया कि भाजपा को संघ रिमोट कंट्रोल से चलाता है।

संघ के इस कार्यक्रम से लगभग सभी बड़े विपक्षी दलों ने दूरी बनाई जिन्हें आमंत्रित किया गया था। हालांकि इसमें भाजपा के कई नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के साथ बॉलीवुड अभिनेता, कलाकार और शिक्षाविदों ने भाग लिया। भागवत ने कहा कि भारतीय समाज विविधताओं से भरा है, किसी भी बात में एक जैसी समानता नहीं है, इसलिये विविधताओं से डरने की बजाए, उसे स्वीकार करना और उसका उत्सव मनाना चाहिए। भागवत ने संघ की कार्यप्रणाली की जानकारी देने के साथ ही उन मसलों पर भी राय रखी जिन्हें लेकर अक्सर उस पर सवाल उठाए जाते हैं।

संघ प्रमुख ने साफ किया कि उनका संगठन अपना प्रभुत्व नहीं चाहता। उन्होंने कहा कि अगर संघ के प्रभुत्व के कारण कोई बदलाव होगा तो यह संघ की पराजय होगी । हिन्दू समाज की सामूहिक शक्ति के कारण बदलाव आना चाहिए। भागवत ने अपने संबोधन में सरकार या किसी संगठन का नाम नहीं लिया। उन्होंने कहा, संघ का स्वयंसेवक क्या काम करता है, कैसे करता है, यह तय करने के लिये वह स्वतंत्र है। 

उन्होंने कहा, संघ केवल यह चिंता करता है कि वह गलती न करे। सरकार और संघ के बीच समय समय पर होने वाली समन्वय बैठकों का परोक्ष तौर पर जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि समन्वय बैठक इसलिये होती है कि स्वयंसेवक विपरीत परिस्थितियों में अलग अलग क्षेत्रों में काम करते हैं। ऐसे में उनके पास कुछ सुझाव भी होते हैं। वे अपने सुझाव देते हैं, उस पर अमल होता है या नहीं होता इससे उन्हें मतलब नहीं।

संघ में महिलाओं की भागीदारी के सवाल पर भागवत का कहना था कि डा. हेडगेवार के समय ही यह तय हुआ था कि राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं के लिए संघ के समानांतर कार्य करेगी। उन्होंने साफ किया कि इस सोच में बदलाव की जरूरत यदि पुरुष व महिला संगठन दोनों ओर से महसूस की जाती है तो विचार किया जा सकता है अन्यथा यह ऐसे ही चलेगा।

भागवत ने कहा कि कांग्रेस के रूप में देश की स्वतंत्रता के लिये सारे देश में एक आंदोलन खड़ा हुआ, जिसके अनेक सर्वस्वत्यागी महापुरूषों की प्रेरणा आज भी लोगों के जीवन को प्रेरित करती है। विषय पर तीन दिवसीय चर्चा सत्र के पहले दिन सरसंघचालक ने कहा कि 1857 के बाद देश को स्वतंत्र कराने के लिये अनेक प्रयास हुए जिनको मुख्य रूप से चार धाराओं में रखा जाता है।

कांग्रेस के संदर्भ में उन्होंने कहा कि एक धारा का यह मानना था कि अपने देश में लोगों में राजनीतिक समझदारी कम है। सत्ता किसकी है, इसका महत्व क्या है, लोग कम जानते हैं और इसलिये लोगों को राजनीतिक रूप से जागृत करना चाहिए। भागवत ने कहा, ‘और इसलिये कांग्रेस के रूप में बड़ा आंदोलन सारे देश में खड़ा हुआ । अनेक सर्वस्वत्यागी महापुरूष इस धारा में पैदा हुए जिनकी प्रेरणा आज भी हमारे जीवन को प्रेरणा देने का काम करती है।’

उन्होंने कहा कि इस धारा का स्वतंत्रता प्राप्ति में एक बड़ा योगदान रहा है। सरसंघचालक ने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में योजनाएं कम नहीं बनी, राजनीति के क्षेत्र में आरोप लगते रहते हैं, उसकी चर्चा नहीं करूंगा, लेकिन कुछ तो ईमानदारी से हुआ ही है। सरसंघचालक ने कहा कि देश का जीवन जैसे जैसे आगे बढ़ता है, तो राजनीति तो होगी ही और आज भी चल रही है। सारे देश की एक राजनीतिक धारा नहीं है। अनेक दल है, पार्टियां हैं।

 इसके विस्तार में जाए बिना उन्होंने कहा, ‘अब उसकी स्थिति क्या है, मैं कुछ नहीं कहूंगा। आप देख ही रहे हैं।’ भागवत ने कहा, ‘हमारे देश में इतने सारे विचार हैं,लेकिन इन सारे विचारों का मूल भी एक है और प्रस्थान बिंदु भी एक है। विविधताओं से डरने की बात नहीं है, विविधताओं को स्वीकार करने और उसका उत्सव मनाने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि विविधता में एकता का विचार ही मूल बिंदु है और इसलिये अपनी अपनी विविधता को बनाये रखें और दूसरे की विविधता को स्वीकार करें।

भागवत ने इसके साथ ही संयम और त्याग के महत्व को भी रेखांकित किया। सरसंघचालक ने कहा कि संघ की यह पद्धति है कि पूर्ण समाज को जोड़ना है और इसलिये संघ को कोई पराया नहीं, जो आज विरोध करते हैं, वे भी नहीं। संघ केवल यह चिंता करता है कि उनके विरोध से कोई क्षति नहीं हो। भागवत ने कहा, ‘हम लोग सर्व लोकयुक्त वाले लोग हैं, ‘मुक्त वाले नहीं। सबको जोड़ने का हमारा प्रयास रहता है, इसलिये सबको बुलाने का प्रयास करते हैं।’

उन्होंने कहा कि आरएसएस शोषण और स्वार्थ रहित समाज चाहता है। संघ ऐसा समाज चाहता है जिसमें सभी लोग समान हों। समाज में कोई भेदभाव न हो। युवकों के चरित्र निर्माण से समाज का आचरण बदलेगा। व्यक्ति और व्यवस्था दोनों में बदलाव जरूरी है। एक के बदलाव से परिवर्तन नहीं होगा। विज्ञान भवन में हो रहे इस कार्यक्रम में सोमवार को फिल्मी जगत से जुड़े नवाजुद्दीन सिद्दीकी, फिल्मकार मधुर भंडारकर, अन्नू कपूर, अनु मलिक, मनीषा कोइराला जैसे बालीवुड के कलाकार भी मौजूद थे। इनके अलावा मेट्रो मैन नाम से मशहूर हुए ई श्रीधरन, राजनीतिक नेता अमर सिंह, गायक हंसराज हंस आदि भी शामिल हुए।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़