Bhima Koregaon Case: वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को SC से जमानत
दोनों ने तर्क दिया कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था, भले ही उसने सह-अभियुक्त सुधा भारद्वाज को जमानत दे दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भीमा कोरेगांव मामले में दो आरोपियों वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को जमानत दे दी। गोंसाल्वेस और फरेरा 2018 से जेल में बंद हैं और बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद उन्होंने जमानत के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। दोनों ने तर्क दिया कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था, भले ही उसने सह-अभियुक्त सुधा भारद्वाज को जमानत दे दी थी।
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भीमा कोरेगांव मामला कोरेगांव-भीमा की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए पुणे के शनिवार वाडा में आयोजित एक सम्मेलन और उसके बाद हुई हिंसा से संबंधित है, जिसके परिणामस्वरूप एक युवक की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। छह महीने बाद अक्टूबर 2018 में, कार्यकर्ता वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया और उन पर आरोप लगाए गए। इन दोनों को अन्य कार्यकर्ताओं सुधा भारद्वाज, पी वर वर राव और गौतम नवलखा के साथ गिरफ्तार किया गया था, और सभी को शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर घर में नजरबंद कर दिया गया था।
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क्या है भीमा कोरेगांव का इतिहास
कोरेगांव भीमा में एक स्तंभ है जिसे विजय स्तंभ कहा जाता है। इतिहास की मानें तो 202 साल पहले यानी 1 जनवरी 1818 में ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के पेशवा गुट के बीच, कोरेगांव भीमा में जंग लड़ी गई थी। इस लड़ाई में अंग्रेजों और आठ सौ महारों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के 28 हज़ार सैनिकों को पराजित कर दिया था। महार सैनिक यानी दलित, ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से लड़े थे और कहा जाता है कि इसी युद्ध के बाद पेशवा राज का अंत हो गया। महार जिन्हें महाराष्ट्र में दलित कहा जाता है। उस दौर में देश ऊंच-नीच और छुआछूत जैसी कुरीतियों से घिरा हुआ था। अगड़ी जातियां दलितों को अछूत मानती थीं। महाराष्ट्र में मराठा अगड़ी जाति से हैं। वहीं महार समुदाय दलित वर्ग से है। अंग्रेजों ने इसका फायदा उठाया और हिंदुओं को बांटने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी ने दलितों में महार के नाम पर एक अलग से रेजीमेंट बनाई। इसमें दलितों ने अंग्रेजों का साथ दिया और मराठों को पराजित कर दिया। यहां शौर्य दिवस हर साल मनाया जाता है और करीब 15 से 20 हजार दलित यहां इकट्ठा होते हैं। लेकिन साल 2018 में यहां करीब साढ़े तीन लाख दलित इकट्ठा हुए। वजह थी कोरेगांव भीमा की लड़ाई को 200 साल पूरे हुए थे। लेकिन 1 जनवरी को सवर्णों के साथ हुई झड़प में ये गांव दहल उठा और बाद में पूरा महाराष्ट्र।
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