केजरीवाल के साथ कांग्रेस के गठबंधन से नहीं है शीला दीक्षित को ऐतराज
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता एवं (1998-2013 तक) 15 वर्ष दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकीं दीक्षित ने कहा कि आप के साथ गठबंधन को लेकर पार्टी के किसी निर्णय पर वह कोई प्रश्न नहीं उठाएंगी। दीक्षित एक वक्त केजरीवाल की कटु आलोचक रह चुकीं हैं।
नयी दिल्ली। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच संभावित गठबंधन के कयासों के मद्देनजर पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने बुधवार को कहा कि अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली पार्टी के साथ इस तरह का कोई समझौता करना है अथवा नहीं, इस पर कोई निर्णय पार्टी आलाकमान लेंगे। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता एवं (1998-2013 तक) 15 वर्ष दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकीं दीक्षित ने कहा कि आप के साथ गठबंधन को लेकर पार्टी के किसी निर्णय पर वह कोई प्रश्न नहीं उठाएंगी। दीक्षित एक वक्त केजरीवाल की कटु आलोचक रह चुकीं हैं।
Former Delhi CM, Sheila Dikshit on possibility of an alliance with AAP: Whatever the High Command decides, we will accept it. pic.twitter.com/PKqLmOuwIr
— ANI (@ANI) December 19, 2018
माना जा रहा है कि राष्ट्रीय राजधानी में लोकसभा की सात सीटों के लिए गठबंधन की संभावनाएं तलाशने दोनों पार्टियां संपर्क में हैं। आप के साथ गठबंधन की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर दीक्षित ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं है। इस पर आलाकमान को निर्णय लेना है। उनका जो भी निर्णय हो, मैं उस पर प्रश्न नहीं उठाऊंगी।’’हालांकि दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने दिल्ली में आप के साथ गठबंधन की संभावना से लगातार इनकार किया है। इस वर्ष जून में दीक्षित के साथ दिल्ली कांग्रेस कार्यालय में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में माकन ने दिल्ली में आप के साथ उनकी पार्टी के हाथ मिलाने की संभावना से स्पष्ट इनकार किया था।
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वहीं आप के सूत्रों का कहना है कि दोनों पार्टियों के बीच पर्दे के पीछे बातचीत चल रही है। हालांकि दोनों में से किसी भी पक्ष ने अधिकारिक तौर पर अभी इस पर कुछ नहीं कहा है। अगर दोनों पार्टियां दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए साथ आ जाती हैं तो भाजपा को 2014 में जीतीं सात सीटों को बचाए रखने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिल्ली की सातों सीटों पर कब्जा किया था और कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया था। आप दूसरे स्थान पर और कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही थी। बहरहाल, छह सीटों पर आप और कांग्रेस को मिले कुल वोट भाजपा को मिले वोट से अधिक थे।
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