Political Party: महाराष्ट्र जीतने के लिए दलित-ओबीसी वोटों पर शिंदे सरकार की नजर, जानिए क्या है रणनीति
हरियाणा की सियासी बाजी जीतने के बाद अब उसी तर्ज पर पार्टी महाराष्ट्र की सियासी लड़ाई फतह करने का प्लान बनाया है। ऐसे में देखना काफी दिलचस्प होगा कि क्या शिंदे सरकार महाराष्ट्र में जीत का परचम लहरा पाएगी।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव नतीजों ने महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी को सियासी बूस्टर दिया है। सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली भाजपा-शिवसेना-एनसीपी की गठबंधन सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले ओबीसी और दलित समुदाय को साधने के लिए बड़ा सियासी दांव चल दिया है। हरियाणा की सियासी बाजी जीतने के बाद अब उसी तर्ज पर पार्टी महाराष्ट्र की सियासी लड़ाई फतह करने का प्लान बनाया है। ऐसे में देखना काफी दिलचस्प होगा कि क्या शिंदे सरकार महाराष्ट्र में जीत का परचम लहरा पाएगी।
शिंदे सरकार ने राज्य विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य अनुसूचित आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाले अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। महाराष्ट्र विधानमंडल के अगले सत्र में अध्यादेश पेश किया जाएगा। इसके साथ ही केंद्र सरकार से ओबीसी की क्रीमी लेयर की तय सीमा 8 से बढ़ाकर 15 लाख करने की मांग के लिए प्रस्ताव पास किया गया है। बता दें कि ओबीसी को आरक्षण के लिए गैर क्रीमी लेयर लेना पड़ता है।
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शिंदे सरकार ने चला सियासी दांव
जिस तरह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिंदे सरकार ने दोनों अहम फैसले लिए हैं। ऐसे में इसे भाजपा-शिवसेना और एनसीपी की चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। शिंद कैबिनेट के यह दोनों ही फैसले इसलिए भी अहम माने जा रहे हैं, क्योंकि राज्य में एनसीपी प्रमुख शरद पवार काफी समय से ओबीसी के क्रीमी लेयर की निर्धारित सीमा को बढ़ाने की मांग करते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि शिंदे वाली बीजेपी-शिवसेना सरकार इस मुद्दे की मांगकर बड़ा सियासी दांव खेल दिया है।
महाराष्ट्र में विनिंग फॉर्मूले का इस्तेमाल
बीजेपी ने महाराष्ट्र की चुनावी बाजी जीतने के लिए हरियाणा के विनिंग फॉर्मूले से बड़ा दांव चला है। राज्य सरकार ने चुनाव से पहले दलित और ओबीसी वोटों को जोड़ने के लिए बड़ा फैसला लिया है। भारतीय जनना पार्टी मराठा आरक्षण आंदोलन के चलते कोई भी सियासी रिस्क नहीं लेना चाहती है। इसलिए पार्टी दलित और ओबीसी वोटों को लामबंद करने की जुगत में लगी है। बता दें कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी और दलित वोट की वजह से भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन को बड़ा झटका लगा था।
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