दिल्ली के नेताओं को नेतृत्व योग्य नहीं मानती कांग्रेस, सिद्धू या शत्रुघ्न को लाने की तैयारी !

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अंकित सिंह । Aug 1 2019 1:59PM

राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का टकराव तो मुंबई में मिलिंद देवड़ा और संजय निरूपम के बीच की जंग मीडिया की सुर्खियों में रहे। कई और राज्य हैं जहां यह देखने को मिला जिसमें पंजाब, दिल्ली मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य शामिल हैं।

लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस सबसे ज्यादा संकट में है। पार्टी के लिए एक मुसीबत जाती नहीं कि दूसरी आ जाती है। राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से हटने के बाद पार्टी जहां नए अध्यक्ष की तलाश में है वहीं लगभग सभी राज्य इकाईयों से किसी ना किसी तरह की मनमुटाव की खबरें आ रही हैं। ये खबरें पार्टी के लिए लगातार सिरदर्द बनती जा रही हैं। पार्टी की स्थिति ऐसी है कि आलाकमान द्वारा बुलाई जा रही बैठकों को भी किसी ना किसी कारणवश टाल दिया जा रहा है। खैर, हम राज्य इकाईयों की बात कर रहे हैं। राहुल गांधी की जवाबदेही वाली बात को लेकर पार्टी के ज्यादातर नेता कांग्रेस के प्रति अपनी वफादारी सिद्ध करने में लगे हैं और एक के बाद एक अपना इस्तीफा सौंपने लगे। कांग्रेस के लिए यह सब तो ठीक था पर जिस तरह से कई राज्यों में उसके नेता एक-दूसरे से भिड़ते नजर आये वह कही ना कही पार्टी के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ा करता है। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का टकराव तो मुंबई में मिलिंद देवड़ा और संजय निरूपम के बीच की जंग मीडिया की सुर्खियों में रहे। कई और राज्य हैं जहां यह देखने को मिला जिसमें पंजाब, दिल्ली मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य शामिल हैं। 

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आज हम बात दिल्ली की करते हैं। दिल्ली की पूर्व सीएम और कद्दावर नेता शीला दीक्षित का निधन हो जाने के बाद दिल्ली में पार्टी के लिए एक चुनौती भरा समय आ गया है। शीला दीक्षित ने अपने निधन के समय तक राज्य कांग्रेस की कमान संभाले रखी थी। हालांकि उनको लेकर भी दिल्ली कांग्रेस में मतभेद और मनमुटाव की खबरें आती रहती थीं। दिल्ली कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको और अजय माकन से शीला दीक्षित की तनातनी की खबरे आती रहती थी। खैर, दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने में कुछ ही महीने बाकी हैं और ऐसे में शीला दीक्षित के अचानक निधन से दिल्ली कांग्रेस के समक्ष एक ऐसे नेता की तलाश करने की चुनौती उत्पन्न हो गई है जो उनकी जिम्मेदारी संभाल सके। दिल्ली कांग्रेस इकाई के सामने फिलहाल दो चुनौतियां हैं, पहला- नया नेता तलाशना और तो दूसरी-पार्टी में एकजुटता कायम करना। नया अध्यक्ष तलाशना कांग्रेस के लिए जितना मुश्किल है उससे भी ज्यादा नए नेता को दिल्ली इकाई को एकजुट करने की चुनौती से भी जूझना पड़ सकता है। 

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पार्टी के तीन कार्यकारी अध्यक्षों हारुन युसूफ, देवेन्द्र यादव और राजेश लिलोठिया के अलावा वरिष्ठ नेता जेपी अग्रवाल, महाबल मिश्रा, एके वालिया और सुभाष चोपड़ा अधयक्ष की रेस में तो है पर पार्टी की पसंद नहीं हैं। अजय माकन पहले ही स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दे चुके हैं तो अमरिंदर लवली पहले जैसे विश्वासी रहे नहीं। पार्टी ऐेसे चेहरे की भी तलाश कर रही है जो लोकप्रिय भी हों और दिल्ली में बसे बाहरी को भी आकर्षित करते हो। ऐसे में जो दो नाम राजनीति गलियारे में तैर रहे हैं वह हैं नवजोत सिंह सिद्धू और शत्रुघ्न सिन्हा के। पार्टी सूत्रों का माने तो अब तक इन नामों को लेकर कोई आधिकारिक चर्चा नहीं हुई है और दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष का फैसला पार्टी ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष तय किए जाने के बाद ही होगा। नवजोत सिंह सिद्धू और शत्रुघ्न सिन्हा दोनों ने कुछ समय पहले ही भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थामा है। हालांकि दोनों लोकप्रिय चेहरे हैं और पार्टी को दिल्ली में फायदा पहुंचा सकते हैं। प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी को थामने के लिए भी दिल्ली के बाहर से अध्यक्ष लाने का फैसला लिया जा सकता है। कांग्रेस पहले भी ऐसा कर चुकी है जब दिल्ली में एचकेएल भगत और सज्जन कुमार के बीच तनातनी रहती थी तो सोनिया गांधी ने यूपी से शीला दीक्षित को बुलाया। कांग्रेस का यह प्रयोग सफल रहा था।

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नवजोत सिंह सिद्धू- पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह से मनमुटाव के कारण सिद्धू पंजाब कांग्रेस में अकेले पड़ गए है। सिद्धू और कैप्टन के बीच की दरार तब जाकर सबके सामने आ गई जब गत दिसंबर में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान सिद्धू ने संवाददताओं द्वारा पूछे एक एक सवाल के जवाब में कहा कि कैप्टन को मैं नहीं जानता और मेरे कैप्टन सिर्फ राहुल गांधी हैं। कैप्टन को सिद्धू का पाक प्रेम भी पसंद नहीं आता और उन्होंने पंजाब में पार्टी के हार के लिए सिद्धू को ही जिम्मेदार मान लिया। वहीं सिद्धू भी किसी ना किसी बहाने कैप्टन पर हल्ला बोलते रहे। कैप्टन ने कैबिनेट के फेरबदल में नवजोत सिंह सिद्धू से स्थानीय प्रशासन और पर्यटन तथा संस्कृति विभागों का प्रभार वापस लेकर उन्हें बिजली तथा नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का कार्यभार सौंपा था। पर सिद्धू ने काम संभालने की बजाए पंजाब कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। लोकसभा चुनाव हो या फिर कई राज्यों के विधानसभा चुनाव, सिद्धू पार्टी के स्टार प्रचारक रहे हैं। सिद्धू राहुल और सोनिया के करीबी भी है। ऐसे में माना जा रहा है कि उन्हें पार्टी पंजाब से बाहर निकालकर दिल्ली की कमान सौंप सकती है। पर अब यह सवाल उठता है कि क्या सिद्धू पंजाब से बाहर निकलने को तैयार होंगे क्योंकि उन्होंने भाजपा छोड़ते समय कहा था कि पार्टी उन्हें पंजाब से बाहर रखना चाहती थी जो उन्हें मंजूर नहीं था। अब यह देखना होगा कि अगर कांग्रेस सिद्धू को दिल्ली इकाई की कमान सौंपती है तो वह क्या करते हैं। 

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शत्रुघ्न सिन्हा- अभिनय के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने राजनीति में भी अच्छा खासा सफर तय कर लिया है। भाजपा में शामिल होने वाले वह पहले सिने कलाकार थे जो पार्टी के टिकट पर राज्यसभा भी पहुंचे और लोकसभा भी। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे पर मोदी-शाह की भाजपा में वह फिट नहीं बैठ पाए। पार्टी के खिलाफ बगावत करने के बाद लोकसभा चुनाव से पहले वह कांग्रेस में शामिल हो गए। पहले यह कहा जा रहा था कि पार्टी उन्हें दिल्ली से चुनावी मैदान में उतारेगी हालांकि वह अपनी परंपरागत सीट पटना साहिब से चुनाव लड़े पर भाजपा के रविशंकर प्रसाद से हार गए। उसके बाद से राजनीतिक परिदृश्य से लगभग गायब हैं। हां, ट्विटर के जरिए अपनी राजनीतिक दिलचस्पी जरूर दिखाते हैं। कांग्रेस उनके राजनीति कद को देखते हुए उन्हें कोई नई जिम्मेदारी सौंपना चाहती है। ऐसे में यह कहा जा रहा है कि उन्हें दिल्ली इकाई की कमान सौंपी जा सकती है। चूंकि शत्रुघ्न सिन्हा बिहार से आते हैं और दिल्ली में पूर्वांचलियों की तदाद अच्छी है। ऐसे में वह उन्हें साधने में कायमब हो सकते हैं। दिल्ली में भाजपा की कमान मनोज तिवारी के हाथ में है। ऐसे में कांग्रेस का यह कदम भाजपा के लिए परेशानी भी पैदा कर सकता है। 

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