वोट बैंक की राजनीति के चलते नदी जोड़ो परियोजना पर सहयोग नहीं कर रहे राज्य: कटारिया

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[email protected] । Jan 13 2020 6:05PM

वह ‘कृषि में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने’ पर एक कार्यशाला को संबोधित करने महाराष्ट्र के औरंगाबाद आए थे। मंत्री ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि फसलों में विविधता लाने और कम पानी उपभोग करने वाली फसलों को किसानों द्वारा महाराष्ट्र के मराठवाड़ा जैसे सूखा प्रभावित इलाकों में उपजाने की जरूरत है।

औरंगाबाद (महाराष्ट्र)। केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री रतन सिंह कटारिया ने सोमवार को कहा कि केंद्र नदी-जोड़ो परियोजना के लिए तैयार है लेकिन राज्य ‘वोट बैंक की राजनीति’ के चलते परियोजना पर सहयोग नहीं कर रहे हैं। कटारिया ने यहां संवाददाताओं से कहा कि इस वक्त केंद्र सरकार राज्यों के लिए परियोजना को लागू करना अनिवार्य नहीं कर सकती। उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र सरकार नदी-जोड़ो परियोजना पर काम कर रही है। ऐसी कई नदियां हैं जो जोड़ी जा सकती हैं। चार की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर)भी तैयार है। लेकिन राज्य सरकारें इन पर सहयोग नहीं कर रही हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कई राज्य अतिरिक्त पानी होने के बावजूद उसे साझा करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें डर है कि वे यदि इस परियोजना पर आगे बढ़ते हैं तो वे वोट खो देंगे।’’

वह ‘कृषि में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने’ पर एक कार्यशाला को संबोधित करने महाराष्ट्र के औरंगाबाद आए थे। मंत्री ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि फसलों में विविधता लाने और कम पानी उपभोग करने वाली फसलों को किसानों द्वारा महाराष्ट्र के मराठवाड़ा जैसे सूखा प्रभावित इलाकों में उपजाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘फसलों की खेती भू स्थलाकृति के मुताबिक तय की जानी चाहिए और राज्य सरकारों को इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए।’ उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि इसके लिए हरियाणा में किसानों को प्रोत्साहित करने की एक योजना शुरू की गई है जहां प्रोत्साहन राशि उन कृषकों को दी जाती है जो गन्ना या धान के बजाय अन्य फसल उगाते हैं। 

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कटारिया ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र को अपनी फसल नीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘महाराष्ट्र में 55 फीसदी आबादी कृषि पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है। लेकिन राज्य में सिंचित भूमि महज 18 फीसदी है।’’ उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि कपास और गन्ना की फसलें भारी मात्रा में पानी का उपभोग करती हैं तथा ये फसलें यहां काफी उपजाई जाती हैं। 

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