भोपाल गैस त्रासदी की 35वीं बरसी पर आज भी जख्म ताजा

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दिनेश शुक्ल । Dec 3 2019 4:49PM

ऐसा माना जाता है क भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 की रात हुये गैस कांड के मुख्य आरोपी वॉरेड एडरसन को भोपाल से भगाने मे तात्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का ही हाथ था। गैस कांड की जांच के लिये बने कोच्चर आयोग को अर्जुन सिंह के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले हैं।

भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी की 35 वीं बरसी पर आज भी भोपाल के लोग अपने लिए न्याया की गुहार लगा रहे है। कहते है कि जख्म समय के साथ भर जाते है लेकिन यह जाने कैसा जख्म है कि भरता ही नहीं।  सन् 1985 में 2-3 दिसम्बर की दरमयानी रात को यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकली जहरीली मिक गैस ने जहाँ हजारों लोगों की जान ले ली तो वही लाखों लोगों को सारा जीवन बीमारी के साथ जीने को मजबूर कर दिया। तीन दशक बीतने के बाद भी भोपाल गैस पीड़तों के प्रति सरकार की असंवेदनशीलता उन्हें आज भी आंदोलनों के दौर से निकलने नहीं दे रही। पुराने भोपाल के छावनी इलाके में रहने वाले मोहम्मद हनीफ, दर्द भरी हंसी के साथ बोलते है, सरकार क्या करेगी कुछ भी नहीं कर सकता कोई... इनकी ये हंसी केन्द्र और राज्य सरकार का उपहास उड़ा रही है। जिन्होनें आज तक भोपाल गैस पीडितों को न तो समुचित मुआबजा दिला पाया और न ही न्याय। मोहम्मद हनीफ को 35 साल पहले निकली जहरीली गैस कई बीमारीयाँ दे गई थी। आज भी हनीफ 10 तरह की दवाईयाँ खाते है। यही हाल कुछ भोपाल के रहने वाले विजय सोनी का भी है जो अपनी पत्नी के साथ गंभीर बीमारीयों से जूझ रहे है।

तीन दशक से भोपाल गैस पीडितों के लिए संघर्ष कर रहे भोपाल गैस पीडित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने गैस पीड़ितों के लिए 35 साल संघर्ष किया। एक माह पहले उनका इंतेकाल हो गया। अब्दुल जब्बार भोपाल गैस पीड़ितों के प्रति बेरूखी को केन्द्र और राज्य सरकार की असंवेदनशीलता बताते थे। जिसकी वजह से आज भी भोपाल गैस पीडितों को न्याय नहीं मिल सका है।.यूनियन कार्बाइड और डाउ कैमिकल्स को लेकर सरकारे इतनी उदासीन रही की न तो अपराधियों को सही सजा मिली और न गैस पीडितों को समुचित मुआबजा। अब्दुल जब्बार कहते थे कि इससे बडी असंवेदनशीलता क्या होगी कि पेरिस में प्रधानमंत्री पर्यावरण को लेकर बडी बडी बात करते है लेकिन अपने ही लोगों के प्रति उनका रवैया असंवेदनशील है।

विश्व की भीषणतम त्रासदीयों मे गिने जाने वाले इस त्रासदी में 35 हजार से अधिक लोगों की अभी तक मौत हो गई तो वही 4 लाख से अधिक लोग कैंसर, ट्यूमर, कीडनी और आंखों सहित सांस गंभीर बीमारीयों से जूझ रहे है...जबकि गैस कांड में मारे गए लोगों के परिजन खासकर विधवाएं आज भी पेंशन के लिए संघर्ष कर रही है।यही कारण है कि 35 साल बीत जाने के बाद भी भोपाल गैस त्रासदी के जख्म आज भी भोपाल के सीने पर जस के तस है। भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एंड एक्शन के संयोजक सतिनाथ षडंगी कहते है कि भोपाल यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भोपाल गैस पीड़ित संगठनों ने मुआवज़ा, अपराधिक मामले और आज भी यूनियन कार्बाइड कारखाने में पडे ज़हरीले कचरे की सफाई के मुद्दों पर उनसे मिलने के लिए समय माँगा था। यह भी आशा की थी कि भोपाल दौरे में कार्बाइड कारखाने और उसके आस पास के प्रदूषित इलाके को देखेंगे और पीड़ितों के संगठनों से मुलाक़ात करेंगे...कलेक्टर को सौपे गए एक आवेदन के मार्फत संगठनों ने प्रधानमंत्री से मुआवज़ा, अपराधिक मामले और ज़हर सफाई पर बात करने के लिए 15 मिनट का समय माँगा था। भोपाल में हर रोज कई नए लोग इस जहरीले प्रदूषण का शिकार हो रहे है पर प्रधानमंत्री ने आज तक डाव केमिकल को भोपाल की सफाई के लिए मजबूर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

यूनियन कार्बाइड के मालिक को क्यों नहीं हुई सज़ा

ऐसा माना जाता है क भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 की रात हुये गैस कांड के मुख्य आरोपी वॉरेड एडरसन को भोपाल से भगाने मे तात्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का ही हाथ था। गैस कांड की जांच के लिये बने कोच्चर आयोग को अर्जुन सिंह के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले हैं। गैस आयोग ने अपनी रिपोर्ट मे कहा है कि अर्जुन सिंह ने ही बकायदा एफआईआर और गिरफ्तारी होने के बावजूद एडरसन को सरकारी विमान से रातों रात दिल्ली पहुंचा दिया था।

भोपाल में 2-3 दिसंबर की वो काली रात जब एक ही झटके मे यूनियन कार्बाइड से निकली ज़हरीली गैस ने 10 हज़ार लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। लेकिन 10 हज़ार मौत के ज़िम्मेदार यूका के मालिक वॉरेन एडरसन को पुलिस ने गिरफ्तार करने के बाद भी छोड दिया था। इतना ही नही वॉरेन एडरसन को मेहमान की तरह बकायदा 5 दिसंबर 1984 को मध्य प्रदेश सरकार के सरकारी विमान में बिठाकर दिल्ली लेजाकर छोड़ दिया गया यूनियन कार्बाइड जांच आयोग के सचिव रहे एस.एस. श्रीवास्तव बताते है कि तात्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के मौखिक आदेश पर यह सब हुआ था। दरअसल गैस कांड के दूसरे दिन भोपाल पहुंचे यूनियन कार्बाइड के मालिक वॉरेन एडरसन के खिलाफ भोपाल की हनुमानगंज थाना पुलिस ने एफआईआर दर्ज एडरसन को गिरफ्तार तो कर लिया गया। लेकिन अर्जुन सिंह के मौखिक आदेश के बाद उन्हे एयरपोर्ट ले जाया गया जहाँ से मध्यप्रदेश के विमान विभाग के 1984 के रिकॉर्ड और 5 दिसंबर के उडान के एंट्री रजिस्टर को सबूत बनाकर गैस कांड की जांच कर रहे कोच्चर आयोग ने पाया है कि एडरसन की फरारी के पीछे अर्जुन सिंह का हाथ था। हालाकि जांच पूरी करने के लिये आयोग ने राज्य सरकार से एक साल का वक्त ओर मांगा था।

अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित वेरो बीच  में 14 सितंबर 2014 को एडरसन की मौत हो गई। उसके जीवित रहते भारत सरकार उसे भारत नहीं ला पाई। एडरसन को किसने भगाया यह सवाल पिछले 35 साल से गैस पीडित पूछ रहे है। लेकिन ना तो राज्य और ना ही केन्द्र सरकार ने कभी यह राज़ उगला। एडरसन की रिहाई के सिर्फ कयास ही लगाये जाते रहे पर पुराने सरकारी दस्तावेज़ों ने यह राज़ उगला है। लेकिन भोपाल गैस कांड के लिये ज़िम्मेदार कौन था और यूनियन कार्बाइड को भोपाल लाने में नियमों की किसने अवेहलना की, फैक्ट्री मे सुरक्षा के इंतज़ाम थे या नही और गैस कांड के बाद यूनियन कार्बाइड ने क्या इंतज़ाम किये। इन तमाम सुलगते सवालों का जवाब अभी खोजा जाना बाकी है।

विश्व की भीष्णत्म त्रासदियों में से एक भोपाल गैस कांड पर फिल्म भी बन चुकी है। भोपाल ए प्रेयर फॉर रैन नाम से बनी इस फिल्म में भोपाल गैस कांड से जुडे कई पहलूओ को उजागर किया गया है। लेकिन भोपाल गैस कांड की 35वीं बरसी पर आज भी गैस पीड़ित अपने लिए न्याय की माँग करने सड़को पर उतरे है और सरकारों की तरफ टकटकी लगाकर अपने लिए न्याय की माँग कर रहे है लेकिन आज तक न तो उन्हे समुचित मुआबजा मिला और न ही स्वास्थ्य सुविधाए जिनकी इनको दरकार है। एक बदनुमा दाग की तरह भोपाल के दामन पर आज भी गैस कांड अलग ही दिखाई देता है।

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