बिहार आश्रय गृह कांड: SC ने पीडि़तों की तस्वीरें दिखाने से मीडिया को रोका

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[email protected] । Aug 2 2018 8:41PM

उच्चतम न्यायालय ने बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में सरकार से वित्त पोषित गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित आश्रय गृह की बलात्कार और यौन हिंसा की शिकार लड़कियों की तस्वीरें, भले ही उनका रूप बदल दिया हो, दिखाने से इलेक्ट्रानिक मीडिया को आज रोक दिया।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में सरकार से वित्त पोषित गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित आश्रय गृह की बलात्कार और यौन हिंसा की शिकार लड़कियों की तस्वीरें, भले ही उनका रूप बदल दिया हो, दिखाने से इलेक्ट्रानिक मीडिया को आज रोक दिया। न्यायालय ने टिप्पणी की कि इन पीडि़तों को इस अमानवीय अपमान को बार बार दोहराने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता।

शीर्ष अदालत ने इस प्रतिबंध में मीडिया से भी कहा कि पीड़िताओं का साक्षात्कार नहीं ले। सरकार से सहायता प्राप्त गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित आश्रय गृह में कथित यौन शोषण के खिलाफ बिहार में वामदलों के राज्य-व्यापी बंद के बीच न्यायालय ने यह आदेश दिया। न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने बिहार की इस घटना का संज्ञान लेते हुये कहा कि यह गंभीर चिंता की बात है कि कथित पीड़ितों का कई बार इंटरव्यू लिया गया और उन्हें उस घटना को दोहराने के लिये बाध्य किया गया।

पीठ ने कहा कि क्या इसी तरह हम अपनी लड़कियों से पेश आते हैं? पीठ ने इलेक्ट्रानिक मीडिया को किसी भी रूप में इन पीडि़तों की तस्वीरें प्रसारित या प्रकाशित करने से रोकते हुये मीडिया से कहा कि आश्रय गृह में यौन शोषण की शिकार कथित पीडि़तों का इंटरव्यू नहीं लिया जाये। पीठ ने कहा, ‘अब इसकी जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंपी जा चुकी है। क्या इन लड़कियों से कैमरे के सामने पूछताछ की जायेगी? सबके लिये ऐसा करना आसान नहीं होगा। उन्हें उस वेदना से मुक्ति दिलानी होगी। यह भयावह है।’

पीठ ने इसके साथ ही केन्द्र और बिहार सरकार को नोटिस जारी कर उनसे इस घटना के बारे में जवाब मांगा है। इस मामले में अब अगली सुनवाई सात अगस्त को होगी। न्यायमूर्ति लोकूर ने कहा, ‘आप एक बच्चे से जिस तरह बात करते हैं, वह एक वयस्क के साथ बात करने से भिन्न होता है।मैंने कल एक क्लिप देखी। आप कथित बलात्कार की शिकार वयस्क से इस तरह बात नहीं करते। ऐसा करने के अलग तरीके होते हैं।’ उन्होंने कहा कि कथित पीडि़तों का इस तरह इंटरव्यू करना ही क्यों चाहिए?

अधिवक्ता अपर्णा भट को इस मामले में न्याय मित्र नियुक्त किया गया है। उन्होंने न्यायालय से यह निर्देश देने का अनुरोध किया कि कथित पीडि़तों का कोई भी मीडिया इंटरव्यू नहीं होना चाहिए। इस पर पीठ ने सवाल किया कि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी का क्या होगा? तब मीडिया कहेगा कि उच्चतम न्यायालय हमारे ऊपर प्रतिबंध लगा रहा है। पीठ ने थाईलैंड की हाल की उस घटना का जिक्र किया जिसमे एक गुफा में फुटबाल टीम के बच्चे और उनका कोच कई दिन फंसे रहे। पीठ ने कहा कि गुफा से सुरक्षित बाहर निकाले जाने के बाद 15 से 20 दिन तक उनसे इंटरव्यू की अनुमति नहीं दी गयी थी। उन सभी का एक संयुक्त इंटरव्यू ही हुआ था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पटना निवासी रणविजय कुमार नामक एक व्यक्ति का एक पत्र मिलने के बाद वह बेहद आहत थी क्योंकि इसमें मुजफ्फरपुर घटनाओं की कथित पीडि़तों का बार बार इंटरव्यू किये जाने के मुद्दे को उठाया गया था। पीठ ने कहा कि उसने पुलिस को जांच करने से नहीं रोका है और यदि वह कथित पीड़ितों से सवाल करना चाहती है तो उसे पेशेवर काउंसिलर और बेंगलुरू स्थिति राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्था और तंत्रिका विज्ञान तथा टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान में योग्यता प्राप्त बाल मनोचिकित्सकों की मदद लेनी होगी।

सुनवाई के दौरान अपर्णा भट ने कहा कि ऐसे मामलों के शिकार नाबालिग पीडि़तों का इंटरव्यू करने के लिये प्रोटोकाल होना चाहिए। इस पर केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि नाबालिग को इस तरह के किसी भी इंटरव्यू से बचाकर रखना होगा। पीठ ने यह भी जानना चाहा कि क्या पीडि़तों को अभी तक कोई मुआवजा दिया गया है।

इस पर भट ने कहा कि बिहार में मुआवजा योजना है तो मेहता ने कहा कि पीडि़तों के लिये मुआवजा योजना हो सकती है परंतु उन्होंने जो कुछ भी गंवा दिया उसको परिमाणित नहीं किया जा सकता। राज्य वित्त पोषित इस संगठन के प्रमुख ब्रजेश ठाकुर द्वारा चलाये जाने वाले एक केन्द्र पर 30 से अधिक लड़कियों के साथ कथित रूप से बलात्कार किया गया।

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस), मुम्बई द्वारा अप्रैल में राज्य के समाज कल्याण विभाग को सौंपी गई एक ऑडिट रिपोर्ट में लड़कियों के कथित यौन शोषण के बारे में बताया गया था। इस मामले में 31 मई को ठाकुर समेत 11 लोगों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। आश्रय गृह की महिला स्टॉफ सदस्य और ठाकुर को स्थानीय पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। अब इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है।

चिकित्सा परीक्षण में 42 में से 34 लड़कियों के यौन शोषण की पुष्टि हुई है जबकि दो अन्य की स्थिति अब तक ठीक नहीं है और उनकी चिकित्सा जांच होनी है। टीआईएसएस की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि आश्रय गृह में कई लड़कियों ने यौन शोषण की शिकायत की थी। इन शिकायतों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया गया था। इस आश्रय गृह को काली सूची में डाल दिया गया है और लड़कियों को पटना तथा मधुबनी के आश्रय गृहों में स्थानांतरित किया गया है।

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