वायु प्रदूषण की गंभीरता को समझा नहीं जा रहा है: एनजीटी प्रमुख
न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि विश्व वायु प्रदूषण को गंभीरता से ले रहा है लेकिन हम नहीं। उन्होंने खेद प्रकट करते हुये कहा कि कोई भी राज्य कचरा प्रबंधन नियमों का पालन नहीं कर रहा है, जबकि इस मामले में जीरो टॉलरेंस अपनाया जाना चाहि
अहमदाबाद। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के प्रमुख न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल ने बुधवार को कहा कि भारत वायु प्रदूषण के मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहा है। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुये उन्होंने कहा कि देश के किसी भी राज्य ने कचरा निस्तारण संबंधी मानकों का अनुपालन नहीं किया है। इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी भी मौजूद थे। न्यायमूर्ति गोयल ने कहा, ‘‘ऐसे कई तरह के स्रोत हैं जो प्रदूषण फैला रहे हैं। यह कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, मीथेन और सल्फर ऑक्साइड हैं। ये (गैसें) जानलेवा हैं।’’ उन्होंने सवाल करते कहा कि इन्हें कौन पैदा कर रहा है। ये औद्योगिक उत्सर्जन, फसल अवशेष जलाने और कूड़ा जलाने से पैदा हो रही हैं। कूड़े का पहाड़ बनता जा रहा है।
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न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि विश्व वायु प्रदूषण को गंभीरता से ले रहा है लेकिन हम नहीं। उन्होंने खेद प्रकट करते हुये कहा कि कोई भी राज्य कचरा प्रबंधन नियमों का पालन नहीं कर रहा है, जबकि इस मामले में जीरो टॉलरेंस अपनाया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि प्रदूषण करना, हत्या या दुष्कर्म करने से कम बड़ा अपराध नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुये एनजीटी प्रमुख ने कहा कि वायु प्रदूषण की वजह से भारत में हर साल छह लाख और गुजरात में 15 हजार लोग मर जाते हैं। इस अवसर पर रूपाणी ने कहा कि उनकी सरकार कचरा प्रबंधन मानदंडों का पालन करने में अधिक सजगता दिखायेगी।
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उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति गोयल ने जो बिंदु उठाये हैं वे महत्वपूर्ण हैं और उनकी सरकार प्रतिबद्ध है एवं इस दिशा में और कदम उठाये जायेंगे। उन्होंने इस अवसर पर ढाई हजार करोड़ रुपये की लागत से वडोदरा, अहमदाबाद और राजकोट के जेतपुर से औद्योगिक इलाके से निकले गंदे पानी की निकासी गहरे समुद्र में करने के लिए एक पाइपलाइन बिछाने का ऐलान भी किया। इस कार्यक्रम में गुजरात सरकार ने ‘उत्सर्जन व्यापार योजना’ को शुरू किया। इसके तहत कोई कंपनी तय सीमा से कम उत्सर्जन करती है तो वह अपनी शेष उत्सर्जन सीमा को बेच सकती है। सरकार का दावा है कि यह हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों (पीएम) के प्रदूषण से निपटने का विश्व में पहला प्रयास है।
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