तीन तलाक आस्था का मामला है: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

[email protected] । May 16 2017 1:02PM

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि तीन तलाक आस्था का मामला है जिसका मुस्लिम बीते 1,400 वर्ष से पालन करते आ रहे हैं।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि तीन तलाक आस्था का मामला है जिसका मुस्लिम बीते 1,400 वर्ष से पालन करते आ रहे हैं इसलिए इस मामले में संवैधानिक नैतिकता और समानता का सवाल नहीं उठता है। मुस्लिम संगठन ने तीन तलाक को हिंदू धर्म की उस मान्यता के समान बताया जिसमें माना जाता है कि भगवान राम अयोध्या में जन्मे थे। एआईएमपीएलबी की ओर से पेश पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘तीन तलाक सन् 637 से है। इसे गैर-इस्लामी बताने वाले हम कौन होते हैं। मुस्लिम बीते 1,400 वर्षों से इसका पालन करते आ रहे हैं। यह आस्था का मामला है। इसलिए इसमें संवैधानिक नैतिकता और समानता का कोई सवाल नहीं उठता।’’

उन्होंने एक तथ्य का हवाला देते हुए कहा कि तीन तलाक का स्रोत हदीस पाया जा सकता है और यह पैगम्बर मोहम्मद के समय के बाद अस्तित्व में आया। मुस्लिम संगठन ने ये दलीलें जिस पीठ के समक्ष दीं उसका हिस्सा न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर भी हैं। सोमवार को, केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि यदि ‘तीन तलाक’ समेत तलाक के सभी रूपों को खत्म कर दिया जाता है तो मुस्लिम समुदाय में निकाह और तलाक के नियमन के लिए वह नया कानून लेकर आएगा। तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई का आज चौथा दिन है। जिस पीठ के समक्ष यह सुनवाई हो रही है उसमें सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम समेत विभिन्न धार्मिक समुदायों के सदस्य शामिल हैं।

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