एक धर्मनिष्ठ उद्योगपति और भामाशाह दानदाता के रूप में रतन टाटा को श्रद्धांजलि: मगनभाई पटेल

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प्रतिरूप फोटो
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मगनभाई पटेलने इस अवसर पर अपने भाषण में कहा कि जरथुस्त्र दुनिया का एक बहुत छोटा लेकिन बहुत समृद्ध समुदाय है जिसे पारसी समुदाय के नाम से जाना जाता है। पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। इस समुदाय के लोग पर्शियन लोगों के वंशज हैं।

ल ही में जतिन इंडस्ट्रीज ग्रुप द्वारा अहमदाबाद के वटवा में स्वर्गीय रतन नवल टाटा को श्रद्धांजलिदेने हेतुएक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें जतिन इंडस्ट्रीज,शाम इंडस्ट्रीज और फ्लोस्टर इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड के चेरमेन और ऑल इंडिया एमएसएमई फेडरेशन के अध्यक्ष श्री मगनभाई पटेल एव वर्ष १९९५ से अमेरिका की नागरिकता प्राप्त तथा अहमदाबाद में रहकर अपने पिता श्री मगनभाई पटेल के साथ अनेक सेवाकिय कार्यो में जुड़े हुए जतिन इंडस्ट्रीज ग्रुप के मेनेजिंग डिरेक्टर श्री जतिनभाई पटेलने भी स्वर्गीय रतन टाटा को श्रद्धांजली देकर श्रद्धा सुमन अर्पण किये।श्रद्धांजलि कार्यक्रम में जतिन इंडस्ट्रीज ग्रुप के स्टाफ समेत करीब १५० कर्मचारि भी शामिल हुए थे।

श्री मगनभाई पटेलने इस अवसर पर अपने भाषण में कहा कि जरथुस्त्र दुनिया का एक बहुत छोटा लेकिन बहुत समृद्ध समुदाय है जिसे पारसी समुदाय के नाम से जाना जाता है। पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। इस समुदाय के लोग पर्शियन लोगों के वंशज हैं।लगभग १,००० वर्ष पहले ये लोग पर्शिया मे हो रहे अत्याचारों से बचने के लिए भारत आये थे। पारसी समुदाय बाद में भारत में सबसे अधिक शिक्षित और धनी लोगों में से एक बन गया। विश्व में पारसियों की जनसंख्या १.५ से २ लाख के बीच है जबकि भारत में आज २०११ की जनगणना के अनुसार ५७,२६४ पारसी हैं।

पारसी समुदाय को ईरान में अन्यजातियों के उत्पीड़न के खिलाफ अपने धर्म की रक्षा करना असंभव लगा तब वे करीब १३५० वर्ष पहले वर्ष १७११ में भारत में व्यापारीकरण के लिए भारत आये थे। वे सबसे पहले वर्ष १७६६ के आसपास दीव बंदरगाह पर उतरे। जहां उन्होंने १९ वर्ष बिताए। पुर्तगालियों के हमलों से तंग आकर वे वर्ष १७८५ में समुद्र के रास्ते संजान बंदरगाह पर उतरे। इस समय गुजरात में जादी राणा का शासन था। पारसियों के मुखियाने शरण के लिए राणा के पास एक प्रतिनिधिमंडल भेजा। राणा ने दूध से भरा एक मग भेजकर जवाब दिया और कहा कि हम अत्यधिक आबादीवाले हैं और आपको समायोजित नहीं कर सकते। प्रतिनिधिमंडल वह कप लेकर अपने नेता के पास गया,वह बुद्धिमान था, उसने कप में चीनी मिला दी और वह धीरे-धीरे पिघल गई। उसने वही प्याला लिया और फिर से प्रतिनिधिमंडल को राणा के पास भेजा। राणा को उत्तर दिया गया कि "हम यहाँ दूध में चीनी की तरह मिल जायेंगे" यह सुनकर राणाने उन्हें रहने की अनुमति दे दी। पारसी समुदाय के चमकते सितारों में उद्योगपति टाटा समूह से लेकर रॉक स्टार फ्रेडी मर्करी तक शामिल हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय प्रतिभागियों में दादाभाई नवरोजी, भीखाजी कामा, आदि बुर्जोरजी गोदरेज और इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी शामिल हैं।


जमशेदजी टाटा :-

देश के कई पारसी उद्यमियों में से एक जमशेदजी टाटा भारत के सबसे बड़े समूह टाटा समूह के संस्थापक थे।उनका जन्म ३ मार्च,१८३९ को गुजरात के नवसारीमें एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता नुसेरवानजी टाटा और माता जीवनबाई टाटा थीं। वह नुसेरवानजी टाटा के इकलौते बेटे थे। नुसेरवानजी व्यवसाय में हाथ आजमानेवाले परिवार के पहले सदस्य थे। जमशेदजी का पालन-पोषण नवसारी में हुआ और जब वे 14 वर्ष के थे,तब पिता के साथ मुंबई चले गये।उन्होंने मुंबई की एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया और १८५८ में 'ग्रीन स्कॉलर' के रूप में उत्तीर्ण हुए,जो आज स्नातक की डिग्री के बराबर है। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, वह अपने पिता की फर्म में शामिल हो गए और जापान, चीन, यूरोप और अमेरिका में मजबूत शाखाएँ स्थापित करने में मदद की। उन्होंने १८७० के दशक में मध्य भारत में एक कपड़ा मिल शुरू की।वह एक प्रमुख उद्योगपति थे जिनकी दूरदर्शिता और महत्वाकांक्षी प्रयासों ने भारत को औद्योगिक देशों की श्रेणी में लाने में मदद की।उन्हें भारतीय उद्योगजगत के पिता माना जाता है। वह एक अग्रणी उद्योगपति के साथ मानवतावादी विचारधारावाले एक महान व्यक्ति थे।जमशेदजी टाटा की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक-विकास पहल में राष्ट्र को समर्पित ट्रस्टों के पास था। जब श्रमिकों के संबंध में कोई कानून नहीं था, तब भी श्रमिकों के प्रति पहले से ही अपार स्नेह और अच्छी भावना रखने वाले जमशेदजी टाटा ने हमारे देश के औद्योगिक क्षेत्र के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है।जिन्होंने ३ मार्च १८३९ को रोज टाटा ग्रुप की स्थापना की, जो भारत की सबसे बड़ी समूह कंपनी थी।

रतन नवल टाटा :-

रतन टाटा का जन्म २८ दिसंबर,१९३७ को ब्रिटिश राज के दौरान मुंबई में एक पारसी पारसी परिवार में हुआ था। वह नवल टाटा के बेटे थे और बाद में उन्हें टाटा परिवारने गोद लिया था। टाटाने ८ वीं कक्षा तक की पढ़ाई कैंपियन स्कूल,मुंबई से की थी।जिसके बाद उन्होंने मुंबई में कैथेड्रल और जॉन कॉनन, शिमला में बिशप कॉटन स्कूल और न्यूयॉर्क शहर में रिवरडेल कंट्री स्कूल में पढ़ाई की, जहां से उन्होंने १९५५ में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, उन्होंने कॉर्नेल विश्व विद्यालय में दाखिला लिया जहां उन्होंने १९५९ में बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर की डिग्री हासिल की। वर्ष २००८ में टाटाने कॉर्नेल को ५० मिलियन अमेरिकी डॉलर का उपहार दिया, जो विश्व विद्यालय के इतिहास में सबसे बड़ा आंतरराष्ट्रिय दान था।रतन टाटा को वर्ष २००० में पद्म भूषण और २००८ में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, जो भारत सरकार द्वारा दिए जानेवाला तीसरा और दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।

स्वर्गीय रतन टाटाने गांधीनगर में एक टेलीविजन निर्माण कंपनी "नेल्को" शुरू की और उसमे वे पहले डिरेक्टर बने और उनके साथ अहमदाबाद के एक बड़े पुस्तक विक्रेता श्री व्रजलालभाई पारिख भी जुड़े।श्री व्रजलालभाई के वहा रतन टाटा कई बार रात गुजारते थे। श्री व्रजलालभाई पारिख गांधीवादी थे और इसीलिए रविशंकर महाराज जैसे कई धर्मनिष्ठ लोग उन्हें उनके घर ठहरते थे।

टाटा समूह एक विनिर्माण क्षेत्र है जहां मूल्यवर्धित उत्पाद बनाये जाते हैं। इसे लाखों इंजीनियरों, तकनीशियनों, वैज्ञानिकों और श्रमिकों को रोजगार देने वाला एक अंतरराष्ट्रीय ट्रस्ट माना जा सकता है, जिसने अपने प्रबंधन से प्राप्त आय का अधिकांश हिस्सा शिक्षा, स्वास्थ्य, राष्ट्रीय सेवा सामाजिक संगठनों को दान करके राष्ट्रीय सेवा का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रदान किया है। टाटा समूह भारत का सबसे बड़ा औद्योगिक समूह है जो १५० से अधिक देशों में उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करता है,जिसमें लगभग १०,२८,००० कर्मचारी कार्यरत हैं।टाटा समूह ने भारत में कई अनुसंधान, शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना और वित्तपोषण में मदद की है। वर्ष २०२० में टाटा ग्रुप ने भारत में COVID-१९ महामारी से लड़ने के लिए पीएम केयर्स फंड में १५ बिलियन रुपये यानी लगभग १ लाख २६ हजार करोड़ रुपये का दान दिया है, इस प्रकार भारत एक ऐसा देश है जहां बाहर से आए लोगों ने देश की संस्कृति और सरकार के साथ मिलकर काम किया है जो भारत की भूमि का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, उसी प्रकार आदि गोदरेज, अदार पुनावाला जैसे देश के अन्य पारसी व्यापारियों की सेवा को समझेंगे तब ही हम अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने में सफल होंगे।गोदरेज, टाटा जैसी पारसी विनिर्माण कंपनियों के दौरे में हमने देखा है कि इन कंपनियों में काम करनेवाले श्रमिकों एव अधिकारियों को उनके पद के अनुसार अच्छे आवास,बच्चों के लिए स्कूल एव परिवहन की सुरक्षित व्यवस्था भी की जाती है साथ ही साथ इन कंपनियोंमें  सुबह में नाश्ता,दोपहर में भोजन और शाम को हल्का नाश्ता दिया आता है जो हम इन कंपनियों के प्रत्यक्ष अवलोकन के आधार पर कह सकते हैं, ये कंपनियां अपने कर्मचारियों को अपने परिवार के रूप में मानती हैं जो बहुत ही प्रशंसनीय बात है।इस प्रकार उस समय के उद्योगपति जिन्हें महाजन कहा जाता था, जो अपने मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा अपने श्रमिकों, राज्य या देश की शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करते थे और जब कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा आती थी, तो उन्हें बड़ी वित्तीय सहायता मिलती थी।

फ़िरोज़ गांधी :-

फ़िरोज़ गांधी का जन्म १२ सितंबर,१९१२ को गुजरात के एक पारसी परिवार में हुआ था। वह एक स्वच्छ भारतीय राजनीतिज्ञ और पत्रकार थे। स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के बाद, वह महात्मा गांधी से प्रभावित हुए और उन्होंने पूर्ण गांधीवादी विचारधारा को अपनाते हुए उन्होंने वर्ष १९३३ में इंदिराजी से शादी का प्रस्ताव रखा लेकिन इंदिराजी की माँ ने इंदिराजी की कम उम्र (१६ वर्ष) का कारण देते हुए इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। इंदिरा गांधी के पिता जवाहरलाल नेहरू भी इस शादी के खिलाफ थे, उन्होंने इस जोड़े को शादी न करने के लिए महात्मा गांधी की मदद भी मांगी, लेकिन नतीजा नहीं बदला और वर्ष १९४२ में उन्होंने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधीजी से शादी की। उनकी शादी के छह महीने के भीतर इस जोड़े को "भारत छोड़ो" आंदोलन में भाग लेने के लिए अगस्त १९४२ में जेल में डाल दिया गया। उन्हें एक वर्ष तक इलाहाबाद की नैनी मध्यवर्ती कारागृह में रखा गया था। वर्ष १९५०-५२ में वे प्रोविंशियल पार्लामेंट के सदस्य थे। उसके बाद वर्ष १९५२ में वे उत्तर प्रदेश के रायबरेली से भारत की पहली संसद के लिए चुने गये। अपनी मृत्यु से पहले फिरोज गाँधी एक शक्तिशाली व्यक्ति बन गये थे। उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले उनके दोस्तों एव उनकी पत्नी इंदिराजी को उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार करने को कहा था क्योंकी उन्हें दाह-संस्कार की पारसी पद्धति पसंद नहीं थी।फ़िरोज़ गांधी की मृत्यु ८ सितंबर,१९६० को हुई और उनका अंतिम संस्कार दिल्ली के निगमबोध घाट पर हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया।उस वक्त १६ साल के राजीव गांधीने फिरोज गाँधी को अग्निदाह दिया था। हालाँकि उनके शरीर को दाह संस्कार के लिए ले जाने से पहले कुछ पारसी रीति-रिवाजों का भी पालन किया गया था। जब फ़िरोज़ के शव के सामने पारसी परंपरा अनुसार 'गेह-सरनु' का पाठ किया गया तो इंदिराजी और उनके दोनों बेटों को छोड़कर सभी को कमरे से बाहर भेज दिया गया था और इंदिराजी लगातार दो दिन तक भूखी रहीं थी। स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद फिरोज गांधी के परिवार ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से ४० वर्षों तक देश की सत्ता संभाली। स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू की विचारधारा के साथ जिस तरह काम हुआ उसी तरह यदि गांधीवादी विचारधारा रखनेवाले फिरोज गांधी की विचारधारा के साथ काम किया गया होता तो उस दौरान आर्थिक और सामाजिक रूप से गरीब किसानों और विकर सेक्शन के लोगों के आंसू पोंछे जा सकते थे।एक गुजराती पारसी परिवार के रूप में शासन किया जो हमारा इतिहास है। गुजरात के एक कार्यक्रम में इंदिरा गांधी ने सिर पर साड़ी लपेटकर खुद को गुजरात की बहू बताकर गुजरात पर गर्व महसूस किया था। उनके पति फिरोज गांधी का जन्म भी गुजरात में हुआ था।