नगरीय निकाय चुनाव: बसपा और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल

Urban body elections: BSP and Congress question for prestige

उत्तर प्रदेश में करीब 33 साल तक सत्तारूढ़ रही कांग्रेस और चार बार सत्ताशीर्ष पर पहुंची बसपा इस बार नगरीय निकाय चुनाव में प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रही हैं।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में करीब 33 साल तक सत्तारूढ़ रही कांग्रेस और चार बार सत्ताशीर्ष पर पहुंची बसपा इस बार नगरीय निकाय चुनाव में प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रही हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार पहली बार अपने चिह्न पर स्थानीय निकाय चुनाव लड़ रही बसपा और अपने खोये जनाधार को हासिल करने की जद्दोजहद कर रही कांग्रेस के लिये इन चुनाव को गम्भीरता से लेना वक्त का तकाजा भी है। बसपा वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव और इस साल के शुरू में हुए विधानसभा चुनाव में करारी हार सहन कर चुकी है। पिछले लोकसभा चुनाव में जहां उसका खाता भी नहीं खुला था, वहीं गत विधानसभा चुनाव में 403 में से उसे महज 19 सीटें ही हासिल हुई थीं।

कांग्रेस का भी कमोबेश यही हाल हुआ था। उसे लोकसभा चुनाव में प्रदेश से सिर्फ दो जबकि विधानसभा चुनाव में महज सात सीटें ही मिल सकी थीं। ऐसे में इस माह के अंत में प्रदेश में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव इन पार्टियों के लिये अपने खोये जनाधार को दोबारा हासिल करने का मौका होने के साथ-साथ चुनौती भी हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव का ‘सेमीफाइनल’ कहे जा रहे इस चुनाव में मिली जीत जहां इन पार्टियों को सूबे में उम्मीद की किरण मुहैया करायेगी, वहीं एक और नाकामी उनके मनोबल पर गहरा असर डाल सकती है। मुख्यतः दलितों में जनाधार रखने वाली बसपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि खुद पार्टी मुखिया मायावती नगरीय निकाय चुनाव को बेहद गम्भीरता से ले रही हैं। वह मण्डलीय पदाधिकारियों के साथ लगातार बैठकें कर रही हैं। प्रत्याशियों की सूची को अंतिम रूप दिया जा रहा है। ज्यादातर टिकट मायावती ही तय करेंगी। पहली सूची दो-तीन दिन में जारी हो सकती है।

उन्होंने बताया कि नगरीय निकाय चुनाव में बसपा के वरिष्ठ नेता लालजी वर्मा, राज्यसभा सदस्य अशोक सिद्धार्थ, पूर्व मंत्री नकुल दुबे, प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर, पूर्व मंत्री अनन्त मिश्रा तथा शमसुद्दीन राइन, पार्टी प्रत्याशियों के लिये प्रचार करेंगे। मायावती प्रचार के मैदान में उतरेंगी या नहीं, यह अभी तय नहीं है। प्रेक्षकों के मुताबिक विधानसभा चुनाव से पहले बसपा के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और आर. के चैधरी समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी। विधानसभा चुनाव में बसपा को इसका नुकसान उठाना पड़ा था। चुनाव के बाद बसपा का मुस्लिम चेहरा कहे जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पार्टी से निकाल दिया गया था। इस गहमागहमी के बाद अब पार्टी के हालात कैसे हैं, यह काफी हद तक निकाय चुनाव के नतीजों से साफ हो जाएगा। हालांकि गत विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत के मामले में बसपा 22.2 प्रतिशत के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। यह तथ्य दूसरे दलों के माथे पर बल भी ला सकता है।

उधर, करीब 27 साल से सत्ता से दूर कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव के बाद हाशिये पर आ गयी है। उसके लिये भी नगरीय निकाय चुनाव खासे अहमियत रखते हैं। पार्टी प्रवक्ता वीरेन्द्र मदान के मुताबिक पार्टी साफ छवि रखने वाले समर्पित कार्यकर्ताओं को ही निकाय चुनाव के टिकट देगी। साथ ही पार्टी विकास के मुख्य मुद्दे पर आगे बढ़ेगी और जनता को तरक्की के नाम पर भाजपा द्वारा किये गये फरेब की याद दिलाएगी। उन्होंने कहा कि पार्टी अपना कोई घोषणापत्र तो नहीं जारी करेगी, मगर नगर निगमों में पार्टी के प्रत्याशी स्थानीय स्तर पर अपना-अपना एजेंडा जरूर प्रस्तुत करेंगे। मदान ने बताया कि नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस का प्रान्तीय नेतृत्व अपने प्रत्याशियों के लिये प्रचार करेगा। जरूरत पड़ने पर केन्द्रीय नेताओं से भी मदद ली जाएगी। उम्मीद है कि जनता इस बार कांग्रेस पर विश्वास जताएगी।मालूम हो कि कांग्रेस ने प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन किया था। इसके तहत मिली 105 सीटों में से महज 6.2 प्रतिशत वोटों के साथ उसे मात्र सात सीटें ही मिल सकी थीं। कांग्रेस नगरीय निकाय चुनाव अपने बलबूते ही लड़ रही है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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