उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु बोले, आतंकवाद के मुद्दे पर एकजुट हो पूरी दुनिया
नायडु ने कहा कि आतंकवाद, विकास, शांति और उन्नति को प्रभावित करता है तथा मानसिक शांति को भी प्रभावित करता है। उन्होंने कहा, हमें इस ओर ध्यान देना होगा और एकजुट होना होगा।
आबू रोड-राजस्थान। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने शनिवार को दुनिया से आतंकवाद के मुद्दे पर एकजुट होने का आह्वान किया और कहा कि आतंकवाद को परश्रय देने वालों को अलग-थलग किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के भाषणों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक भाषण (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का) शांति और उन्नति के बारे में था तो दूसरा (पाकिस्तान का) भाषण नफरत और हिंसा के बारे में था। वे यहां विश्व शांति शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
आध्यात्मिक ज्ञान ही विश्व में सच्ची शांति, एकता, समरसता और स्थायित्व सुनिश्चित कर सकता है और संपूर्ण मानवता का कल्याण हो सकता है।#brahmakumaris #BKGS2019 #BKGlobalSummit pic.twitter.com/9vS61JyFQ1
— VicePresidentOfIndia (@VPSecretariat) September 28, 2019
उन्होंने कहा, अब समय आ गया है कि हम इस ओर ध्यान दें और आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों को जितनी जल्दी हो सके अलग थलग कर दिया जाए, तभी शांति हो सकती है। नायडु ने कहा कि आतंकवाद, विकास, शांति और उन्नति को प्रभावित करता है तथा मानसिक शांति को भी प्रभावित करता है। उन्होंने कहा, हमें इस ओर ध्यान देना होगा और एकजुट होना होगा। नायडु ने कहा, ‘आध्यात्मिकता द्वारा एकता, शांति एवं समृद्धि’ यह विषय आज के विश्व के लिए अपार संभावनाऐं संजोये हुए है। इस विषय पर विश्व आपके विचार जानने को इच्छुक है। वर्तमान और भावी पीढ़ियां आध्यात्म और विकास के बीच संतुलन बनाने के लिए, आपसे मार्गदर्शन की अपेक्षा करती हैं।
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उन्होंने कहा, नयी आशाओं का नया भारत आकार ले रहा है। नये युवा उद्यमी-नयी चुनौतियों को नये अवसरों में बदलने की क्षमता रखते हैं। नयी तकनीक के साथ हमें अपने पुराने संस्कारों और आध्यात्मिक आधार को नहीं भूलना चाहिए। भारतीय संस्कृति में आध्यात्म की प्राचीन परंपरा रही है। उपराष्ट्रपति ने कहा -यह देश सम्राट अशोक का है जिसने जनकल्याण के लिए धम्म यात्राऐं कीं, देश-विदेश में शांति और धर्म प्रचारकों के माध्यम से ‘धम्म विजय’ की। उन्होंने कहा कि हमारे शांति मंत्रों में “सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया” की प्रार्थना की गई है और ‘माधव सेवा से पहले मानव सेवा’ - यही हमारा संस्कार रहा है।
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