मोदी के फैसले को पलटने वाले पहले सीएम बने विजय रूपाणी
मोदी सरकार ने यातायात नियमों की अनदेखी करने वालों पर इतना भारी जुर्माना लगाने का प्रावधान किया कि कोई भी शख्स लाल बत्ती पार करने से पहले भी सौ बार सोचेगा। बहरहाल, इस सख्ती से यातायात व्यवस्था पटरी पर आएगी या नहीं ये तो भविष्य बताएगा। लेकिन वर्तमान में कुछ राज्य ऐसे भी हैं जिन्हें ये नया वाला मोटर कानून कुछ ज्यादा ही सख्त लग रहा है।
साल 2018 में साउथ की एक फिल्म आई थी ‘भारत अने नेनू’ जिसमें अभिनेता महेश बाबू ऑक्सफोर्ड से पढ़कर भारत आते हैं। पिता की मौत के बाद उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया जाता है। जब वह पहले दिन सीएम हाउस जाते हैं, तो सड़क पर लोगों की लापरवाही और ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ता देख हैरान हो जाते हैं। सीएम हाउस पहुंचने के बाद वह सबसे पहला काम ट्रैफिक को दुरुस्त करने का करते हैं। फिल्म में एक अधिकारी सीएम को बताता है कि बिना ड्राइविंग लाइसेंस के गाड़ी चलाने पर पांच सौ जुर्माना लेते हैं। यह सुनकर महेश बाबू कहते हैं कि इसे पांच हजार कर दो, सिग्नल तोड़ने पर एक हजार से बढ़ाकर 20 हजार कर दो। ड्राइविंग के दौरान मोबाइल का इस्तेमाल करने पर एक हजार नहीं 25 हजार कर दो। रैश ड्राइविंग का जुर्माना एक हजार नहीं 30 हजार कर दो। पहले तो जनता इन कड़े नियमों से परेशान होती है। लेकिन कुछ दिन बाद लोगों का मुख्यमंत्री के प्रति गुस्सा भी शांत हो जाता है और राज्य की ट्रैफिक व्यवस्था भी लाइन पर आ जाती है। ये तो बात थी रील लाइफ कि अब रियल लाइफ पर आते हैं।
एक ऑटो का आरसी लाइसेंस, पॉल्यूशन सर्टिफिकेट न होने का जुर्माना 39 हजार, एक ट्रक के नियम तोड़ देने का जुर्माना 86 हजार 500 रुपया। एक स्कूटी का चालान 23 हजार रुपया। हेलमेट नहीं तो हजार पॉल्यूशन नहीं तो दो हजार। डीएल नहीं तो 5 हजार, दारू पीकर गाड़ी चलाई तो दस हजार। वही सड़कें, वही गाड़ियां, वही लाल बत्ती, वही हेलमेट, वही सीट बेल्ट, वही ट्रैफिक के नियम पर जरा-सा नोटों का रंग और साइज क्या बदला सब कुछ बदल गया। सड़कों पर खौफ पसर गया। हेलमेट की गिरफ्त में आकर जुल्फें भी हवा में कहां लहरा पा रही हैं। दो पहिया से तो जैसे हम दो हमारे दो के नारे ही छीन लिए गए हैं। तीन-चार साथ-साथ बैठने वाले दोस्त भी अब किश्तों में घूम रहे हैं। रफ्तार तो अब साल में दो-चार बार होने वाली फॉर्मूला वन रेस जैसी हो गई है। अब नशे में ‘तू जानता नहीं मैं कौन हूं’ कि बजाए गाड़ी में पूरे और अधूरे कागजात ही बस याद रहते हैं। कोई गाड़ी छोड़कर भागता दिखा तो कोई फूंक कर। जब से नया वाला मोटर कानून आया है लग ही नहीं रहा कि हम भारत जैसे गरीब देश में रहते हैं। जहां बीस करोड़ से ज्यादा लोग रोज रात को भूखे पेट सोते हैं। ठीक है कि काम नहीं है, कमाई नहीं है, नौकरी नहीं है, स्कूल में पढ़ाई नहीं है। अस्पतालों में दवाई नहीं है लेकिन ट्रैफिक वाला जैसे ही हाथ देता है। आदमी ऐसे उतरता है जैसे चंद्रयान-2 चांद पर उतरा था। पता नहीं किस चौराहे पर या सड़क किनारे से अचानक वो आ जाए। उनके आने से डर लगता है। क्योंकि उनके आने का मतलब पूरे महीने का बजट चला जाना है।
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