लॉकडाउन में सोशल वर्क में जुटे हैं नैनीताल के ग्रामीण, 1 महीने में बना डाली सड़क
एक बार फिर गांव के लोगों को शहर की ओर जाने में परेशानी होने लगी। रास्ता पूरी तरीके से बंद हो गया। मजबूरन लोगों को शहर जाने के लिए उसी मार्ग का इस्तेमाल करना पड़ता था। मार्ग पर मलवा और आसपास जंगल उग जाने से यात्रा के दौरान कई तरह की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता था लेकन मजबूरी में इंसान क्या नहीं करता।
एक कहावत है ना- जहां चाह वहीं राह...। इंसान अपनी चाहत को अपनी मेहनत से पूरी कर सकता है। फिलहाल विश्व के हर कोने में कोरोना महामारी फैला हुआ है। इस महामारी की वजह से अधिकांश देशों में लॉक डाउन है। भारत में भी तीन मई तक लॉक डाउन की घोषणा की गई है। इस बीच लॉक डाउन में लोग कुछ ना कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ लोग व्यंजन बना रहे हैं तो कुछ लोग नई भाषाएं सीख रहे हैं। इतना ही नहीं रोजमर्रा की जिंदगी में ऑफिस जाने वाले इंसान भी घर के कामों में हाथ बंटा रहे हैं या फिर ऐसे लोग जो शहर से अपने गांव की तरफ जा चुके हैं वह खेतों में भी काम कर रहे हैं। इसी बीच उत्तराखंड के लोगों ने लॉक डाउन के दौरान कुछ नया किया है, कुछ अलग किया है, कुछ समाज के लिए किया है, कुछ देश के लिए किया है। उनके इस काम की हर तरफ तारीफ की जा रही है।
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हिमालय की गोद में बसा हुआ देवभूमि यानी कि उत्तराखंड। यहां नैनीताल के खड़की गांव में लोगों ने कुछ नया किया है। इस गांव में लगभग 40 परिवारों का घर है। इस लॉक डाउन के दौरान गांव वालों ने मिलकर पहाड़ों पर कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए अपने गांव के लिए सड़क ही बना डाली। इस बारे में जब गांव वालों से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि लगभग एक दशक पहले 6 लाख की लागत से सिलौटी इलाके में उनके गांव को जोड़ने के लिए सरकार ने 3 किलोमीटर लंबी सड़क बनवाई थी। इससे वहां के स्थानीय लोगों को काफी राहत मिली थी लेकिन यह सड़क ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई और कुछ ही दिनों बाद उखड़ने लगी। देखते ही देखते यह सड़क पूरी तरीके से गायब ही हो गई। सड़क पर भूस्खलन से मलबा जमा होने लगा और चारों तरफ जंगल और झाड़ियां हो गई।
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एक बार फिर गांव के लोगों को शहर की ओर जाने में परेशानी होने लगी। रास्ता पूरी तरीके से बंद हो गया। मजबूरन लोगों को शहर जाने के लिए उसी मार्ग का इस्तेमाल करना पड़ता था। मार्ग पर मलवा और आसपास जंगल उग जाने से यात्रा के दौरान कई तरह की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता था लेकन मजबूरी में इंसान क्या नहीं करता। शहर तो जाना ही पड़ेगा। लेकिन इस लॉक डाउन के दौरान गांव वालों ने मिलकर उस शहर की रंगत और रौनक दोनों ही बदल डाली। गांव वालों ने बताया कि उन्होंने कई बार अधिकारियों तक उस सड़क की मरम्मत के लिए आवेदन पहुंचाएं लेकिन उनकी कभी भी नहीं सुने गई। लॉक डाउन के दौरान उनके पास पर्याप्त समय था। अतः गांव वालों ने आपस में बातचीत करके खुद ही सड़क ठीक करने की ठानी। सभी गांव वाले अपने घरों में ही थे, उनके पास दूसरा कोई काम नहीं था। एक ग्रामवासी ने बताया कि हमने करीब गांव के 25 लोगों को जमा किया और सड़क के अलग-अलग हिस्सों को खाली करने के लिए छोटी छोटी टीमों में काम करने का फैसला लिया जो कि वह अधिक कारगर साबित हुआ।
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अब आप यह सोच रहे होंगे कि लॉक डाउन के दौरान आखिर 25 लोगों ने एक साथ मिलकर कैसे काम किया, क्या लॉक डाउन का उल्लंघन नहीं था? ऐसे में ग्राम वासियों ने बताया कि उन्होंने सरकार द्वारा जारी हर एक दिशा निर्देशों का पालन किया। जैसे कि सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखा गया, मास्क पहनकर ही काम किया गया और साथ ही साथ एक दूसरे से संपर्क ना हो इसके लिए भी कई उपाय अपनाए गए। इस कार्य के दौरान उचित उपकरण ना होने से और जंगली जानवरों के हमले का डर होने के बावजूद भी लोगों ने इस चुनौती भरे कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इस कार्य को करने में 1 महीने का समय लगा। यह सड़क 2 मीटर चौड़ा किया गया। यह सड़क पूरी तरीके से साफ और चपटी हो गई। इस पर ट्रकजहां पैदल चलना मुश्किल था, वहां अब मोटरसाइकिल से आवाजाही आसान हो गई है। उनके इस काम के बाद नैनीताल के जिलाधिकारी ने भी इसकी सराहना की और कहा कि लॉक डाउन के बाद इस सड़क को पक्का किया जाएगा।
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