हिंसा कश्मीरी संस्कृति से कोसों दूर, अब इस जमीन की खोई हुई शान की पुनः प्राप्ति के लिए हो रहे प्रयास: कोविंद
मध्यकाल में, लाल देड ने ही विभिन्न आध्यात्मिक परंपराओं को एक साथ लाने का मार्ग दिखाया था। लालेश्वरी की कृतियों में आप देख सकते हैं कि कैसे कश्मीर सांप्रदायिक सौहार्द और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का खाका पेश करता है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इन दिनों जम्मू कश्मीर के दौरे पर हैं। अपने जम्मू-कश्मीर दौरे के दौरान उन्होंने कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी थी। जम्मू कश्मीर पहुंचने पर राष्ट्रपति को गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया था। इन सब के बीच आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद में कश्मीर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया। अपने संबोधन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि हिंसा जो कभी कश्मीरियत का हिस्सा नहीं थी, आज जम्मू-कश्मीर की दैनिक वास्तविकता बन गई है। उन्होंने कहा कि कश्मीर विभिन्न संस्कृतियों का मिलन स्थल है। मध्यकाल में, लाल देड ने ही विभिन्न आध्यात्मिक परंपराओं को एक साथ लाने का मार्ग दिखाया था। लालेश्वरी की कृतियों में आप देख सकते हैं कि कैसे कश्मीर सांप्रदायिक सौहार्द और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का खाका पेश करता है।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि हिंसा कश्मीरी संस्कृति से कोसों दूर थी। अब इस जमीन की खोई हुई शान पुनः प्राप्त करने के लिए नई शुरुआत और दृढ़ प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में मतभेदों को दूर करने, नागरिकों की सर्वोत्तम क्षमता को सामने लाने की ताकत है। कश्मीर इस दृष्टिकोण को साकार कर रहा है। राष्ट्रपति ने कहा कि महान ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की इस भूमि में आज आप सबके बीच आकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। इसे 'ऋषि वीर' या संतों की भूमि कहा गया है, और इसने हमेशा दूर-दूर से आध्यात्मिक साधकों को आकर्षित किया है।It was most unfortunate that this outstanding tradition of peaceful coexistence was broken. Violence, which was never part of ‘Kashmiriyat’, became the daily reality.
— President of India (@rashtrapatibhvn) July 27, 2021
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कोविंद ने कहा कि इस भूमि पर आने वाले लगभग सभी धर्मों ने कश्मीरियत की एक अनूठी विशेषता को अपनाया जिसने रूढ़िवाद को त्याग दिया और समुदायों के बीच सहिष्णुता और आपसी स्वीकृति को प्रोत्साहित किया। यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण था कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की इस उत्कृष्ट परंपरा को तोड़ा गया। हिंसा, जो कभी 'कश्मीरियत' का हिस्सा नहीं थी, दैनिक वास्तविकता बन गई।
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