क्या है डेटा संरक्षण विधेयक ? संसद के शीतकालीन सत्र में किया जाएगा पेश

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इस विधेयक को लाने के पीछे का उद्देश्य व्यक्तिगत जानकारी के लीक होने की संभावनाओं को खत्म करना है। दरअसल, हमारे देश में फेसबुक और वाट्सएप का करीब 200 मिलियन से ज्यादा लोग इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में कंपनियां इन लोगों के डेटा को कई तरह से अपने पास रखती हैं।

नयी दिल्ली। व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति ने 2 साल से अधिक समय तक विचार विमर्श करने के बाद इसे अंतिम रूप दे दिया है। अब इस विधेयक को संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा। व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक पर बनी समिति की अध्यक्षता भाजपा सांसद पीपी चौधरी ने की। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने समिति के लोकतांत्रिक तरीके से काम करने की सराहना की। हालांकि जयराम रमेश ने कुछ पहलुओं पर असहमति भी जताई।

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आपको बता दें कि इस विधेयक को लाने के पीछे का उद्देश्य व्यक्तिगत जानकारी के लीक होने की संभावनाओं को खत्म करना है। दरअसल, हमारे देश में फेसबुक और वाट्सएप का करीब 200 मिलियन से ज्यादा लोग इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में कंपनियां इन लोगों के डेटा को कई तरह से अपने पास रखती हैं। ऐसे में यूजर्स के पास ज्यादा विकल्प नहीं होते हैं और कई बार तो देखा गया है कि कंपनियां साइबर हमले का शिकार हुई हैं।

क्या है डेटा संरक्षण विधेयक ?

दिसंबर 2019 में समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने कई बैठकें की हैं और ट्विटर, फेसबुक, गूगल और ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन के प्रतिनिधियों को तलब किया है। मसौदा डेटा संरक्षण विधेयक में लोगों की स्पष्ट सहमति के बिना उनकी व्यक्तिगत जानकारी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत जानकारी की रक्षा करना, डेटा प्रोसेसर के दायित्वों को परिभाषित करना, व्यक्तियों के अधिकारों को परिभाषित करना और उल्लंघनों के लिए दंड का प्रावधान करना है।

आगामी शीतकालीन सत्र में डेटा संरक्षण विधेयक को पेश किया जाएगा। इसे डेटा सुरक्षा बिल कहा जा रहा है। क्योंकि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और देश की अखंडता जैसे मुद्दे भी शामिल हैं। इस विधेयक में भविष्य में होने वाले संभावित वैश्विक प्रभावों को भी ध्यान में रखा गया है। इस विधेयक को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने साल 2019 में लोकसभा में पेश किया था। लेकिन सांसदों के अनुरोध के बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष भेज दिया गया। पहले इसका नाम पर्सनल डेटा संरक्षण विधेयक 2019 था, जो अब व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक या फिर डेटा सुरक्षा बिल हो गया है। 

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इस विधेयक के कई खंडों को लेकर असमहति भी जताई गई है। जिसमें विधेयक का खंड 12 शामिल है। जो सरकार को व्यापक शक्तियां प्रदान करता है। यह राज्य को कई आधारों पर किसी व्यक्ति की सहमति के बिना व्यक्तिगत डेटा तक पहुंचने की अनुमति देता है। धारा को पूरी तरह से हटा देना चाहिए।

गौरतलब है कि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक पर गठित संयुक्त संसदीय समिति की सोमवार को हुई बैठक में रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया। हालांकि, कुछ विपक्षी सांसदों ने कथित तौर पर असहमति भी जताई। वहीं, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि सरकार देश के नागरिकों एवं निवासियों की निजता को सुरक्षित रखने के लिए बेहद प्रतिबद्ध है। पहले आधार संख्या को लेकर भी निजता से जुड़ी चिंताएं जताई गई थीं लेकिन उनका भी समाधान किया जा चुका है। डेटा संरक्षण विधेयक से निजता संबंधी कानूनी ढांचे को और मजबूती मिलेगी।

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