यूपी में किस ओर जाएंगे मुस्लिम मतदाता, क्या चलेगी उल्टी हवा या फिर सपा-बसपा ही रहेंगे पहली पसंद

Muslim voters
प्रतिरूप फोटो
अंकित सिंह । Jan 14 2022 6:40PM

देखना दिलचस्प होगा कि इस बार मुस्लिम वोट किधर जाता है। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने खुद को सपा और बसपा के बीच विभाजित कर लिया था हालांकि 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा और बसपा के बीच गठबंधन ने उसकी पसंद को आसान बना दिया।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बिगुल बज गए है। यहां सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के लिए अपनी सत्ता बचाने है। वहीं अखिलेश यादव भी लगातार भाजपा के समक्ष कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा के मजबूत हिंदू ध्रुवीकरण और बिखरते विपक्षी खेमे के मद्देनजर मुस्लिम समुदाय के वोट पर सबकी नजर टिक जाती है। बहुजन समाज पार्टी के उदय से पहले मुस्लिम समुदाय का वोट उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ मजबूती से रहता था। देखना दिलचस्प होगा कि इस बार मुस्लिम वोट किधर जाता है। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने खुद को सपा और बसपा के बीच विभाजित कर लिया था हालांकि 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा और बसपा के बीच गठबंधन ने उसकी पसंद को आसान बना दिया। 

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अगर राज्य में अल्पसंख्यक वोटों के विभाजन होता है तो इससे भाजपा को मदद मिलेगी, खासकर उन क्षेत्रों में जहां मजबूत हिंदू ध्रुवीकरण की संभावना है, जैसे पश्चिमी और पूर्वी यूपी। हालांकि अगर यह भी समीकरण बनने लगता है कि भाजपा को राज्य में एकमात्र चुनौती समाजवादी पार्टी दे रही है तो मुस्लिम मतदाता का झुकाव अखिलेश यादव की तरफ हो सकता है। हालांकि जिन क्षेत्रों में बहुजन समाज पार्टी मजबूत है वहां के मुस्लिम मतदाता अब भी मायावती के साथ ही रह सकते हैं। अखिलेश यादव की पार्टी की ओर से सोशल मीडिया और मीडिया के जरिए इस बात को भी दिखाने की लगातार कोशिश की जा रही है कि राज्य में भाजपा को सिर्फ समाजवादी पार्टी ही चुनौती दे रही है। ऐसे में कहीं ना कहीं मुस्लिम समुदाय के वोट को अपने पक्ष में करने के लिए समाजवादी पार्टी की यह रणनीति बसपा पर भारी पड़ सकती है।

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एक बात और है कि 2019 के चुनाव के बाद से उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं का पैटर्न बदला है। 2019 में मुस्लिम समुदाय का झुकाव भाजपा की ओर देखा गया। 2014 से पहले तक भाजपा को मुसलमानों का वोट नहीं मिल रहा था और यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा मुसलमानों की पहली पसंद थी। माना जाता है कि उत्तर प्रदेश के 20 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता जिस पार्टी पर मेहरबान हो जाएंगे सरकार उसकी पक्की है। मुसलमान थोक रूप से एक तरफ ही मतदान करते हैं। चुनाव से पहले मुसलमानों के चुप्पी भी कई राजनीतिक दलों की धुकधुकी बढ़ा देती है। मुसलमान वोट परंपरागत रूप से कांग्रेस से छिटक कर समाजवादी पार्टी और बसपा को उत्तर प्रदेश में मिलते रहे हैं।

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हालांकि इस बार के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों का भी बंटवारा अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण हो सकता है। खुद को मुसलमानों की सबसे बड़ा हितैषी बताने वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ रही है। 100 से ज्यादा सीटों पर एआईएमआईएम अपने उम्मीदवार उतार रही है। ऐसे में मुसलमानों का कुछ वोट उधर भी जा सकता है। दूसरी ओर पूर्वांचल में डॉक्टर अयूब अंसारी की पीस पार्टी भी मुसलमानों में अच्छी पकड़ रखती है। अगर इस बार चुनाव में अपने उम्मीदवार को उतारती है तो उसका असर भी देखने को मिल सकता है। उत्तर प्रदेश में फिलहाल 24 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं जहां मुसलमान उम्मीदवार हावी रहते हैं। जबकि मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव 145 सीटों से ज्यादा पर है।

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