इसलिए महाभियोग प्रस्ताव पर मनमोहन, खुर्शीद, चिदंबरम, सिंघवी ने नहीं किये हस्ताक्षर
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का एक बड़ा वर्ग इस फैसले से खुश नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस पर हस्ताक्षर करने से साफ इंकार कर दिया और कहा कि यह कांग्रेस की संस्कृति नहीं है।
प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का नोटिस देने पर कांग्रेस में मतभेद उभर आये हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का एक बड़ा वर्ग इस फैसले से खुश नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस पर हस्ताक्षर करने से साफ इंकार कर दिया और कहा कि यह कांग्रेस की संस्कृति नहीं है। डॉ. सिंह न्यायपालिका पर सवाल उठाने के फैसले से खुश नहीं हैं। इस नोटिस पर पूर्व गृह और वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम और पार्टी के वरिष्ठ सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने भी हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने भी महाभियोग प्रस्ताव को गैरजरूरी बताते हुए कहा है कि देश में और भी समस्याएं हैं जिन पर पहले ध्यान देना चाहिए। खुर्शीद ने कहा कि मुझसे इस मुद्दे पर किसी ने बात भी नहीं की थी। खुर्शीद प्रस्ताव पर इसलिए भी हस्ताक्षर नहीं कर सकते थे क्योंकि वह संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं।
हैरत की बात है कि सत्ता में रहते हुए कांग्रेस महाभियोग प्रस्ताव का विरोध करती रही है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने वाली कांग्रेस ने 25 साल पहले सत्ता में रहते हुए ऐसी ही कार्यवाही का विरोध किया था। पहले तीन मौकों पर उस वक्त महाभियोग प्रस्ताव लाए गए थे जब कांग्रेस केंद्र की सत्ता में थी। मई 1993 में जब पहली बार उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति वी रामास्वामी पर महाभियोग चलाया गया तो वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कपिल सिब्बल ने ही लोकसभा में बनाई गयी विशेष बार से उनका बचाव किया था। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों द्वारा मतदान से अनुपस्थित रहने की वजह से यह प्रस्ताव गिर गया था। उस वक्त केंद्र में पीवी नरिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी।
न्यायमूर्ति रामास्वामी के अलावा वर्ष 2011 में जब कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया तो भी कांग्रेस की ही सरकार थी। सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति पीडी दिनाकरण के खिलाफ भी इसी तरह की कार्यवाही में पहली नजर में पर्याप्त सामग्री मिली थी लेकिन उन्हें पद से हटाने के लिये संसद में कार्यवाही शुरू होने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।
विपक्षी दलों में भी इस प्रस्ताव को लेकर पूर्ण सहमति नहीं है। शुरू में महाभियोग प्रस्ताव के समर्थन में रही द्रमुक और तृणमूल भी ऐन टाइम पर पीछे हट गईं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने कहा है कि देश के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव मजाक बनकर रह जाएगा क्योंकि संसद के दोनों सदनों में पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण यह गिर जाएगा। आप के प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने कहा कि यदि प्रस्ताव खारिज होता है तो यह प्रधान न्यायाधीश के कामकाज पर मंजूरी की मुहर होगी।
वैसे भी संविधान में उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को हटाने की बेहद जटिल प्रक्रिया है। इन अदालतों के न्यायाधीशों को सिर्फ साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ही हटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 124 :4: और न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 और उससे संबंधित नियमावली में इस बारे में समूची प्रक्रिया की विस्तार से चर्चा है।
हालांकि कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेताओं के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं करने की बात को तवज्जो ना देते हुए कहा है कि पार्टी मुद्दे में अपने वरिष्ठ नेताओं को शामिल करना नहीं चाहती। कांग्रेस नेताओं गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल ने मुद्दे को लेकर कांग्रेस के बंटे होने और विपक्षी दलों में सहमति ना होने की खबरों को खारिज कर दिया है। सिब्बल ने कहा, ''यह पूरी तरह से गलत है। शुरूआत से ही यह गंभीर मुद्दा रहा है। यह कोई तुरंत बनने वाली कॉफी नहीं है। गंभीर एवं अच्छी तरह से सोचने समझने के बाद फैसला लेने की जरूरत है।’’
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