मजदूरी करने से लेकर वेटर बनने तक संघर्षपूर्ण रहा है Rambabu का जीवन, अब पेरिस में करेंगे भारत का प्रतिनिधित्व
एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीतने वाले रामबाबू ने 20 किमी की पैदल चाल में पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया है। जहाँ वे अपनी मेहनत की बदौलत भारत की पदक तालिका में वृद्धि करने की पूरी-पूरी कोशिश करेंगे। ये उनकी उस मेहनत का फल है जो उन्होंने तमाम बुरे हालातों के बाद भी जारी रखी।
पिछले साल हुए एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीतने वाले रामबाबू ने 20 किमी की पैदल चाल में पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया है। जहाँ वे अपनी मेहनत की बदौलत भारत की पदक तालिका में वृद्धि करने की पूरी-पूरी कोशिश करेंगे। रामबाबू के लिए ये पल बहुत ही महत्वपूर्ण है। ये उनकी उस मेहनत का फल है जो उन्होंने तमाम बुरे हालातों के बाद भी जारी रखी। एशियाई खेलों में 35 किमी रेस वॉक मिक्स्ड टीम कांस्य पदक जीतने वाले बाबू ने अपने एथलेटिक्स प्रशिक्षण को खुद चलाने के लिए वेटर का काम किया और कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान अपने पिता के साथ मिलकर मनरेगा योजना के तहत सड़क निर्माण में हाथ बंटाया।
रामबाबू के पिता छोटेलाल एक भूमिहीन मजदूर हैं और मजदूरी से ही अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। रामबाबू और उनके परिवार को 2020 के कोविड लॉकडाउन में भोजन तक के लिए संघर्ष करना पड़ा था। उस समय उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। लॉकडाउन की कठिन परिस्थितियों में डेढ़ महीना उन्होंने तालाब खोदने का काम किया। मजदूरी करने से पहले वह वेटर का काम करते थे. इसके अलावा उन्हें कुरियर पैकेजिंग कंपनी में करीब 4 महीने बोरे सिलने का काम भी किया। सेना के हवलदार रिक्रूटर रामबाबू ने बताया कि संघर्ष के आगे मैंने कभी नतमस्तक होना नहीं सीखा।
हमेशा सच्चाई और कड़ी लग्न से सभी बाधाओं को तोड़ा। 2014 में मुझे एहसास हुआ कि मैराथन में हेल्दी खाने का जुगाड़ करना आसान नहीं है क्योंकि पौष्टिक आहार के लिए पैसे की जरूरत होती है और इतना पैसा इनके पास नहीं था। पैसे का जुगाड़ करने के लिए रामबाबू ने बनारस में वेटर का काम किया। एथलीट में बेटे का जुनून देख मां-बाप मेहनत मजदूरी कर पैसे भेजा करते थे। उस समय दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल था। होटल में वेटर का काम करने से राम बाबू की ट्रेनिंग प्रभावित हो रही थी। इसके बाद राम बाबू ने कई नौकरियां बदलीं, लेकिन कहते हैं, अगर आप मेहनत करोगे तो कामयाबी भी आपके आगे नतमस्तक होने पर मजबूर हो जाएगी।
इसका परिणाम यह हुआ कि नॉर्दर्न कोल फील्ड लिमिटेड ने एथलेटिक्स कैंप के लिए रामबाबू को चुन लिया। फिर इन्हें कोच ने मैराथन दौड़ को बदलने और रेस वॉक करने की ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। फरवरी 2021 में, उन्होंने राष्ट्रीय रेस वॉक चैंपियनशिप में 50 किमी रेस वॉक में रजत पदक जीता और कोच बसंत राणा की मदद से पुणे में आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में उनके प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया। विश्व एथलेटिक्स द्वारा अपने कार्यक्रम से 50 किमी की स्पर्धा को हटाने का निर्णय लेने के बाद, बाबू ने 35 किमी स्पर्धा में भाग लिया और सितंबर 2021 में राष्ट्रीय ओपन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और कुछ महीने बाद उन्हें बेंगलुरु में राष्ट्रीय शिविर में बुलाया गया।
पिछले साल राष्ट्रीय खेलों में 35 किमी दौड़ में राष्ट्रीय रिकार्ड समय के साथ स्वर्ण पदक जीतने के बाद बाबू को सेना में नौकरी मिल गई और अब वह हवलदार हैं। हालांकि यह सब आसान नहीं था, रेस वॉक राम बाबू के लिए कठिन थी। राष्ट्रीय ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद राम बाबू का चयन विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए हुआ। ट्रायल्स में अच्छा प्रदर्शन काम नहीं आया। इस दौरान विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हैमस्ट्रिंग की चोट लग गई। हैमस्ट्रिंग की चोट राम बाबू के लिए गंभीर थी। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। इसके बाद उन्होंने 35 किमी पैदल चाल में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया और एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीता है।
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