Rupal Choudhary को एथलीट बनने के लिए करनी पड़ी थी भूख हड़ताल, अब पेरिस में दिखायेंगी दमखम
रूपल चौधरी ने पेरिस ओलंपिक 2024 के लिए क्वालीफाई कर लिया है। इस युवा एथलीट के लिए यहां तक का सफर तय करना आसान नहीं था। रूपल को एथलेटिक्स को करियर बनाने के लिए पिता के सामने भूख हड़ताल तक करनी पड़ी थी। पश्चिमी यूपी के मेरठ से लगभग 15 किलोमीटर दूर जैनपुर गांव में लड़कियां नहीं दौड़ती हैं।
उत्तर प्रदेश के मेरठ से आने वाली रूपल चौधरी ने पेरिस ओलंपिक 2024 के लिए क्वालीफाई कर लिया है। इस युवा एथलीट के लिए यहां तक का सफर तय करना आसान नहीं था। रूपल को एथलेटिक्स को करियर बनाने के लिए पिता के सामने भूख हड़ताल तक करनी पड़ी थी। पश्चिमी यूपी के मेरठ से लगभग 15 किलोमीटर दूर जैनपुर गांव में लड़कियां नहीं दौड़ती हैं। स्पोर्ट्स स्टार से बातचीत में रूपल के पिता ओमवीर चौधरी ने कहा, ‘हमारा एक पारंपरिक गांव है।’ ओमवीर गन्ना किसान हैं। रूपल ने साल 2016 में एथलेटिक्स को करियर बनाने का फैसला लिया। रूपल ने नेशनल फेडरेशन कप में प्रिया मोहन जैसी खिलाड़ी को पछाड़कर खूब सुर्खियां बटोरीं।
रूपल चौधरी ने कहा, ‘मैंने रियो ओलंपिक 2016 में पीवी सिंधु और साक्षी मलिक (Sakshi Malik) को पदक जीतते हुए देखा। इसके बाद मैंने भी एथलीट बनने का फैसला लिया। मैं यह नहीं जानती थी कि इसके लिए मुझे क्या करना होगा, लेकिन मैंने ये फैसला लिया।’ मेरठ में एक ही स्टेडियम है। लेकिन ओमवीर बेटी को वहां ले जाने के लिए राजी नहीं थे। बकौल रूपल, ‘ पहले वह (पिता) मुझे स्टेडियम ले जाने के लिए राजी हो गए। लेकिन बाद में वह कोई ना कोई बहाना करके टालने लगे। उन्हें संभवत: ऐसा लगा कि बाद में मैं अपना फैसला बदल लूंगी।’ इसके बाद भी तब 12 वर्षीय रूपल हार मानने की बजाय अपने लक्ष्य पर कायम रहीं। आखिरकार सितंबर 2017 में रूपल ने पिता को मनाने के लिए अनशन पर बैठने की ठानी।
रूपल ने कहा, ‘ एक साल बाद, मुझे लगा कि पिता मुझे स्टेडियम नहीं भेजेंगे। इसलिए मैंने भूख हड़ताल करने का फैसला लिया। शुरू में उन्हें लगा कि मैं अपने इस फैसले को बदल लूंगी, लेकिन तीन दिन बीतने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि मैं इस मामले में बहुत गंभीर हूं। इसके बाद उन्होंने मुझे ले जाने का फैसला लिया। मेरे जिद के सामने उनको झुकना पड़ा।’ रूपल जब मेरठ के कैलाश प्रकाश स्टेडियम पहुंचीं तब इस स्टेडियम की हाल बहुत खराब थी। सिंथेटिक ट्रैक जर्जर अवस्था में था। टॉयलेट्स बहुत गंदे थे। बावजूद इसके रूपल वहां पहुंचकर बहुत खुश थीं। क्योंकि यही वह जगह था जहां से उन्हें अपने सपनों को उड़ान देनी थी। रूपल ने कहा, ‘जब मैं पहली बार स्टेडियम पहुंची, तब मेरीं आंखें खुली की खुली रह गईं। मुझे किसी एथलीट जैसा अहसास होने लगा।’
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