सदैव याद रहेगी अजीत जोगी की सियासी पारी

Ajit Jogi

अजीत जोगी वर्ष 1986 से 1998 तक कांग्रेस की ओर से दो बार राज्यसभा सदस्य रहे और उस दौरान कांग्रेस में अलग-अलग पदों पर भी कार्य करते रहे। 1998 के लोकसभा चुनाव में वे पहली बार रायगढ़ से चुनाव लड़कर लोकसभा में पहुंचे। हालांकि 1999 में वे शहडोल से लोकसभा चुनाव हार गए थे।

लंबी बीमारी के बाद छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का गत 29 मई को 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया। कार्डियाक अरेस्ट के बाद 9 मई को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था और इन 20 दिनों में देशभर के अलग-अलग अस्पतालों के जाने-माने डॉक्टरों से टेलीकांफ्रेंसिंग के जरिये चर्चा कर रायपुर में उनका उपचार करने की कोशिशें की जा रही थी। वेंटिलेटर के जरिये ही उन्हें लगातार सांस दी जा रही थी और उनके मस्तिष्क को सक्रिय करने के लिए म्यूजिक थैरेपी का भी सहारा लिया जा रहा था लेकिन अंततः जोगी 29 मई को जिंदगी की जंग हार गए। डीएम से सीएम बने और फिर राजनीति में बहुत लंबी पारी खेलने वाले आदिवासी समाज से आने वाले अजीत प्रमोद कुमार जोगी की इस लंबी सियासी पारी को भारतीय राजनीति में सदैव याद रखा जाएगा। भोपाल के मौलाना आजाद कॉलेज ऑफ टैक्नॉलोजी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने कुुछ दिन रायपुर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नॉलोजी में बतौर लैक्चरर अध्यापन किया। फिर यूपीएससी की तैयारी कर 1968 में यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर आईपीएस बने। इससे वे संतुष्ट नहीं हुए और काफी मेधावी रहे जोगी 1970 में यूपीएससी की परीक्षा में शीर्ष दसवें स्थान पर आकर आईएएस बने। 29 अप्रैल 1946 को बिलासपुर के पेंड्रा गांव में शिक्षक माता-पिता के घर पैदा हुए जोगी का बचपन काफी तंगी में बीता था और गरीबी के कारण उनके पिता ने ईसाई धर्म अपना लिया था। इसलिए ईसाई मिशनरी की मदद से ही अजीत जोगी की स्कूली शिक्षा पूरी हुई थी। वे एकमात्र ऐसे नेता रहे, जो इंजीनियरिंग करने के बाद शिक्षक बने, फिर आईपीएस-आईएएस बने तथा कई वर्षों तक डीएम के प्रतिष्ठित पद पर आसीन रहे। उसके बाद उन्होंने सांसद तथा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहते हुए राजनीति के कई आकाश छुए। राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते रहे जोगी अपनी वाकपटुता और खुशमिजाजी के लिए जाने जाते थे।

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अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रोबेशनर अधिकारी के तौर पर जब अजीत जोगी का बैच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिला तो एक सवाल के जवाब में इंदिरा जी ने कहा था कि भारत में वास्तविक सत्ता तीन ही लोगों के हाथ में है, डीएम, सीएम और पीएम। तभी से जोगी के मन में यह बात बैठ गई और वे आईएएस बनकर कई वर्षों तक डीएम के पद पर रहे तथा बाद में राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में भी ऐसा रंग जमाया, जिसे आने वाले अनेक वर्षों तक याद रखा जाएगा। वे गांधी परिवार के बेहद करीबी थे। दरअसल जब वे रायपुर जिले के जिलाधिकारी थे, उस समय राजीव गांधी इंडियन एयरलाइंस के पायलट थे और उनकी फ्लाइट जब कभी रायुपर में लैंड होती तो अजीत जोगी स्वयं उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट जाया करते थे। युवावस्था के दौरान ही दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी और इसी कारण बतौर जिलाधिकारी जोगी की पहुंच सीधे प्रधानमंत्री आवास तक हो गई थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, उस दौरान जोगी इन्दौर में जिलाधिकारी थे। जब वे मध्य प्रदेश के सीधी जिले में जिलाधिकारी थे, तब वे एक कर्मठ जिलाधिकारी के रूप में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को प्रभावित करने में सफल रहे थे। इंदौर के जिलाधिकारी रहते वे अर्जुन सिंह के करीबी बने और कहा जाता है कि उन्हीं की सलाह पर 1980 के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जोगी को राजनीति में लांच करने का फैसला किया था।

वर्ष 1986 में उन्हें अचानक प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया और उन्हें कलक्टर की नौकरी से इस्तीफा देकर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने को कहा गया। जिस समय प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया, उस वक्त बतौर इन्दौर जिलाधिकारी अजीत जोगी एक ग्रामीण इलाके के दौरे पर थे और फोन उनकी पत्नी रेणु ने रिसीव किया था। जब जोगी घर लौटे और उन्हें फोन के बारे में बताया गया तो उन्होंने विश्वास ही नहीं हुआ कि एक जिलाधिकरी को भला सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन क्यों आएगा लेकिन अगली सुबह जब खुद राजीव गांधी के पीए ने उनसे इस बारे में बात की तो जोगी के लिए असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई। दरअसल जून 1986 में उनकी पदोन्नति के आदेश भी जारी हो चुके थे। आखिरकार कुछ सोच-विचार के बाद उन्होंने प्रशासनिक दायित्व छोड़कर राजनीति में पदार्पण का फैसला कर लिया और कांग्रेस में सम्मिलित होकर राज्यसभा सांसद बनकर बतौर राजनेता एक नई पारी की शुरूआत की। वे दो बार राज्यसभा सांसद, कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने।

जोगी वर्ष 1986 से 1998 तक कांग्रेस की ओर से दो बार राज्यसभा सदस्य रहे और उस दौरान कांग्रेस में अलग-अलग पदों पर भी कार्य करते रहे। 1998 के लोकसभा चुनाव में वे पहली बार रायगढ़ से चुनाव लड़कर लोकसभा में पहुंचे। हालांकि 1999 में वे शहडोल से लोकसभा चुनाव हार गए थे। मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद 1 नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ नामक अलग राज्य बनने पर अजीत जोगी वहां के पहले मुख्यमंत्री बने, जिसके बाद वे वर्ष 2003 तक मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहे। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री बनने में सफल होने के बाद जोगी ने शपथ लेने के पश्चात् कहा था कि ‘हां, मैं सपनों का सौदागर हूं. मैं सपने बेचता हूं।’ उन्होंने यह टिप्पणी भी की थी कि भारत में सीएम और पीएम तो कुछ लोग बन चुके हैं पर डीएम और सीएम बनने का सौभाग्य केवल मुझे ही मिला है। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने प्रदेश के विकास के लिए कई योजनाएं शुरू की लेकिन कई तरह के विवादों के साथ भी उनका नाता जुड़ता गया, जिससे उनकी काफी बदनामी भी हुई। मुख्यमंत्री के रूप में जोगी छत्तीसगढ़ के करिश्माई नेता बन चुकेे थे लेकिन एक स्टिंग ऑपरेशन में फंसने के कारण 2003 में उनकी कुर्सी चली गई थी और 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली थी।

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जून 2003 में एनसीपी के प्रदेश कोषाध्यक्ष रामअवतार जग्गी की हत्या के मामले में अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी पर लगे हत्या के आरोप तथा भाजपा विधायकों की खरीद-फरोख्त के प्रयासों के आरोप में जोगी को कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया। हालांकि 2004 में उनका निलंबन वापस ले लिया गया और वे एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए। उसी साल वे एक ऐसी दुर्घटना के शिकार हुए, जिसके कारण उनकी कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था लेकिन फिर भी वे राजनीति में निरन्तर सक्रिय रहे। जून 2007 में जोगी और उनके बेटे को एनसीपी के कोषाध्यक्ष की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया। लंबे समय तक छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान अजीत जोगी के हाथ में रही और उनके नेतृत्व में कांग्रेस की लगातार तीन हार के कारण पार्टी में उनका विरोध काफी बढ़ गया था। उनके बेटे पर लगातार आरोप लगते रहे कि वह अपनी पिता की ताकत की आड़ में मनमाने काम कर रहे हैं। इसके अलावा जोगी की कार्यप्रणाली के बारे में कहा जाता रहा कि राज्य में वे पार्टी को अपने ही हिसाब से चला रहे हैं, जिससे कांग्रेस की छवि काफी खराब हो रही है। यही कारण रहा कि अपनी पार्टी की ओर से वे प्रदेश की राजनीति में लगातार हाशिये पर जा रहे थे। आलाकामान की उपेक्षा और अपना राजनीतिक ग्राफ गिरता देख अजीत जोगी ने पार्टी में बगावती तेवर भी अपनाए और आखिरकार पार्टी में अपनी बात नहीं सुने जाने का आरोप लगाते हुए 6 जून 2016 को कांग्रेस से नाता तोड़ते हुए उन्होंने अपनी अलग पार्टी ‘जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे)’ का गठन कर लिया था। हालांकि उसके बाद वे छत्तीसगढ़ की राजनीति में कोई करिश्मा नहीं कर पाए। 2018 में उन्होंने बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन उसमें उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली थी। कुल मिलाकर राजनीति के अंतिम चंद वर्षों में लिए गए उनके कुछ फैसले उनके लिए आत्मघाती कहे जा सकते हैं। बहरहाल, डीएम से सीएम तक की एक शानदार सियासी पारी खेलने वाले अजीत जोगी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।

योगेश कुमार गोयल

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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