उड़ीसा में संघ कार्य के सूत्रधार थे बाबूराव पालधीकर

Baburao Paldhikar profile
विजय कुमार । Jan 20 2018 6:01PM

आज संघ का काम भारत के हर जिले और तहसील में है। इसकी नींव में वे लोग हैं, जिन्होंने विरोध और अभावों में संघ कार्य की फसल उगाई। उड़ीसा में संघ कार्य के सूत्रधार थे श्री दत्तात्रेय भीकाजी (बाबूराव) पालधीकर।

आज संघ का काम भारत के हर जिले और तहसील में है। इसकी नींव में वे लोग हैं, जिन्होंने विरोध और अभावों में संघ कार्य की फसल उगाई। उड़ीसा में संघ कार्य के सूत्रधार थे श्री दत्तात्रेय भीकाजी (बाबूराव) पालधीकर। उनका जन्म 21 जनवरी, 1921 में ग्राम बेढ़ोना (वर्धा, महाराष्ट्र) में हुआ था। उनके पिताजी और चाचा जी भी स्वयंसेवक थे। अतः वे बालपन में ही डा. हेडगेवार के सम्पर्क में आ गये। दत्तोपंत ठेंगड़ी आर्वी में उनके सहपाठी थे और उन्होंने ही ठेंगड़ी जी को स्वयंसेवक बनाया था। मेधावी छात्र होने के साथ ही उनकी साहित्यिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों में भरपूर रुचि थी। 

1940 में बाबूराव ने तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण पूरा किया। उसी वर्ष नागपुर से बी.ए. कर वे प्रचारक बने और उन्हें फिरोजपुर (पंजाब) में जिला प्रचारक बनाकर भेजा गया। बाबूराव को मराठी, संस्कृत तथा अंग्रेजी आती थीं; पर एक वर्ष में ही उन्होंने हिन्दी, उर्दू तथा पंजाबी भी सीख ली। 1944 में वे विभाग प्रचारक तथा 1947 में सहप्रांत प्रचारक बने। विभाजन के समय हिन्दुओं की रक्षा तथा उन्हें बचाकर लाने में बाबूराव की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही। 1948 में गांधी हत्या के आरोप में संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस दौरान उनके पिताजी को गांव में संघ विरोधियों ने खम्भे से बांध कर जलाना चाहा। वे तेल छिड़क चुके थे; पर तभी पुलिस के आने से वे बच गये। 

प्रतिबंध के बाद 1949 में उन्हें उड़ीसा में प्रांत प्रचारक बनाकर भेजा गया। उड़ीसा में तब केवल चार शाखाएं थीं। उस स्थिति में काम करना एक बड़ी चुनौती थी। उड़ीसा में आज भी घोर निर्धनता है। समुद्र तटीय क्षेत्र में तूफान, चक्रवात आदि से प्रायः विनाश होता रहता है। ऐसे में बाबूराव ने वहां काम खड़ा किया और धीरे-धीरे उड़ीसा में 200 शाखा हो गयीं। वे कार्यकर्ताओं को सदा ‘संघमय उड़ीसा’ बनाने का संकल्प दिलाते रहते थे।

कटक के पास महानदी की सहायक नदी काठजोड़ी बहती है। निराशा के क्षणों में बाबूराव उसके तट पर जा बैठते थे। नदी की उत्ताल तरंगों को देखकर उनकी हताशा दूर हो जाती। शारीरिक विषयों में दंड तथा घोष में शंख के वे लम्बे समय तक शिक्षक रहे। उनका सम्पर्क सब तरह के लोगों से था। उनके प्रयास से कटक के बैरिस्टर नीलकंठ दास ने एक बार नागपुर के विजयादशमी उत्सव में अध्यक्षता की। इसके बाद वे संघ कार्य में बड़े सहायक हुए। श्री हरेकृष्ण महताब से भी उनके निकट संबंध थे, जो आगे चलकर मुख्यमंत्री बने। 

बाबूराव बड़े साहसी तथा प्रत्युत्पन्नमति व्यक्ति थे। पंजाब तथा उड़ीसा में कई बार वे पुलिस के हत्थे चढ़े; पर हर बार बच निकले। विभाजन के बाद बंगाल से आ रहे हिन्दुओं की रेलगाड़ियों पर मुसलमानों द्वारा किये गये पथराव से भड़क कर हिन्दुओं ने उन्हें अच्छा मजा चखाया। राउरकेला में इससे दंगा भड़क उठा। इस कारण बाबूराव को चार माह तक कटक जेल में रहना पड़ा। 1975 के आपातकाल में बाबूराव को पुलिस पकड़ नहीं पायी।

1980 में उन्हें पूर्वी क्षेत्र का प्रचारक बनाया गया। इससे उनके अनुभव का लाभ उड़ीसा के साथ ही बंगाल, असम, सिक्किम तथा अंदमान को भी मिलने लगा। वृद्धावस्था में अनेक रोगों के कारण 1992 में उन्हें दायित्व से विश्राम दे दिया गया और वे कटक कार्यालय पर ही रहने लगे। वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से अच्छे समाचार, लेख आदि का ओड़िया में अनुवाद कर ‘राष्ट्रदीप’ साप्ताहिक में प्रकाशनार्थ देते रहते थे। उनकी स्मृति अंत तक बहुत तीव्र थी। 12 अक्तूबर, 2003 को कटक में ही उनका देहांत हुआ।

- विजय कुमार

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