Dhirubhai Ambani Birth Anniversary: मिट्टी को भी सोना बनाने का हुनर जानते थे धीरूभाई अंबानी, चंद पैसों से खड़ा कर दिया रिलायंस का साम्राज्य
धीरूभाई अंबानी न तो किसी कारोबारी घराने से ताल्लुक ऱखते थे और न ही उनका परिवार आर्थिक रूप से बहुत मजबूत था। ऐसे में उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर कामयाबी के शिखर को छुआ था।
देश और दुनिया की दिग्गज कंपनियों में शामिल रिलायंस इंडस्ट्री की नींव धीरूभाई अंबानी ने रखी थी। आज ही के दिन यानी की 28 दिसंबर को धीरूभाई अंबानी का जन्म हुआ था। उन्होंने शून्य से शिखर का सफर तय किया था। धीरूभाई अंबानी न तो किसी कारोबारी घराने से ताल्लुक ऱखते थे और न ही उनका परिवार आर्थिक रूप से बहुत मजबूत था। ऐसे में उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर कामयाबी के शिखर को छुआ था। वह मिट्टी से भी पैसा कमाने का हुनर रखते थे। ऐसे में आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर धीरूभाई अंबानी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
गुजरात के चोरवाड़ 28 दिसंबर 1932 को धीरूभाई अंबानी का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम धीरजलाल हीरालाल अंबानी था। उनके पिता एक शिक्षक थे। परिवार बड़ा था और कमाई उतनी नहीं होने के कारण आर्थिक तंगी हमेशा सताती थी। आर्थिक तंगी के चलते धीरूभाई अंबानी अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाए थे। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने व्यवसाय करना शुरू कर दिया। शुरूआत में धीरूभाई अंबानी को फेरी लगाकर सामान बेचना पड़ता था। वहीं परिवार की मदद करने के लिए उन्होंने कभी तेल तो कभी भजिया बेचने का काम भी किया। वहीं पिता के कहने पर वह साल 1950 में बड़े भाई रमणीकलाल के पास अदन यानी की यमन चले गए।
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अदन में नौकरी
बड़े भाई रमणीकलाल ने ‘ए. बैसी एंड कंपनी’ के पेट्रोल पंप पर उनकी 300 रुपए महीने की नौकरी लगवा दी। तो वहीं उन्होंने काफी कम समय में काम सीख लिया। बाद में वह इसी कंपनी में फिलिंग स्टेशन में मैनेजर के पद पर काम करने लगे।
बिजनेस की शुरूआत
इसके बाद धीरूभाई ने मुंबई में किराए पर घर लेकर बिजनेस की शुरूआत की। थोड़ी सी जमापूंजी के साथ साल 1958 में उन्होंने रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन की स्थापना की। यह कंपनी हल्दी, इलायची, अदरक और कपड़ों के अलावा अन्य कई चीजों को एक्सपोर्ट करती थी। धीरे-धीरे धीरूभाई की मेहनत और बुद्धि के दम पर उनका व्यापार चल निकला। जिसके बाद साल 1958 से 1965 के बीच रिलायंस ने विकास की तेज रफ्तार पकड़ ली।
देखते ही देखते मुंबई के यार्न बाजार व देश के हैंडलूम और पावरलूम केंद्रों में उनकी कंपनी की अपनी पहचान बन चुकी थी। जिसके बाद 60 के दशक में उन्होंने विस्कोस आधारित धागा चमकी बनाया। इस तरह से वह शोहरत के शिखर पर पहुंच गए। लेकिन वह इतने में ही कहां रुकने वाले थे। उन्होंने गुजरात के नरोदा में स्थिति एक मिल में 15000 रुपए इनवेस्ट किए। इस मिल में पॉलिएस्टर के धागों से कपड़ा बनाया जाता था। इस ब्रांड का नाम उन्होंने विमल ब्रांड रखा। दरअसल, धीरूभाई के बड़े भाई रमणीकलाल के बेटे का नाम भी विमल था। बाद में विमल ने ही उनको बिजनेस टाइकून बना दिया। जिसके बाद साल 1991-92 में हजीरा पेट्रोकेमिकल प्लांट की शुरुआत की। तो वहीं साल 1992 में रिलायंस ग्लोबल मार्केट से फंड जुटाने वाली देश की पहली कंपनी बनकर उभरी। साल 1995-96 में कंपनी ने भारत में टेलिकॉम इंडस्ट्री 'रिलायंस टेलीकॉम प्राइवेट लिमिटेड' NYNEX USA के साथ मिलकर शुरूआत की।
राजनेताओं से संबंध
सभी राजनेताओं के अलावा धीरूभाई अंबानी के राजनीतिक दलों से भी काफी अच्छे संबंध थे। इसका फायदा उन्हें अपना बिजनेस बढ़ाने में भी मिला। इसको आप ऐसे भी समझ सकते है कि जब इंदिरा सरकार ने प्राइवेट सेक्टर के लिए भी पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न की मैन्युफैक्चरिंग खोलने का फैसला लिया। तो कई दिग्गज बिजनेसमैन जैसे टाटा, बिड़ला को पीछे छोड़ते हुए धीरूभाई अंबानी ने इसमें बाजी मार ली। राजनैतिक दलों से अच्छे संबंधों के चलते रिलायंस को मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने का लाइसेंस मिल गया।
विवादों से भी रहा नाता
हांलाकि इस बात में दो राय नहीं थी कि धीरूभाई अंबानी लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ते जा रहे थे, लेकिन उनके रास्ते में भी कई मुश्किलें व रुकावट थीं। उस दौरान धीरूभाई अंबानी के सबसे बड़े कॉम्पटीटर बॉम्बे डाइंग के नुसली वाडिया माने जाते थे। धीरूभाई के कुछ कर्मचारियों के खिलाफ वाडिया की हत्या की साजिश को लेकर आरोप भी लगाए गए थे।
मौत
धीरूभाई को 24 जून 2002 में दिल का दौरा पड़ने पर मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यह उनको दूसरा दिल का दौरा पड़ा था। वहीं 6 जुलाई 2002 को 69 साल की उम्र में धीरूभाई अंबानी का निधन हो गया था। जब धीरूभाई अंबानी की मौत हुई थी, उस दौरान वह दुनिया के 138वें सबसे अमीर व्यक्ति थे।
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