संघ के कार्यों का आजीवन प्रचार किया दिगम्बर विश्वनाथ पातुरकर ने

Digambar Vishwanath or Rajabhau Paturkar was RSS man
विजय कुमार । Jan 2 2018 12:18PM

गहरा रंग, स्वस्थ व सुदृढ़ शरीर, कठोर मन, कलाप्रेम, अनुशासनप्रियता, किसी भी कठिनाई का साहस से सामना करना तथा सामाजिक कार्य के प्रति समर्पण के गुण उन्हें अपने पिताजी से मिले थे।

संघ के प्रथम पीढ़ी के प्रचारकों में से एक श्री दिगम्बर विश्वनाथ (राजाभाऊ) पातुरकर का जन्म 1915 में नागपुर में हुआ था। गहरा रंग, स्वस्थ व सुदृढ़ शरीर, कठोर मन, कलाप्रेम, अनुशासनप्रियता, किसी भी कठिनाई का साहस से सामना करना तथा सामाजिक कार्य के प्रति समर्पण के गुण उन्हें अपने पिताजी से मिले थे। खेलों में अत्यधिक रुचि के कारण वे अपने साथी छात्रों में बहुत लोकप्रिय थे। महाल के सीताबर्डी विद्यालय में पढ़ते समय उनकी मित्रता श्री बापूराव बराड़पांडे, बालासाहब व भाऊराव देवरस, कृष्णराव मोहरील आदि से हुई। इनके माध्यम से उनका परिचय संघ शाखा और डॉ. हेडगेवार से हुआ।

मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद डॉ. जी ने उन्हें पढ़ने तथा शाखा खोलने के लिए पंजाब की राजधानी लाहौर भेज दिया। आत्मविश्वास के धनी राजाभाऊ उनका आदेश मानकर लाहौर पहुंच गये। हॉकी के अच्छे खिलाड़ी होने के कारण उनके कई मित्र बन गये; पर जिस काम से वे आये थे, उसमें अभी सफलता नहीं मिल रही थी। वे अकेले ही संघस्थान पर खड़े रहते और प्रार्थना कर लौट आते थे। एक बार कुछ मुस्लिम गुंडों ने विद्यालय के हिन्दू छात्रों से छेड़खानी की। राजाभाऊ ने अकेले ही उनकी खूब पिटाई की। इससे छात्रों और अध्यापकों के साथ पूरे नगर में उनकी धाक जम गयी। परिणाम यह हुआ कि जिस शाखा पर वे अकेले खड़े रहते थे, उस पर संख्या बढ़ने लगी।

संघ कार्य के लिए राजाभाऊ ने पंजाब में खूब प्रवास कर चप्पे-चप्पे की जानकारी प्राप्त की। वे पंजाबी भाषा भी अच्छी बोलने लगे। सैंकड़ों परिवारों में उन्होंने घरेलू सम्बन्ध बना लिये। नेताजी सुभाषचंद्र बोस को अंग्रेजों की नजरबंदी से मुक्त कराते समय उनके भतीजे ने कोलकाता से लखनऊ पहुंचाया था। वहां से दिल्ली तक भाऊराव देवरस ने, दिल्ली से लाहौर तक बापूराव मोघे ने और लाहौर के बाद सीमा पार कराने में राजाभाऊ का विशेष योगदान रहा। 

लाहौर में काम की नींव मजबूत करने के बाद श्री गुरुजी ने उन्हें नागपुर बुला लिया। 1948 में संघ पर प्रतिबन्ध के समय उन्होंने भूमिगत रहकर वहां सत्याग्रह का संचालन किया। प्रतिबन्ध समाप्ति के बाद उन्हें विदर्भ भेजा गया। 1952 से 57 तक वे मध्यभारत के प्रांत प्रचारक रहे। इसके बाद श्री बालासाहब देवरस की प्रेरणा से उन्होंने ‘भारती मंगलम्’ नामक संस्था बनाकर युवकों को देश के महापुरुषों के जीवन से परिचित कराने का काम प्रारम्भ किया।

सबसे पहले उन्होंने सिख गुरुओं की चित्र प्रदर्शनी बनायी। प्रदर्शनी के साथ ही राजाभाऊ का प्रेरक भाषण भी होता था। अपने प्रभावी भाषण से पंजाब के इतिहास और गुरुओं के बलिदान को वे सजीव कर देते थे। इस प्रदर्शिनी की सर्वाधिक मांग गुरुद्वारों में ही होती थी। इसके बाद उन्होंने राजस्थान के गौरवपूर्ण इतिहास तथा छत्रपति शिवाजी के राष्ट्र जागरण कार्य को प्रदर्शनियों के माध्यम से देश के सम्मुख रखा। प्रदर्शनी देखकर लोग उत्साहित हो जाते थे। इन्हें बनवाने और प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने देश भर में प्रवास किया। 

इसके बाद उन्होंने संघ के संस्थापक पूज्य डॉ. हेडगेवार का स्वाधीनता आंदोलन में योगदान तथा उन्होंने संघ कार्य को देश भर में कैसे फैलाया, इसकी जानकारी एकत्र करने का बीड़ा उठाया। डॉ. जी जहां-जहां गये थे, राजाभाऊ ने वहां जाकर सामग्री एकत्र की। उन्होंने वहां के चित्र आदि लेकर एक चित्रमय झांकी तैयार की। इसके प्रदर्शन के समय उनका ओजस्वी भाषण डॉ. हेडगेवार तथा संघ के प्रारम्भिक काल का जीवंत वातावरण प्रस्तुत कर देता था। दो जनवरी, 1988 को अपनी प्रदर्शनियों के माध्यम से जनजागरण करने वाले राजाभाऊ पातुरकर का नागपुर में ही देहांत हुआ।

- विजय कुमार

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़