ज्योति बसु पुण्यतिथि विशेष: कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री जो प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गया

jyoti basu

संयुक्त मोर्चा के नेता वीपी सिंह के आवास पहुंचे और उनका सुझाव मांगा। हालांकि, वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री बनने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि मैं डेढ़ साल पहले ही सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुका हूं, ऐसे में दोबारा प्रधानमंत्री बनने का सवाल ही नहीं उठता।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के जाने माने नेता ज्योति बसु 7 रेसकोर्स रोड पहुंचते-पहुंचते रह गए थे। वह उन लोगों में से हैं जिन्हें उन्हीं की पार्टी ने जाने से रोक दिया था। जबकि पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह चाहते थे कि ज्योति बसु को हिन्दुस्तान की गद्दी में बैठाया जाए और इसके लिए उन्होंने कई बार हरकिशन सिंह सुरजीत को पुनर्विचार करने के लिए कहा था।

दरअसल, साल 1996 में जब 11वीं लोकसभा के परिणाम सामने आए तो किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। ऐसे में हिन्दुस्तान की सत्ता में कौन काबिज होगा इस तरह के सवाल पूछे जाने लगे ? हालांकि, चुनाव परिणाम के बाद भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी मगर उनके पास इतनी सीटें नहीं थी कि वह अकेले अपने दम पर सरकार बना लें। 10 मई की शाम को दिल्ली की सियासी हलचलें दिखाईं दीं। शाम को सीपीएम नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने मोर्चा संभाला और जनता दल सहित बाकी की दलों के नेता एकजुट होने लगे और संयुक्त मोर्चा बनाया गया। कांग्रेस और भाजपा के पास पूर्ण बहुमत नहीं था ऐसे में आगे क्या होगा ? सभी के जहन में यही सवाल था।

लोकसभा चुनावों में जनता दल तीसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी और कांग्रेस ने बिना शर्त समर्थन देने की बात भी कह दी थी। यह वो दौर था जब जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव हुआ करते थे। ऐसे में हरकिशन सिंह सुरजीत के साथ हुई बैठक में वीपी सिंह के नाम पर आम सहमति बन गई।

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इसके बाद संयुक्त मोर्चा के नेता वीपी सिंह के आवास पहुंचे और उनका सुझाव मांगा। हालांकि, वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री बनने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि मैं डेढ़ साल पहले ही सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुका हूं, ऐसे में दोबारा प्रधानमंत्री बनने का सवाल ही नहीं उठता। इसके बावजूद उनसे प्रधानमंत्री पद के लिए पुनर्विचार करने को कहा गया और उन्होंने फिर से इनकार कर दिया।

जब वीपी सिंह ने सुझाया ज्योति बसु का नाम

जब संयुक्त मोर्चा ने वीपी सिंह को ही प्रधानमंत्री पद के लिए नाम सुझाने को कहा तो उन्होंने ज्योति बसु का नाम सुझाया। ज्योति बसु के नाम पर भी सभी ने सहमति जता दी और फिर अगले दिन अखबारों में खबर छप गई कि ज्योति बसु अगले प्रधानमंत्री होंगे...

खबर भी छप गई, संयुक्त मोर्चा भी ज्योति बसु के नाम पर अपनी मुहर लगा चुका था और ज्योति बसु भी खुश थे इसके बावजूद वह प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। अब आप लोग सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या हुआ कि वह प्रधानमंत्री पद तक पहुंचते-पहुंचते रह गए ? दरअसल, ज्योति बसु की पार्टी सीपीएम ने सेंट्रल कमिटी की बैठक बुलाई और वहां पर ज्योति बसु के प्रधानमंत्री बनने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

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इसके बाद फिर से हरकिशन सिंह सुरजीत ने संयुक्त मोर्चा की बैठक बुलाई और नए नामों के लिए काफी विचार-विमर्श किया और अंतत: ज्योति बसु ने मुख्यमंत्री एचडी देवेगौड़ा का नाम सुझाया। जिस पर आपसी सहमति बनी।

संयुक्त मोर्चा ने एचडी देवेगौड़ा को दल का नेता चुन लिया और राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को इसकी जानकारी देने के लिए राष्ट्रपति भवन गए हालांकि, संयुक्त मोर्चा ने कांग्रेस के समर्थन वाली चिट्ठी अभी तक सौंपी नहीं थी। कांग्रेस द्वारा देर-दराज किए जाने के बाद राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दे दिया और फिर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बन गई। हालांकि, यह सरकार महज 13 दिनों की ही थी।

- अनुराग गुप्ता

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