छह-सात कदम ही बढ़े थे गांधीजी तभी उन्हें तीन गोलियां मार दी गईं

Only six to seven steps forword, then Gandhiji was given three bullets

महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में हुई हत्या के बारे में दर्ज कराई गई एफआईआर में लिखा है कि उनके अंतिम शब्द ''राम राम'' थे।

महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में हुई हत्या के बारे में दर्ज कराई गई एफआईआर में लिखा है कि उनके अंतिम शब्द 'राम राम' थे। चार घंटे से भी अधिक समय बाद तक प्राथमिकी में अपराधी के सामने का खाना खाली छोड़ा गया था और नाथूराम गोडसे के नाम का उल्लेख नहीं था बल्कि एक चश्मदीद के बयान में नारायण विनायक गोडसे का नाम लिया गया था। राष्ट्रीय अभिलेखागार में सहेजी गई इस प्राथमिकी में इन तथ्यों का उल्लेख है जिसकी प्रति महात्मा गांधी राष्ट्रीय संग्रहालय में भी मौजूद है।

गांधी संग्रहालय से मिली प्राथमिकी की छाया प्रति के अनुसार कनाट प्लेस के निवासी नंदलाल मेहता ने पुलिस को गांधी हत्या का सिलसिलेवार बयान दिया था। इसमें शिकायतकर्ता के तौर पर मेहता के नाम का उल्लेख है। दिलचस्प रूप से इसमें अपराधी के नाम के आगे कुछ भी दर्ज नहीं किया गया। सिर्फ मेहता के बयान में अपराधी का उल्लेख है पर नाम नाथूराम की बजाय नारायण विनायक गोडसे निवासी पुणे दर्ज किया गया। तीस जनवरी 1948 की शाम पांच बजकर 10 मिनट पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बिड़ला भवन के प्रार्थना सभा स्थल पर आए और करीब पांच बजकर सत्रह मिनट पर नाथूराम गोडसे ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी।

हत्या के तुरंत बाद वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने गोडसे को पकड़ा और तुगलक रोड पुलिस थाने पर घटना की प्राथमिकी रात 9 बजकर 45 मिनट पर दर्ज की गई। इस थाने में 60 वर्ष तक रखी उनकी हत्या की प्राथमिकी दिल्ली पुलिस ने बाद में राष्ट्रीय अभिलेखागार को सौंपी। इससे पहले एक प्रति महात्मा गांधी राष्ट्रीय संग्रहालय को भी दी गई थी। संग्रहालय के पुस्तकालय प्रमुख के मुताबिक गांधी हत्या की प्राथमिकी उस घटना से संबंधित अन्य दस्तावेजों के साथ रखी है। तुगलक रोड थाने की एफआईआर नंबर 68 को वर्ष 2002 में संग्रहालय ने दिल्ली पुलिस से हासिल किया था।

उन्होंने कहा, गांधी की हत्या से जुड़े रिकार्ड में गोडसे और अन्य दोषियों के खिलाफ विशेष अदालत के फैसले, दिल्ली सीआईडी की रिपोर्ट, गोडसे का जेल प्रशासन को माता−पिता से मिलने के अनुरोध के लिए लिखा पत्र और मामले से जुड़े अन्य दस्तावेजों की प्रतियां शामिल हैं। प्राथमिकी दिल्ली पुलिस से हासिल हुई वहीं अन्य दस्तावेज राष्ट्रीय अभिलेखागार ने उपलब्ध कराये। उन्होंने कहा कि प्राथमिकी के लिए हमने फरवरी 2002 में दिल्ली पुलिस से संपर्क किया था। उसी वर्ष हमें उर्दू में 18 पंक्तियों में लिखी प्राथमिकी की प्रति हासिल हुई। अभिलेखागार के एक अधिकारी ने पुष्टि की कि वर्ष 2008 में प्राथमिकी हासिल हुई थी जिसे अब यहां सहेजकर रखा गया है।

संग्रहालय में रखे हत्याकांड से जुड़े दस्तावेजों में यह भी उल्लेख मिलता है कि मामले के शुरुआती जांच अधिकारी तुगलक रोड पुलिस थाने के तत्कालीन एसएचओ दसौंधा सिंह, पुलिस उप अधीक्षक जसवंत सिंह और कांस्टेबल मोबाब सिंह थे। मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दर्ज किया गया था। प्राथमिकी के मुताबिक मेहता ने बयान में कहा कि वह पांच बजकर 10 मिनट पर बिड़ला भवन के प्रार्थना सभा स्थल पर थे तभी गांधीजी बिड़ला भवन में अपने कमरे से प्रार्थना के लिए बाहर निकले। उनके साथ आभा गांधी और मनु गांधी भी थीं।

उनके बयान के मुताबिक गांधी सीढ़ियों से आगे छह−सात कदम चले थे कि हुजूम में से एक आदमी जिसका नाम बाद में नारायण विनायक गोडसे (निवासी) पूना मालूम हुआ, आगे बढ़ा और महात्माजी के दो से तीन फुट के फासले से उसने पिस्तौल से तीन फायर किये। उनके पेट और छाती से खून निकलना शुरू हो गया। महात्माजी राम−राम कहते हुए गिर पड़े। प्राथमिकी में लिखा है हम महात्माजी को बेहोशी की हालत में उठाकर बिड़ला हाउस के रिहायशी कमरे में ले गए और उनका उसी वक्त इंतकाल हो गया। पुलिस मुलजिम को थाने ले गई।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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