अध्यक्ष तो आसानी से बन गये राहुल पर आगे की राह आसान नहीं

profile of congress president Rahul gandhi

अध्यक्ष के तौर पर सोनिया के 19 साल के कार्यकाल के समापन के बाद देश की इस सबसे पुरानी पार्टी की कमान संभालने वाले राहुल गांधी के लिए आगे की राह चुनौतियों भरी होगी।

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की आज बागडोर संभालने वाले राहुल गांधी ने भले ही विभाजनकारी ताकतों से लड़ने के लिए पार्टी जनों का आह्वान किया हो किन्तु एक के बाद एक राज्यों में मिल रही चुनावी पराजय के कारण राहुल के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती संगठन को मजबूत कर चुनावी सफलता दिलवाने की है जिससे एक नेता के रूप में उनकी साख काफी बढ़ेगी।

राहुल को जब 2013 में पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था तो उन्होंने जयपुर में भाषण के दौरान अपनी मां एवं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की इस बात को बड़े भावनात्मक ढंग से कहा था कि ‘‘सत्ता जहर पीने के समान’’ है। हालांकि, इसके ठीक पांच साल बाद अब उन्हें यह ‘विषपान’ करना पड़ेगा क्योंकि अब वह कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके हैं। कांग्रेस की कमान संभालने वाले राहुल नेहरू-गांधी परिवार में पांचवीं पीढ़ी के नेता हैं। यह सिलसिला आजादी से पहले मोतीलाल नेहरू से शुरू हुआ था।

अध्यक्ष के तौर पर सोनिया के 19 साल के कार्यकाल के समापन के बाद देश की इस सबसे पुरानी पार्टी की कमान संभालने वाले राहुल के लिए आगे की राह चुनौतियों भरी होगी। विपक्षी नेता ने पिछले कुछ सालों से उन्हें ‘‘शहजादा’’ और कई अन्य नामों से पुकार कर उनके महत्व को कम करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा है।

राहुल अपनी दादी इंदिरा गांधी की 1984 में हत्या के बाद उनके अंतिम संस्कार के समय राष्ट्रीय टेलीविजन और अखबारों में छपी तस्वीरों में अपने पिता राजीव गांधी के साथ प्रमुखता से दिखाई दिये थे। उसके बाद उनके पिता राजीव गांधी की 1991 में हत्या के बाद उनके अंतिम संस्कार में राहुल लगभग पूरे देश की सहानुभूति के केन्द्र में रहे।

राहुल का जन्म 19 जून 1970 को हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, राहुल ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज, हार्वर्ड कॉलेज और फ्लोरिडा के रोलिंस कॉलेज से कला में स्नातक तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रीनिटी कॉलेज से डेवलपमेंट स्टडीज में एम-फिल किया। उन्होंने इसके बाद लंदन के सामरिक सलाहकार समूह ‘मॉनीटर ग्रुप’ के साथ काम करना शुरू किया और वहां वह तीन साल तक रहे।

राहुल राजीव गांधी फाउंडेशन के न्यासी और कार्यकारी समिति के सदस्य भी हैं। वह जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड, संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट और इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट से भी जुड़े रहे।

उनका राजनीतिक कॅरियर 2004 में अमेठी से लोकसभा सांसद निर्वाचित होने के साथ शुरू हुआ। उन्होंने इसी सीट से 2009 एवं 2014 का भी लोकसभा चुनाव जीता। वर्ष 2004 में केन्द्र में मनमोहन सिंह की सरकार बनने के बाद अगले 10 साल तक राहुल बीच-बीच में राजनीतिक सुर्खियों में आने के साथ अचानक खबरों से गायब भी होते रहे। हालांकि, उन्होंने सबसे अधिक अवकाश 2015 में लिया जब वह 56 दिनों तक अज्ञात स्थल पर रहे।

राहुल ने जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे भट्टा पारसौल के किसानों के पास जाकर, संसद में विदर्भ की गरीब दलित महिला कलावती का मुद्दा उठाकर, उत्तर प्रदेश में एक दलित परिवार के घर जाकर रात बिताने से लेकर हाल में मध्य प्रदेश के मंदसौर में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस द्वारा गोली चलाने के बाद पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए मोटरसाइकिल से पहुंचने तक काफी सुर्खियां बटोरी। किन्तु उनसे जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण घटना 2013 में घटी जब उन्होंने अपनी पार्टी की सरकार द्वारा दागियों के चुनाव लड़ने के संबंध में लाये गये एक अध्यादेश को सार्वजनिक तौर पर फाड़कर विपक्षी ही नहीं अपनी पार्टी के नेताओं को भी चौंका दिया।

गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान राहुल ने कई मंदिरों में पूर्जा-अर्चना की और खुद को ‘‘शिवभक्त’’ बताया जिससे निश्चित तौर पर भाजपा नेताओं के लिए कुछ मुश्किल खड़ी हुई। सोमनाथ मंदिर में दर्शन के लिए जाने के दौरान राहुल के कथित रूप से ‘अहिंदू’ होने के विवाद के बीच कांग्रेस पार्टी की ओर से कहा गया कि वह ‘‘अनन्य शिवभक्त’’ और ‘‘जनेऊधारी’’ हैं। पार्टी ने सोशल मीडिया पर उनकी जनेऊ पहने कई तस्वीरें भी पोस्ट कीं।

राहुल के 2013 में पार्टी उपाध्यक्ष बनने के बाद से कांग्रेस ने आम चुनाव ही नहीं एक के बाद एक राज्यों में पराजय का सामना किया। पार्टी की अभी केवल पंजाब, पुडुचेरी, मेघालय, कर्नाटक एवं हिमाचल प्रदेश में ही सरकार है। पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने सपा नेता अखिलेश यादव से हाथ मिलाकर चुनाव लड़ा किन्तु पार्टी का बहुत निराशाजनक परिणाम रहा।

उत्तर प्रदेश के चुनाव के बाद राहुल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे मंझे हुए नेता एवं कुशल वक्ता से मुकाबले के लिए अपनी रणनीति में काफी बदलाव किये हैं। उन्होंने जहां ‘‘गब्बर सिंह टैक्स’’ जैसे जुमले बोलने शुरू कर दिये हैं वहीं ट्विटर के माध्यम से उन्होंने भाजपा सरकार पर आक्रमण तेज कर दिया है। राहुल के ट्विटर पर 47–1 लाख फालोअर हैं।

राहुल ने आम लोगों से जुड़ने के क्रम में पिछले दिनों ट्विटर पर अपने पालतू कुत्ते ‘‘पिडी’’ का भी वीडियो डाला था। हालांकि इसे लेकर सोशल मीडिया पर उन पर काफी टीका टिप्पणी की गयी।

47 वर्षीय अविवाहित राहुल गांधी अपने विवाह के प्रश्नों को यह कहकर टालते रहे हैं, वह ‘‘किस्मत में विश्वास रखते हैं और यह जब होना होगा, तब होगा।’’ हाल में उन्होंने एक कार्यक्रम में यह खुलासा किया कि वह जापनी मार्शल आर्ट अकीडो में ब्लैक बेल्ट हैं। उन्होंने कुछ समय पहले अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में ‘‘वंशवाद’’ के पक्ष में कई तर्क रखे थे।

आमतौर पर राहुल गांधी के बारे में यह माना जाता है कि वह कांग्रेस में युवा नेताओं के साथ काफी सहज रहते हैं। किंतु राहुल ने इस भ्रम को भी यह कहकर दूर करने का प्रयास किया कि वह पार्टी के अनुभवों को नहीं नकारेंगे और सभी को साथ लेकर चलेंगे।

राहुल ने अध्यक्ष पद का नामांकन पत्र दाखिल करने से पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास जाकर उनका आशीर्वाद लिया था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें ‘‘कांग्रेस का लाडला (डार्लिंग)’’ करार दिया। उनके नामांकन पत्र दाखिल करने के अवसर पर कांग्रेस की पुरानी पीढ़ी से लेकर युवा पीढ़ी के सभी चेहरों ने उपस्थित होकर यह संदेश देने का प्रयास किया कि पार्टी के सभी वर्ग राहुल गांधी के साथ हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार गुजरात चुनाव के परिणाम राहुल के लिए एक कड़ी परीक्षा साबित होंगे। यदि इस चुनाव में पार्टी कुछ बेहतर कर पाती है तो निश्चित तौर पर पार्टी के भीतर और बाहर उनकी विश्वसनीयता में इजाफा होगा। अगला साल भी राहुल के लिए कड़ी चुनौतियां पेश करेगा क्योंकि उन्हें कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान विधानसभा चुनावों में अपने नेतृत्व में पार्टी के प्रदर्शन को बेहतर बनाना है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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