प्रेम कथाओं को पर्दे पर उतारने में महारत हासिल थी शक्ति सामन्त को

Shakti Samant had mastered the screening of love stories
विजय कुमार । Jan 13 2018 11:49AM

इतना ही नहीं, इन्होंने देश से बाहर भी हिन्दी को लोकप्रिय किया है। फिल्मों को इस स्तर तक लाने में जिन फिल्मकारों का महत्वपूर्ण योगदान है, उनमें शक्ति सामंत का नाम बड़े आदर से लिया जाता है।

हिन्दी फिल्में केवल हिन्दी क्षेत्रों में ही नहीं, तो पूरे भारत में लोकप्रिय हैं। इतना ही नहीं, इन्होंने देश से बाहर भी हिन्दी को लोकप्रिय किया है। फिल्मों को इस स्तर तक लाने में जिन फिल्मकारों का महत्वपूर्ण योगदान है, उनमें शक्ति सामंत का नाम बड़े आदर से लिया जाता है।

13 जनवरी, 1926 को बंगाल के वर्धमान जिले में जन्मे शक्ति दा की शिक्षा देहरादून और कोलकाता में हुई। उनकी इच्छा हीरो बनने की थी, अतः 1948 में वे मुंबई आ गये। कुछ समय तक एक इस्लामी विद्यालय में उन्होंने अध्यापन किया। शुक्रवार के अवकाश में वे स्टूडियो के चक्कर लगाते थे। उन्हीं दिनों उनकी भेंट अशोक कुमार से हुई। उन्होंने शक्ति दा को हीरो की बजाय निर्देशन के क्षेत्र में उतरने का परामर्श दिया।

शक्ति दा उनकी बात मानकर निर्देशक फणि मजूमदार के सहायक बन गये। बहुत परिश्रम से उन्होंने इस विधा की बारीकियां सीखीं। 1955 में उन्होंने फिल्म ‘बहू’ निर्देशित की; पर वह चल नहीं सकी। इसके बाद उन्होंने इंस्पेक्टर, हिल स्टेशन, शेरु और फिल्म डिकेक्टिव का निर्देशन किया। इनकी सफलता से उनका उत्साह बढ़ा और वे अपने बैनर ‘शक्ति फिल्म्स’ की स्थापना कर निर्देशक के साथ ही निर्माता भी बन गये। यद्यपि यह उस समय एक साहसी निर्णय था; पर उन्हें यहां भी सफलता मिली।

इस बैनर पर उनकी पहली फिल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ ने खूब सफलता पायी। इसमें अशोक कुमार और मधुबाला की जोड़ी बहुत हिट रही। अगले 20 साल में शक्ति दा ने अनेक अविस्मरणीय प्रेम फिल्में बनाईं। उनकी फिल्मों की एक विशेषता यह थी कि वे उसमें संगीत का भरपूर उपयोग करते थे। इससे न केवल संगीत अपितु गायक और संगीतकार को भी महत्व मिला। हिन्दी फिल्म जगत में एक समय राजेश खन्ना की तूती बोलती थी। उनका उत्थान शक्ति दा द्वारा निर्मित फिल्म आराधना, कटी पतंग और अमर प्रेम से हुआ। इन्हीं फिल्मों में गाकर किशोर कुमार भी प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचे। 

शक्ति दा ने शम्मी कपूर, सुनील दत्त, मनोज कुमार, संजीव कुमार, उत्तम कुमार, अमिताभ बच्चन, मिथुन चक्रवर्ती, शर्मिला टैगोर, मौसमी चटर्जी आदि को भी लेकर फिल्में बनायीं। उन्होंने अनेक प्रतिभाओं को उभारा; पर किसी से बंधे नहीं रहे। उन्होंने बंगला में भी अमानुष, आनंद आश्रम, बरसात की इक रात, देवदास आदि फिल्में बनाईं; पर उनकी हिन्दी फिल्में अविस्मरणीय हैं। 

शक्ति दा फिल्म जगत में विमल राय और ऋषिकेश मुखर्जी की श्रेणी के फिल्मकार थे, जिन्होंने बंगलाभाषी होते हुए भी हिन्दी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। आज तो सब ओर मारधाड़ और नंगेपन वाली फिल्मों का दौर है; पर उन दिनों संगीतमय फिल्मों का दौर था और उसे प्रचलित करने में शक्ति दा की मुख्य भूमिका थी। उनके द्वारा प्रदर्शित प्रेम वासना के बदले भावनाप्रधान होता था। उनकी फिल्म परिवार के सब लोग एक साथ देख सकते थे। 

वे निर्माता व निर्देशक के रूप में पूर्णतावादी थे। उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी; पर दूसरों के काम में वे हस्तक्षेप नहीं करते थे। वे भारतीय फिल्म निर्माता संघ, सेंसर बोर्ड तथा सत्यजित राय फिल्म और टेलिविजन संस्थान के अध्यक्ष रहे। उनकी फिल्में अनेक विदेशी समारोहों में प्रदर्शित की गयीं। उन्हें अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया गया। हिन्दी जगत में लोकप्रिय सिनेमा की अवधारणा को जन्म देने वाले इस कलाकार का देहावसान नौ अप्रैल, 2009 को हुआ।

- विजय कुमार

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़