शेख हसीना: समर्थकों के लिए ‘शक्तिशाली महिला’, विरोधियों के लिए ‘तानाशाह’

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[email protected] । Dec 31 2018 6:18PM

हसीना की चिर प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया देश की पूर्व प्रधानमंत्री एवं बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की प्रमुख हैं और वह भ्रष्टाचार के मामले में 17 वर्ष की सजा काट रही हैं।

ढाका। बांग्लादेश की ‘शक्तिशाली महिला’ शेख हसीना ने आम चुनावों में ऐतिहासिक चौथी बार जीत दर्ज की है। मुस्लिम बहुल इस देश में उनके समर्थक देश के प्रभावशाली आर्थिक विकास का श्रेय उन्हें देते हैं लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वी उन्हें विपक्ष को कुचलने वाली एक तानाशाह के तौर पर देखते हैं। हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की पुत्री हैं और उन्होंने 11वें संसदीय चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज की है। हालांकि विपक्ष ने इस चुनाव को ‘‘ढोंग’’ कहकर खारिज कर दिया है जिस दौरान हुई हिंसा में 18 व्यक्तियों की मौत हो गई। अवामी लीग की 71 वर्षीय प्रमुख हसीना का मुकाबला कमल हुसैन नीत यूनाइटेड नेशनल फ्रंट से था। हुसैन आक्सफोर्ड से शिक्षा प्राप्त विधिवेत्ता एवं पूर्व विदेश मंत्री हैं।

हसीना की चिर प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया देश की पूर्व प्रधानमंत्री एवं बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की प्रमुख हैं और वह भ्रष्टाचार के मामले में 17 वर्ष की सजा काट रही हैं। उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी। हसीना का जन्म 28 सितम्बर 1947 को उत्तर बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) के तुंगीपारा स्थित उनके पैतृक घर में हुआ था। बंग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति रहमान के पांच बच्चों में हसीना सबसे बड़ी हैं। हसीना का विवाह 1968 में परमाणु वैज्ञानिक एम ए वाजिद मियां के साथ हुआ था। उनके पति का 2009 में निधन हो गया। दोनों के एक पुत्र साजिब वाजिद जॉय और एक पुत्री साइमा वाजिद हुसैन पुतुल है। हसीना ने अपने पूरे छात्र जीवन के दौरान राजनीति में सक्रिय रुचि ली। हसीना ने 1975 में रहमान, उनकी पत्नी और तीन पुत्रों की दुखद हत्या के बाद अवामी लीग में एक नेता के तौर पर शामिल हुईं।

हसीना ने अपने पति के साथ भारत में स्वनिर्वासित जीवन व्यतीत किया। उन्हें 1981 में अवामी लीग का अध्यक्ष चुना गया और वह उसके बाद से पार्टी की अध्यक्ष हैं। छह वर्ष निर्वासित जीवन बिताने के बाद वह 17 मई 1981 को स्वदेश लौटीं। हसीना ने सैन्य तानाशाह हुसैन मोहम्मद इरशाद को हटाने के लिए एक गठजोड़ बनाया। हसीना ने 1990 में सैन्य तानाशाह को हटाने के लिए जिया की बीएनपी के साथ हाथ मिलाया लेकिन जल्द ही दोनों अलग हो गए और दोनों की प्रतिद्वंद्विता को ‘‘बेगमों की लड़ाई’’ के तौर पर जाना जाता है। हसीना और 73 वर्षीय जिया की प्रतिद्वंद्विता बहुत पुरानी है। हसीना पहली बार 1996 में जिया को हराकर प्रधानमंत्री निर्वाचित हुई थीं, जिन्होंने बाद में 2001 में फिर से सत्ता प्राप्त कर ली। वह देश की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई पहली प्रधानमंत्री थीं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।

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2008 में वह फिर से जबर्दस्त जीत दर्ज करके फिर से प्रधानमंत्री बनीं। जनवरी 2014 में तीसरी बार प्रधानमंत्री बनीं। तब बीएनपी ने चुनावों का बहिष्कार किया था। हसीना के 2008 में सत्ता में आने के बाद बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय में तीन गुना की बढ़ोतरी हुई है। देश का जीडीपी 2017 में 250 अरब अमेरिकी डालर था और उसने पिछले वर्ष उसकी विकास दर 7.28 प्रतिशत थी। परिधान उद्योग देश की अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्तभों में से एक बना है जो कि 45 लाख लोगों को रोजगार दे रहा है। उनके आलोचक हालांकि उन्हें तानाशाह बताते हैं क्योंकि वह 2014 में ऐसे चुनाव में उतरीं जिसका बीएनपी ने बहिष्कार किया था। वह चौथी बार देश की प्रधानमंत्री बनेंगी जो कि 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद किसी भी नेता के लिए एक रिकार्ड है।

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