हर युवा के लिए प्रेरणा के सबसे बड़े स्रोत हैं स्वामी विवेकानंद

Swami Vivekananda

राष्ट्रभक्तों की टोलियों पर स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि देशभक्त बनो। इन बातों से युक्त विश्वासी युवा देशभक्तों की आज भारत को आवश्यकता है। स्वामीजी का स्वप्न था कि उन्हें 1000 तेजस्वी युवा मिल जाएं तो वह भारत को विश्व शिखर पर पहुंचा सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद जी की वाणी भारतीयता से ओतप्रोत थी। विवेकानंद जी जब भी बोलते थे, उनके एक एक शब्द में भारत का प्रस्फुटन होता था। वे निश्चित रूप से उस भारतीय संस्कृति के संवाहक थे, जो समस्त विश्व के दिशादर्शक हैं। तभी तो वे कहते थे कि भारतीय संस्कृति केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक प्रगति का आधार है। वर्तमान समय में भी स्वामी विवेकानंद जी विचार उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने पुरातन काल में होते थे। स्वामी जी युवाओं को शक्तिशाली बने रहने का भी उपदेश देते थे। उनका मानना था कि जिस देश का युवा निर्बल और शक्तिहीन होगा, वह राष्ट्र कभी शक्ति संपन्न नहीं हो सकता।

हिंदुत्व के बारे में स्वामी विवेकानंद जी की स्पष्ट धारणा थी। वे अपनी वाणी के माध्यम से यह भी कहते थे कि तुम तब और केवल तब ही हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को सुनने मात्र से तुम्हारे शरीर में विद्युत प्रवाह की तरह तरंग दौड़ जाए और हर व्यक्ति सगे से भी ज्यादा पसंद आने लगे। स्वामी विवेकानंद जी सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार की तरह ही देखते थे। शिकागो में स्वामी विवेकानंद जी का प्रबोधन इसी भाव धारा का प्रवाहन था। जिसकी गूंज आज भी ध्वनित होती रहती है।

स्वामी विवेकानंद जी ने भारत के बारे में तीन अति महत्व की भविष्यवाणी की थीं। 1890 के दशक में उन्होंने कहा था कि भारत अकल्पनीय परिस्थितियों के बीच अगले 50 वर्षों में ही स्वाधीन हो जाएगा। जब उन्होंने यह बात कही तब कुछ लोगों ने इस पर ध्यान दिया। उस समय ऐसा होने की कोई संभावना भी नहीं दिख रही थी। ऐसी पृष्ठभूमि में स्वामी विवेकानंद ने भविष्यवाणी की कि भारत अगले 50 वर्षों में स्वाधीन हो जाएगा और यह सत्य सिद्ध दी हुई। विवेकानंद ने ही एक और भविष्यवाणी की थी जिसका सत्य सिद्ध होना शेष है। उन्होंने कहा था भारत एक बार फिर समृद्धि तथा शक्ति की महान ऊँचाइयों पर उठेगा और अपने समस्त प्राचीन गौरव को पीछे छोड़ जाएगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत का विश्व गुरु बनना केवल भारत ही नहीं, अपितु विश्व के हित में है। विवेकानंद ने कहा था कि समाज का नेतृत्व चाहे विद्या बल से प्राप्त हुआ हो चाहे बाहुबल से, पर शक्ति का आधार जनता ही होती है। उनका मानना था कि प्रजा से शासक वर्ग जितना ही अलग रहेगा, वह उतना ही दुर्बल होगी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि यथार्थ भारत झोपड़ी में बसता है, गांव में बसता है। इसलिए भारत की उन्नति भी झोपड़ी और गांव में रहने वाले आम जनता की प्रगति पर निर्भर है। हमारा पहला कर्तव्य दीनहीन, निर्धन, निरक्षर, किसानों तथा श्रमिकों के चिंतन का है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि अतीत से ही भविष्य बनता है। अत: यथासंभव अतीत की ओर देखो और उसके बाद सामने देखो और भारत को उज्ज्वल तक पहले से अधिक पहुंचाओ। हमारे पूर्वज महान थे। हम भारत के गौरवशाली अतीत का जितना ही अध्ययन करेंगे हमारा भविष्य उतना ही उज्ज्वल होगा। भारत में श्रीराम, कृष्ण, महावीर, हनुमान तथा श्रीरामकृष्ण जैसे अनेक ईष्ट और महापुरुषों के आदर्श उपस्थित हैं। महापुरुषों ने संपूर्ण समाज का भला करने की नीति का ही पालन किया। स्वामी जी का एक कथन बहुत ही प्रचलित है उतिष्ठत। जागृत। प्राप्य वरान्निबोधत। अर्थात् उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत। यह कथन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बहुआयामी प्रगति का मार्ग तैयार करेगा।

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि धर्म को हानि पहुंचाए बिना ही जनता की उन्नति की जा सकती है। किसी को आदर्श बना लो, यदि तुम धर्म को फेंक कर राजनीति, समाजनीति अथवा अन्य किसी दूसरी नीति को जीवन शक्ति का केंद्र बनाने में सफल हो जाओ तो उसका फल यह होगा कि तुम्हारा अस्तित्व नहीं रह जाएगा। भारत में हजारों वर्षों से धार्मिक आदर्श की धारा प्रवाहित हो रही है। भारत का वायुमंडल इस धार्मिक आदर्श से शताब्दी तक पूर्ण रह कर जगमगाता रहा है। हम इसी धार्मिक आदर्श के भीतर पैदा हुए और पले हैं। यहां तक कि धर्म हमारे जन्म से ही हमारे रक्त में मिल गया है, जीवन शक्ति बन गया है। यह धर्म ही है जो हमें सिखाता है कि संसार के सारे प्राणी हमारी आत्मा के विविध रूप ही हैं। सच्चाई यह भी है कि हमारे लोगों ने धर्म को समाज में सही रूप में उपयोग भी नहीं किया है। अत: भारत में किसी प्रकार का सुधार या उन्नति की चेष्टा करने के पहले धर्म को अपनाने की आवश्यकता है। भारत को राजनीतिक विचारों से प्रेरित करने के पहले जरूरी है कि उसमें आध्यात्मिक विचारों की बाढ़ ला दी जाए।

शिक्षा हमारी मूलभूत आवश्यकता है। भारत के लोगों को यदि आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा नहीं दी जाएगी, तो सारे संसार की दौलत से भारत के एक छोटे से गांव को भी सहायता नहीं की जा सकती। नैतिक तथा बौद्धिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा प्रदान करना हमारा पहला कार्य होना चाहिए। राष्ट्रभक्तों की टोलियों पर स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि देशभक्त बनो। इन बातों से युक्त विश्वासी युवा देशभक्तों की आज भारत को आवश्यकता है। स्वामीजी का स्वप्न था कि उन्हें 1000 तेजस्वी युवा मिल जाएं तो वह भारत को विश्व शिखर पर पहुंचा सकते हैं। मेरा विश्वास युवा पीढ़ी, नई पीढ़ी में है। मेरे कार्यकर्ता इनमें से आएंगे और वह सिंहों की भांति समस्याओं का हल निकालेंगे। ऐसे युवाओं में और किसी बात की जरूरत नहीं है। बस केवल प्रेम, सेवा, आत्मविश्वास, धैर्य और राष्ट्र के प्रति असीम श्रद्धा होनी चाहिए।

नारी जागरण पर स्वामी विवेकानंद कहते हैं स्त्रियों की पूजा करके ही सभी राष्ट्र बड़े बने हैं। जिस देश में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वह देश या राष्ट्र कभी बड़ा नहीं बन सका है और भविष्य में कभी बड़ा भी नहीं बन सकेगा। हम देख रहे हैं कि नौ देवियों लक्ष्मी और सरस्वती को मां मानकर पूजने वाले सीता जैसे आदर्श की गाथा घर-घर में गाने वाले यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता को हृदय में बसाने वाले भारत में नारी को यथोचित सम्मान प्राप्त नहीं है। हमारी मानसिकता बदल रही है किंतु उसकी गति बहुत धीमी है, यदि हम देश की तरक्की चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी सोच को बदल कर नारी जागरण और उत्कर्ष पर चिंतन और त्वरित क्रियाशीलता दिखानी भी होगी। ग्रामीण आदिवासी स्त्रियों की वर्तमान दशा में उद्धार करना होगा, आम जनता को जगाना होगा, तभी तो भारत वर्ष का कल्याण होगा।

-डॉ. वंदना सेन

(लेखिका सहायक प्राध्यापक और स्वतंत्र स्तंभकार हैं)

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