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बैकिंग घोटाले से ग्रस्त होता जा रहा देश का आम आदमी
- ललित गर्ग
- अक्टूबर 9, 2019 15:44
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हमारे राष्ट्र के सामने अनैतिकता, महंगाई, बढ़ती जनसंख्या, प्रदूषण, आर्थिक अपराध आदि बहुत सी बड़ी चुनौतियां पहले से ही हैं, उनके साथ भ्रष्टाचार सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ी है। राष्ट्र के लोगों के मन में भय, आशंका एवं असुरक्षा की भावना घर कर गयी है।
असल में भ्रष्टाचार एक विश्वव्यापी समस्या है। लेकिन भारत में इसने कहर बरपाया है। भ्रष्टाचार की यह आग हर घर को स्वाहा कर रही है। लेकिन यह आग घरों के साथ-साथ बैंकों को स्वाहा करने की ठानी है। नित-नये बैंकिंग घोटाले एक गंभीर समस्या बन गये हैं। बैंकिंग सैक्टर में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी फैल चुकी हैं, इस बात का अंदाजा रिजर्व बैंक के आंकड़ों से चलता है। बैंकिंग तंत्र में अनेक छेद हो चुके हैं। पीएनबी में अरबपति जौहरी नीरव मोदी और मेहुल चैकसी ने 11,300 करोड़ का घोटाला बैंक के ही कुछ अफसरों और कर्मचारियों के साथ मिलकर किया था। ऐसा प्रतीत होता है कि बैंकिंग सैक्टर से जुडे़ अधिकांश घोटालों में आला अफसरों से लेकर कर्मचारी तक शामिल रहे हैं। नोटबंदी के दौरान समूचा राष्ट्र बैंक मैनेजरों और कर्मचारियों के खुले भ्रष्टाचार का चश्मदीद बना है। नोटबन्दी को अगर किसी ने पलीता लगाया तो बैंकिंग सैक्टर ने ही लगाया।
ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमारे देश में हर शाख पर उल्लू नहीं एक घोटालेबाज, एक भ्रष्ट आदमी बैठा है! भ्रष्टाचार के लिए ऐसे-ऐसे नायाब तरीके ढूंढे जाते हैं कि किसी को भनक तक नहीं लगे। बैंकों की घोटालों की मानसिकता एवं त्रासद स्थितियों ने न केवल बैंकों के प्रति विश्वास को धुंधला दिया है बल्कि बैंकों की कार्यप्रणाली को भी जटिल एवं दूषित कर दिया है। बैंकों के चपरासी से लेकर आला अधिकारी तक बिना रिश्वत के सीधे मुंह बात तक नहीं करते। आम बैंक उपभोक्ता की आज कोई अहमियत नहीं रही, क्योंकि हर बैंक में कोई-न-कोई बड़ा घोटाला आकार ले रहा होता है और सभी उसी में व्यस्त होते हैं। बैंक भ्रष्टाचार से देश की अर्थव्यवस्था और प्रत्येक व्यक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और आज देश की गिरती अर्थ व्यवस्थ का बड़ा कारण बैंकिंग घोटाले ही है।
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पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाला के सामने आते ही कठोर कार्रवाइयों के साथ-साथ बैंक के पूर्व चेयरमैन वरियाम सिंह एवं बैंक के पूर्व प्रबन्ध निदेशक जॉय थामस को गिरफ्तार कर लिया गया है। क्योंकि बैंक ने रियल एस्टेट की कंपनी एचडीआईएल को नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों का ऋण दिया। एचडीआईएल के चेयरमैन राकेश वाधवन और उनके बेटे सारंग वाधवन परिवार ने अपनी सम्पत्ति बना ली क्योंकि बैंक के अधिकारियों और वाधवन परिवार में सांठगांठ थी। अब घोटाले की परतें प्याज के छिलकों की तरह खुल रही हैं, ईडी ने परिवार की 12 महंगी कारें और उनकी 3,500 करोड़ की सम्पत्ति जब्त कर ली है।
वरियाम सिंह ने बैंक के चेयरमैन पद पर रहते एचडीआईएल को 4335 करोड़ का ऋण दिया था। वरियाम सिंह ही कम्पनी और राजनेताओं के बीच सम्पर्क सूत्र का काम करते थे। जब कम्पनी ने बैंक ऋण नहीं लौटाया तो बैंक की हालत खस्ता हो गई। इस घोटाले को छिपाने के लिए बैंक ने फर्जीवाड़े का सहारा लिया और 21 हजार से अधिक खाते खोले गए जिनमें अधिकतम खाते मृतकों के नाम थे। 45 दिनों में खाते सृजित किए गए और डिटेल भी आरबीआई को सौंप दी गई। प्रश्न है कि आरबीआई को ऑडिट के समय क्यों नहीं घोटाला का पता चला? जब घोटाला सामने आया तो लोगों के अपने ही धन को निकालने पर पाबंदियां लगा दीं गई। जब शोर मचा तो पहले दस हजार और फिर 25 हजार रुपए निकलवाने की अनुमति दे दी गई। डूब रहे बैंक के खाताधारक अपना धन मिलेगा या नहीं, इसको लेकर आशंकित हैं। इस तरह एक बार फिर भ्रष्ट सिस्टम के आगे आम आदमी लाचार हो चुका है। क्या आरबीआई लोगों के हितों की रक्षा कर पाएगा? यह सवाल सबके सामने है। जब लोग सड़कों पर आकर छाती पीटते हैं तो राजनीतिक दबाव के चलते सरकारें जांच बैठा देती हैं। थोड़ी देर के लिए तूफान थम जाता है और समय की आंधी सब कुछ उड़ाकर ले जाती है। घोटालों का नतीजा चाहे जो भी निकला हो, किसी को सजा हुई हो या नहीं, अगर इन घोटालों का भयावह एवं डरावना सच यही है कि हमारी व्यवस्था में छिद्र-ही-छिद्र हैं।
नेहरू से मोदी तक की सत्ता-पालकी की यात्रा, लोहिया से राहुल-सोनिया तक का विपक्षी किरदार, पटेल से अमित शाह तक ही गृह स्थिति, हरिदास से हसन अली तक के घोटालों की साइज। बैलगाड़ी से मारुति, धोती से जीन्स, देसी घी से पाम-ऑयल, लस्सी से पेप्सी और वंदे मातरम् से गौधन तक होना हमारी संस्कृति का अवमूल्यन- ये सब भारत हैं। हमारी कहानी अपनी जुबानी कह रहे हैं। जिसमें भ्रष्टाचार व्याप्त है और अब जनता के धन का सबसे सुरक्षित स्थान भी असुरक्षित हो गया है। पिछले कुछ वर्षों से भारत में इस नए तरह के भ्रष्टाचार ने समूची अर्थ-व्यवस्था को अस्थिर एवं डांवाडोल बना दिया है। बड़े घपले-घोटालों के रूप में सामने आया यह भ्रष्टाचार बैंकों एवं कारपोरेट जगत-बड़े घरानों से जुड़ा हुआ है। भारत में नेताओं, कारपोरेट जगत के बडे-बड़े उद्योगपति तथा बिल्डरों ने देश की सारी सम्पत्ति पर कब्जा करने के लिए आपस में गठजोड़ कर रखा है। इस गठजोड़ में नौकरशाही के शामिल होने, न्यायपालिका की लचर व्यवस्था तथा भ्रष्ट होने के कारण देश की सारी सम्पदा यह गठजोड़ सुनियोजित रूप से लूटकर अरबपति-खरबपति बन गया है। बड़ी दूरदर्शिता से 21 दिसम्बर 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई बहस में डॉ. राममनोहर लोहिया ने जो भाषण दिया था वह आज भी प्रासंगिक है। उस वक्त डॉ. लोहिया ने कहा था सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है।
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यह सच है कि आज भी ऐसे बड़े घराने हैं जो जब चाहें किसी भी सीएम और पीएम के यहां जब चाहें दस्तक दें तो दरवाजे उनके लिए खुल जाते हैं। देश में आदर्श सोसायटी घोटाला, टू जी स्पैक्ट्रम, कामनवैल्थ घोटाला और कोयला आवंटन को लेकर हुआ घोटाला आदि कारपोरेट घोटाले के उदाहरण हैं। अब इस सूची में बैंकों के घोटालों की भी लम्बी सूची है। चाहे सहकारी बैक हो या पंजाब नेशनल बैंक, चाहे बडौदा बैंक हो या आईसीआई बैंक- जनता की मेहनत की कमाई का इन सभी ने दुरुपयोग किया। अब तो हालत यह हो गई है कि हमारा देश भ्रष्टाचार के मामले में भी लगातार तरक्की कर रहा है। विकास के मामले में भारत दुनिया में कितना ही पीछे क्यों न हो, मगर भ्रष्टाचार के मामले में नित नये कीर्तिमान बना रहा है। इन स्थितियों में भारत कैसे महाशक्ति बन सकेगा? महाशक्ति बनने की बड़ी कसौटी भ्रष्टाचार की है। सरकार भ्रष्ट हो तो जनता की ऊर्जा भटक जाती है। देश की पूंजी का रिसाव हो जाता है। भ्रष्ट अधिकारी और नेता धन को स्विट्जरलैण्ड भेज देते हैं। इस कसौटी पर अमरीका आगे हैं। ’ट्रान्सपेरेन्सी इंटरनेशनल’ द्वारा बनाई गयी रैंकिंग में अमरीका को 19वें स्थान पर रखा गया है जबकि चीन को 79वें तथा भारत का 84वां स्थान दिया गया है। इन स्थितियों में वह कैसे अमेरिका एवं चीन से आगे निकल सकेगा?
हमारे राष्ट्र के सामने अनैतिकता, महंगाई, बढ़ती जनसंख्या, प्रदूषण, आर्थिक अपराध आदि बहुत सी बड़ी चुनौतियां पहले से ही हैं, उनके साथ भ्रष्टाचार सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ी है। राष्ट्र के लोगों के मन में भय, आशंका एवं असुरक्षा की भावना घर कर गयी है। कोई भी व्यक्ति, प्रसंग, अवसर अगर राष्ट्र को एक दिन के लिए ही आशावान बना देते हैं तो वह महत्वपूर्ण होता है। पर यहां तो निराशा, असुरक्षा और भय की लम्बी रात की काली छाया व्याप्त है। मोदी के रूप में एक भरोसा जगा क्योंकि मनमोहन सिंह की सरकार ‘जैसा चलता है, वैसे चलता रहे’ में विश्वास रखती थी, जिससे भ्रष्टाचार की समस्या को नये पंख मिले। भ्रष्ट स्थितियों पर नियंत्रण के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसी खूबसूरत मोड को तलाशने की कोशिश की। भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ सार्थक करने का प्रयत्न किया। लेकिन प्रश्न है मोदी अपनी नेकनीयत का बखान तो कर रहे हैं, वे ईमानदार एवं नेकनीयत है भी, लेकिन शासन व्यवस्था एवं बैंकिंग प्रणाली को कब ईमानदार एवं नेकनीयत बनायेंगे? देखना यह है कि वे भ्रष्टाचार को समाप्त करने में कितने सफल होते हैं।
ललित गर्ग
गाँव-गाँव में पार्टी की मजबूती के लिए भाजपा ने बनाया मेगा प्लान
- अजय कुमार
- जनवरी 18, 2021 13:44
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2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की ऐसी अलख जलाई की शहर से लेकर गाँव तक में मोदी-मोदी होने लगा, लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि बीजेपी ने गाँव-देहात में अपने संगठन को मजबूत कर लिया था। बीजेपी पर शहरी पार्टी होने का ठप्पा लगा था।
भारतीय जनता पार्टी का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। 1980 में गठन के बाद 1984 के लोकसभा चुनाव में दो सीटें जीतने वाली बीजेपी के आज तीन सौ से अधिक सांसद हैं। कई राज्यों में उसकी सरकारें हैं, लेकिन बीजेपी आज भी सर्वमान्य पार्टी नहीं बन पाई है। दक्षिण के राज्यों में उसकी पकड़ नहीं के बराबर है। कर्नाटक को छोड़ दें तो दक्षिण के राज्यों- आन्ध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना में आज भी बीजेपी ज्यादातर मुकाबले में नजर नहीं आती है। इसी के चलते बीजेपी पर पूरे देश की बजाए उत्तर भारतीयों की पार्टी होने का ठप्पा चस्पा रहता है। उत्तर भारत में भी बीजेपी को लेकर बुद्धिजीवियों और राजनैतिक पंडितों की अलग-अलग धारणा है। कभी बीजेपी को बनिया (व्यापारियों) और ब्राह्मणों की पार्टी कहा जाता था, तो ऐसे लोगों की भी संख्या कम नहीं थी जो बीजेपी को शहरी पार्टी बताया करते थे। इस अभिशाप को मिटाने के लिए बीजेपी को काफी पापड़ बेलने पड़े तो प्रभु राम ने उसका (बीजेपी) बेड़ा पार किया।
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अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली के पांच सौ वर्ष पुराने विवाद में ‘कूद’ कर बीजेपी ने ऐसा रामनामी चोला ओढ़ा कि वह बनिया-ब्राह्मण की जगह हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की लम्बरदार बन बैठी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की राजनैतिक इकाई भारतीय जनता पार्टी ने वर्षों से अलग-अलग अपनी ढपली बजाने वाले हिन्दुओं को भगवान राम के नाम पर एकजुट करके उसे बीजेपी का वोट बैंक भी बना दिया, लेकिन फिर भी बीजेपी के ऊपर शहरी पार्टी होने का ठप्पा तो लगा ही रहा। यह वह दौर था जब बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस सहित अन्य तमाम गैर-भाजपाई दल मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत में लगे हुए थे। वहीं हिन्दुओं के वोट बंटे रहें, इसके लिए साजिशन हिन्दुओं के बीच जातिवाद घोलकर उनके वोटों में बिखराव पैदा किया गया। यादवों के रहनुमा मुलायम बन गए और मायावती दलितों को साधने में सफल रहीं। हिन्दुओं के वोट बैंक में बिखराव के सहारे ही बिहार में लालू यादव और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह ने वर्षों तक सत्ता हासिल करने में कामयाबी हासिल की। बसपा सुप्रीम मायावती ने भी कई बार दलित-मुस्लिम वोट बैंक के सहारे सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने में कामयाबी हासिल की। यह सब तब तक चलता रहा जब तक कि भारतीय जनता पार्टी में मोदी युग का श्रीगणेश नहीं हुआ था।
2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की ऐसी अलख जलाई की शहर से लेकर गाँव तक में मोदी-मोदी होने लगा, लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि बीजेपी ने गाँव-देहात में अपने संगठन को मजबूत कर लिया था। बीजेपी पर शहरी पार्टी होने का ठप्पा लगा था। इस ठप्पे को हटाने के लिए ही मोदी सरकार ने तमाम विकास योजनाओं का रूख गांव-देहात और अन्नदाताओं की तरफ मोड़ दिया। फसल बीमा योजना, कृषि में मशीनीकरण, जैविक खेती, सॉइल हेल्थ कार्ड और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना ऐसी प्रमुख योजनाएं हैं जो केंद्र सरकार के द्वारा चलाई जा रही हैं। किसानों से लगातार संवाद किया जा रहा है। किसानों की माली हालत सुधारने के लिए कई राहत पैकजों की भी घोषणा की गई। नया कृषि कानून भी इसका हिस्सा है जिसको लेकर आजकल पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ किसानों ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा भी खोल रखा है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने नये कृषि कानून पर अंतरिम रोक लगा कर एक कमेटी भी गठित कर दी है।
एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसानों को लेकर कई कदम उठा रहे हैं तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी केन्द्र सरकार के पदचिन्हों पर चलते हुए कई किसान योजनाएं लेकर आई है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश में सिंचन क्षमता में वृद्धि तथा सिंचाई लागत में कमी लाकर कृषकों की आय में वृद्धि करने के उद्देश्य से स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। 50 लाख किसान ड्रिप स्प्रिंकलर सिंचाई योजना से लाभान्वित हुए। योजना में लघु एवं सीमांत कृषकों को 90 प्रतिशत एवं सामान्य कृषकों को 80 फीसदी का अनुदान मिला है। लघु, सीमांत, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के कृषक समूह के लिए मिनी ग्रीन ट्यूबवेल योजना की भी शुरुआत की गई है। योजना के तहत नलकूप के सबमर्सिबल पम्प का संचालन सौर ऊर्जा के माध्यम से किया जाएगा।
योगी सरकार खेतों की मुफ्त में जुताई और बुवाई का भी कार्यक्रम लेकर आई है। पहले चरण में ये योजना यूपी के लखनऊ, वाराणसी और गोरखपुर समेत 16 जिलों में लागू की गई। इसके तहत लघु और सीमांत किसानों को राहत देने के लिए योगी सरकार ने ट्रैक्टरों से मुफ्त में खेतों की जुताई और बुवाई कराने जैसी बड़ी सुविधा दी गई है। मुख्यमंत्री कृषक योजना के तहत 500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। हाल ही में किसान सम्मान निधि योजना के तहत 2.13 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 28,443 करोड़ रुपये हस्तांतरित किये गये। देश के किसानों के लिए यह सब योजनाएं केन्द्र की मोदी सरकार लाई है तो यूपी की योगी सरकार अपने प्रदेश के किसानों की माली हालत सुधारने में लगी है।
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बात सरकार से अलग संगठन की कि जाए तो भारतीय जनता पार्टी इसमें भी अपनी पूरी ताकत झोंके हुए है। शहर के चौक-चौराहों से निकलकर बीजेपी गाँव-देहात में चौपालों तक दस्तक देने लगी है। इसीलिए भारतीय जनता पार्टी पंचायत चुनावों में भी ताल ठोंकने लगी है। कई राज्यों के पंचायत चुनाव में बीजेपी अपनी ताकत दिखा भी चुकी है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी ने गांव की सरकार के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा पंचायत चुनाव को लेकर बेहद गंभीर है। अबकी बार बीजेपी अपने चुनाव चिन्ह कमल के निशान पर पंचायत चुनाव लड़ने जा रही है ताकि भविष्य में बीजेपी ताल ठोक कर कह सके कि उसकी पहुंच गाँव-गाँव तक है।
दरअसल, पार्टी अभी तक त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत) में अपने उम्मीदवारों को सिर्फ समर्थन देती थी, सिंबल नहीं दिया जाता था। प्रत्याशी को बीजेपी समर्थित कहा जाता था, लेकिन मौजूदा बीजेपी नेतृत्व का मानना है कि हर राजनीतिक दल को खुद का कर्तव्य मानकर हर चुनाव में उम्मीदवार उतारने चाहिए क्योंकि चुनाव के दौरान सियासी दलों को अपनी नीतियां और योजनाओं को आमजन के सामने रखने का खास अवसर मिलता है। चुनाव सियासी दलों की परीक्षा समान हैं।
-अजय कुमार
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- प्रो. सुधांशु त्रिपाठी
- जनवरी 16, 2021 13:02
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वास्तव में देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में भारत शांतिपूर्ण तरीके से जिस तरह तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है उससे संपूर्ण विश्व अचंभित है परंतु देश के भीतर तथा विदेश में बैठे इन कट्टर राष्ट्रविरोधी ताकतों को अच्छा नहीं लग रहा है।
केंद्र सरकार तथा आंदोलनकारी किसान नेताओं के बीच कई दौर की वार्ता के बाद भी दोनों पक्षों को स्वीकार्य कोई हल अब तक निकल नहीं सका है। वस्तुतः संपूर्ण घटनाक्रम शाहीन बाग की याद दिला रहा है। जिस तरह से किसान आंदोलन के नाम पर चंद मुट्ठी भर अमीर से बेहद अमीर किसानों के नेतृत्व में पंजाब तथा हरियाणा के बहुसंख्य किसानों ने न केवल दिल्ली बल्कि आसपास के चतुर्दिक सामान्य जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है, वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। ये प्रदर्शनकारी या तथाकथित अन्नदाता किसान दिल्ली के समीप सिंघु बॉर्डर पर पिछले पचास दिनों से डेरा डाले बैठे हुए हैं जिससे सामान्य किसानों की रोजी-रोटी पर तो कुठाराघात हो ही रहा है, साथ ही दैनिक मजदूरों और अन्य दिहाड़ी कामगारों को भी अपने जीवकोपार्जन में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। वस्तुतः उनके इस अनवरत प्रदर्शन से दिल्ली तथा संबंधित सभी राज्यों की कानून व्यवस्था संभालने वाली पुलिस तथा प्रशासनिक मशीनरी को इन अन्नदाताओं के धरना स्थलों की सुरक्षा तथा दिल्ली के चारों ओर सभी राज्यों से यहाँ प्रतिदिन आकर काम करने वालों के लिये दैनिक आवागमन सुलभ बनाने तथा सामान्य कानून एवं व्यवस्था की स्थापना करने में भी एड़ी-चोटी एक करनी पड़ रही है। इसमें न केवल देश के करदाताओं का अमूल्य धन नष्ट हो रहा है जिसका अन्यथा सामाजिक कल्याण एवं विकास के कार्यों में उपयोग किया जा सकता था बल्कि पूरे प्रशासनिक अमले का परिश्रम नष्ट हो रहा है जिससे निश्चय ही सामान्य जनजीवन की सुरक्षा बढ़ाई जा सकती थी तथा उनका राष्ट्रहित में उपयोग किया जा सकता था।
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यद्यपि ये अन्नदाता कृषि कानून को वापस लिये जाने पर अड़े हैं तथा इसके लिए केंद्र सरकार पर अनेकों प्रकार से दबाव बना रहे हैं जिसमें देश के कुछ प्रमुख तथाकथित बुद्धिजावियों के साथ लगभग सभी प्रमुख विपक्षी राजनीतिक दल और चीन समर्थित माओवादी कम्युनिस्ट पार्टियां तथा लंदन से खालिस्तान समर्थक उग्रवादी संगठन भी भरपूर समर्थन दे रहे हैं जो अखंड भारत के भीतर एक स्वतंत्र पंजाब/खालिस्तान देश का सपना संजोए बैठे हैं। निश्चय ही इन अन्नदाताओं ने अपने निहित स्वार्थों के लिए संपूर्ण देश के बहुसंख्यक सामान्य किसानों को बुरी तरह से भ्रमित करके डरा दिया है क्योंकि इनके लिए राष्ट्रहित का कोई महत्व नहीं है, अन्यथा किसानों के आंदोलन में इन सभी विघटनकारी तत्वों का क्या काम है। यद्यपि कृषि कानून में उल्लिखित विभिन्न सकारात्मक प्रावधानों के महत्व को ये अन्नदाता मौन रूप से स्वीकार कर रहे हैं तथापि अपने संकीर्ण स्वार्थों की निर्बाध पूर्ति के लिए ये इन सभी महत्वपूर्ण किसान-हितकारी उपबंधों की उपेक्षा कर रहे हैं जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम0एस0पी0) की गारंटी के साथ ही किसानों को अपनी फसल को देश के किसी भी स्थान पर बेचे जाने की छूट दी गयी है तथा मंडियों में फैले भ्रष्टाचार से उन्हें बचाने का प्रयास भी किया गया है। संभवतः अपने इन तुच्छ स्वार्थों एवं संकीर्ण उद्देश्यों के चलते तथा इस आंदोलन के देश विरोधी और विघटनकारी-आतंकवादी तत्वों के हाथों में पड़ जाने के कारण इन आंदोलनकारी किसान नेताओं में उत्पन्न निराशा साफ दिखायी दे रही है।
वास्तव में देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में भारत शांतिपूर्ण तरीके से जिस तरह तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है उससे संपूर्ण विश्व अचंभित है परंतु देश के भीतर तथा विदेश में बैठे इन कट्टर राष्ट्रविरोधी ताकतों को अच्छा नहीं लग रहा है। विश्व के सभी प्रमुख राष्ट्राध्यक्ष या शासनाध्यक्ष यथा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एवं फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन तथा आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू एवं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन आदि सभी प्रमुख नेतागण प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली से अत्यंत प्रभावित हैं। यह प्रधानमंत्री मोदी की विश्व में बढ़ती हुई लोकप्रियता की स्वीकारोक्ति ही है कि अनेक प्रमुख देश उन्हें अपने-अपने सर्वोच्च राजकीय सम्मान से सम्मानित कर चुके हैं।
वर्तमान कोरोना की विश्वव्यापी महामारी के दौर में देश के प्रधानमंत्री ने जिस सूझ-बूझ का परिचय देते हुए सभी देशवासियों की सुरक्षा एवं उनके जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सारे व्यापक उपाय किए उसकी न केवल देश में बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी वैश्विक संस्था तथा विभिन्न देशों द्वारा कई प्रमुख मंचों पर भूरि-भूरि प्रशंसा की गई। कोविड-19 के कठिन दौर में भी जब पड़ोसी देश चीन ने अत्यंत शर्मनाक विश्वासघात करते हुए भारत-चीन सीमा, (एल0ए0सी0) पर देश में अनेक स्थानों पर घुसपैठ करने की कोशिश की, उसका अत्यंत साहसपूर्वक ढंग से सामना करते हुए भारतीय सेना प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बीजिंग को जिस तरह से मुँहतोड़ जवाब दे रही है उससे चीन बेहद परेशान हो चुका है तथा उसके कारण चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को न केवल विश्व में बल्कि अपने देश में भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। समग्रतः विश्व में भारत की तेजी से उभरती सशक्त छवि देशविरोधी शक्तियों के लिए एक बहुत बड़ी परेशानी का कारण बन चुकी है। अतः ये सब, जिनमें देश के भीतर सक्रिय टुकडे-टुकड़े गैंग की प्रभावी भूमिका रहती है, केवल मौके की तलाश में रहते हैं कि कैसे भारत को एक बार पुनः अस्थिर तथा विखंडित किया जाए। किसानों के इस आंदोलन ने इन्हें पुनः एक मौका दे दिया है।
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ऐसे चिंताजनक परिदृश्य में यद्यपि देश की सर्वोच्च अदालत ने इस कानून पर रोक लगा कर केंद्र सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच चले आ रहे लंबे टकराव पर विराम लगाने का प्रयास तो किया है और समाधान निकालने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है परंतु एक सदस्य द्वारा समिति में शामिल न होने के फैसले से आगे की कार्यवाही प्रभावित हो सकती है और विलंब हो सकता है। इसी असमंजस के बीच इन आंदोलनकारी किसानों द्वारा देश के आगामी गणतंत्र दिवस 26 जनवरी पर विशाल ट्रैक्टर जुलूस निकालने की चेतावनी दोनों पक्षों के बीच तनाव को बढ़ाने का काम करेगी। अंततोगत्वा सरकार तथा आंदोलनकारी किसानों को ही इस समस्या का हल खोजना होगा जो दोनों के बीच बातचीत से ही निकल सकता है। लेकिन इसके लिए इन किसान आंदोलनकारियों को अपने बीच से स्वार्थी किस्म के छद्म नेताओं तथा विघटनकारी तत्वों को हटाना होगा क्योंकि तभी दोनों के बीच सार्थक वार्तालाप हो सकेगा और दोनों पक्षों को स्वीकार्य हल निकल सकेगा, जो अब तक की कई दौर की वार्ता के सम्पन्न होने पर भी नहीं निकल सका। साथ ही देश के संपूर्ण जनता-जर्नादन अर्थात् हम भारत के लोग को भी जाति, धर्म, भाषा, समुदाय, क्षेत्र आदि जैसे संकीर्ण विचारों से ऊपर उठना चाहिए तथा किसान आंदोलन के नाम पर अपने तुच्छ हितों की रक्षा करने वाले इन स्वार्थी और देश विरोधी किसान नेताओं एवं असामाजिक तत्वों तथा कट्टर राष्ट्रविरोधी-विघटनकारी एवं खालिस्तान समर्थक उग्रवादी संगठनों को अलग-थलग कर देना चाहिए जिससे देश की अखंडता तथा राष्ट्रहित और मानव संस्कृति की रक्षा हो सके तथा समाज में शांति एवं सुरक्षा की स्थापना के साथ ही सामाजिक समरसता भी कायम की जा सके। ऐसा हो सकता है क्योंकि मानव उद्यम से परे कुछ नहीं होता है।
-प्रो. सुधांशु त्रिपाठी
आचार्य
उप्र राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।
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- प्रहलाद सबनानी
- जनवरी 15, 2021 12:32
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भारत में सनातन धर्म का गौरवशाली इतिहास पूरे विश्व में सबसे पुराना माना जाता है। कहते हैं कि लगभग 14,000 विक्रम सम्वत् पूर्व भगवान नील वराह ने अवतार लिया था। नील वराह काल के बाद आदि वराह काल और फिर श्वेत वराह काल हुए।
पूज्य भगवान श्रीराम हमें सदैव ही मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में दिखाई देते रहे हैं। पूरे विश्व में भारतीय नागरिकों को प्रभु श्रीराम के वंशज के रूप में जानने के कारण, आज दुनियाभर में हर भारतीय की यही पहचान भी बन गयी है। लगभग हर भारतीय न केवल “वसुधैव कुटुंबकम”, अर्थात् इस धरा पर निवास करने वाला हर प्राणी हमारा परिवार है, के सिद्धांत में विश्वास करता है बल्कि आज लगभग हर भारतीय बहुत बड़ी हद तक अपने धर्म सम्बंधी मर्यादाओं का पालन करते हुए भी दिखाई दे रहा है। भारत में भगवान श्रीराम धर्म एवं मर्यादाओं के पालन करने के मामले में मूर्तिमंत स्वरूप माने जाते हैं। इस प्रकार वे भारत की आत्मा हैं।
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विशेष रूप से आज जब पूरे विश्व में आतंकवाद अपने पैर पसार रहा है एवं जब विकसित देशों में भौतिकवादी विकास सम्बंधी मॉडल के दुष्परिणाम, लगातार बढ़ रही मानसिक बीमारियों के रूप में दिखाई देने लगे हैं, ऐसे में पूरा विश्व ही आज भारत की तरफ़ आशा भरी नज़रों से देख रहा है कि ऐसे माहौल में केवल भारतीय संस्कृति ही विश्व को आतंकवाद से मुक्ति दिलाने में सहायक होगी एवं भारतीय आध्यात्मवाद के सहारे मानसिक बीमारियों से मुक्ति भी सम्भव हो सकेगी। इसी कारण से आज विशेष रूप से विकसित देशों यथा, जापान, रूस, अमेरिका, दक्षिणी कोरीया, फ़्रान्स, जर्मनी, इंग्लैंड, कनाडा, इंडोनेशिया आदि अन्य देशों की ऐसी कई महान हस्तियां हैं जो भारतीय सनातन धर्म की ओर रुचि लेकर, इसे अपनाने की ओर लगातार आगे बढ़ रही हैं।
भारत में सनातन धर्म का गौरवशाली इतिहास पूरे विश्व में सबसे पुराना माना जाता है। कहते हैं कि लगभग 14,000 विक्रम सम्वत् पूर्व भगवान नील वराह ने अवतार लिया था। नील वराह काल के बाद आदि वराह काल और फिर श्वेत वराह काल हुए। इस काल में भगवान वराह ने धरती पर से जल को हटाया और उसे इंसानों के रहने लायक़ बनाया था। उसके बाद ब्रह्मा ने इंसानों की जाति का विस्तार किया और शिव ने सम्पूर्ण धरती पर धर्म और न्याय का राज्य क़ायम किया। सभ्यता की शुरुआत यहीं से मानी जाती है। सनातन धर्म की यह कहानी वराह कल्प से ही शुरू होती है। जबकि इससे पहले का इतिहास भी भारतीय पुराणों में दर्ज है जिसे मुख्य 5 कल्पों के माध्यम से बताया गया है। यदि भारत के इतने प्राचीन एवं महान सनातन धर्म के इतिहास पर नज़र डालते हैं तो पता चलता है कि हिन्दू संस्कृति एवं सनातन वैदिक ज्ञान वैश्विक आधुनिक विज्ञान का आधार रहा है। इसे कई उदाहरणों के माध्यम से, हिन्दू मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए, समय-समय पर सिद्ध किया जा चुका है। सनातन वैदिक ज्ञान इतना विकसित था, जिसके मूल का उपयोग कर आज के आधुनिक विज्ञान के नाम पर पश्चिमी देशों द्वारा वैश्विक स्तर पर फैलाया गया है। दरअसल, सैंकड़ों सालों के आक्रमणों और ग़ुलामी ने हमें सिर्फ़ राजनीतिक रूप से ही ग़ुलाम नहीं बनाया बल्कि मानसिक रूप से भी हम ग़ुलामी की ज़ंजीरों में जकड़े गए। अंग्रेज़ों के शासन ने हमें हमारी ही संस्कृति के प्रति हीन भावना से भर दिया। जबकि हमारे ही ज्ञान का प्रयोग कर वे संसार भर में विजयी होते रहे और नाम कमाते रहे। अब ज़रूरत है कि हम अपनी इस सांस्कृतिक धरोहर को जानें और इस पर गर्व करना भी सीखें।
इसी क्रम में पूरे विश्व में निवास कर रहे हिन्दू सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जिनके नाम से आज विश्व में भारत की पहचान होती है, का एक भव्य मंदिर भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में बनाया जाना शाश्वत प्रेरणा के साथ-साथ एक आवश्यकता भी माना जाना चाहिए। चूंकि बाबर एवं मीर बाक़ी नामक आक्रांताओं ने भगवान श्रीराम के मंदिर का विध्वंस कर उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण कर लिया था अतः पुनः इस स्थान को मुक्त कराने हेतु प्रभु श्रीराम के भक्तों को 492 वर्षों तक लम्बा संघर्ष करना पड़ा है। अतीत के 76 संघर्षों में 4 लाख से अधिक रामभक्तों ने बलिदान दिया है एवं लगभग 36 वर्षों के सुसूत्र श्रृंखलाबद्ध अभियानों के फलस्वरूप सम्पूर्ण समाज ने लिंग, जाति, वर्ग, भाषा, सम्प्रदाय, क्षेत्र आदि भेदों से ऊपर उठकर एकात्मभाव से श्रीराम मंदिर के लिए अप्रतिम त्याग और बलिदान किया है। अंततः उक्त बलिदानों के परिणामस्वरूप 9 नवम्बर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि पर अनुसूचित समाज के बन्धु श्री कामेश्वर चौपाल ने पूज्य संतों की उपस्थिति में शिलान्यास सम्पन्न किया था। परंतु, प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर निर्माण करने हेतु ज़मीन के स्वामित्व सम्बंधी क़ानूनी लड़ाई अभी भी ख़त्म नहीं हुई थी। इस प्रकार आस्था का यह विषय न्यायालयों की लम्बी प्रक्रिया (सत्र न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय तक) में भी फंस गया था। अंत में, पौराणिक-साक्ष्यों, पुरातात्विक-उत्खनन, राडार तरंगों की फ़ोटो प्रणाली तथा ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर उच्चतम न्यायालय की 5 सदस्यीय पीठ ने 9 नवम्बर 2019 को सर्व सम्मति से एकमत होकर निर्णय देते हुए कहा “यह 14000 वर्गफीट भूमि श्रीराम लला की है।” इस प्रकार सत्य की प्रतिष्ठा हुई, तथ्यों और प्रमाणों के साथ श्रद्धा, आस्था और विश्वास की विजय हुई। तत्पश्चात, भारत सरकार ने 5 फ़रवरी 2020 को “श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र” नाम से न्यास का गठन कर अधिग्रहीत 70 एकड़ भूमि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र को सौंप दी। तदुपरांत 25 मार्च, 2020 को श्री राम लला तिरपाल के मन्दिर से अपने अस्थायी नवीन काष्ठ मंदिर में विराजमान हुए।
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अंततः 5 अगस्त 2020 को सदियों के स्वप्न-संकल्प सिद्धि का वह अलौकिक मुहूर्त उपस्थित हुआ। जब पूज्य महंत नृत्य गोपाल दास जी सहित देश भर की विभिन्न आध्यात्मिक धाराओं के प्रतिनिधि पूज्य आचार्यों, संतों, एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत जी के पावन सानिध्य में भारत के जनप्रिय एवं यशस्वी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भूमि पूजन कर मंदिर निर्माण का सूत्रपात किया। इस शुभ मुहूर्त में देश के 3000 से भी अधिक पवित्र नदियों एवं तीर्थों का जल, विभिन्न जाति, जन जाति, श्रद्धा केंद्रों तथा बलिदानी कार सेवकों के घर से लायी गई रज (मिट्टी) ने सम्पूर्ण भारत वर्ष को आध्यात्मिक रूप से “भूमि पूजन” में उपस्थित कर दिया था।
भारत में पूज्य संतों ने यह भी आह्वान किया है कि श्रीराम जन्म भूमि में भव्य मंदिर बनने के साथ-साथ जन-जन के हृदय मंदिर में श्रीराम एवं उनके नीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा हो। श्रीराम 14 वर्षों तक नंगे पैर वन वन घूमे, समाज के हर वर्ग तक पहुंचे। उन्होंने वंचित, उपेक्षित समझे जाने वाले लोगों को आत्मीयता से गले लगाया, अपनत्व की अनुभूति कराई, सभी से मित्रता की। जटायु को भी पिता का सम्मान दिया। नारी की उच्च गरिमा को पुनर्स्थापित किया। असुरों का विनाश कर आतंकवाद का समूल नाश किया। राम राज्य में परस्पर प्रेम, सद्भाव, मैत्री, करुणा, दया, ममता, समता, बंधुत्व, आरोग्य, त्रिविधताप विहीन, सर्वसमृद्धि पूर्ण जीवन सर्वत्र था। अतः हम सभी भारतीयों को मिलकर पुनः अपने दृढ़ संकल्प एवं सामूहिक पुरुषार्थ से पुनः एक बार ऐसा ही भारत बनाना है।
इस प्रकार प्रभु श्रीराम की जन्म स्थली अयोध्या में केवल एक भव्य मंदिर बनाने की परिकल्पना नहीं की गई है। भव्य मंदिर के साथ-साथ विशाल पुस्तकालय, संग्रहालय, अनुसंधान केंद्र, वेदपाठशाला, यज्ञशाला, सत्संग भवन, धर्मशाला, प्रदर्शनी, आदि को भी विकसित किया जा रहा है, ताकि आज की युवा पीढ़ी को प्रभु श्रीराम के काल पर अनुसंधान करने में आसानी हो। इसे राष्ट्र मंदिर इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि यहां आने वाले हर व्यक्ति को यह मंदिर भारतीय सनातन संस्कृति की पहचान कराएगा। पूरे विश्व में यह मंदिर हिन्दू सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए आस्था का केंद्र बनने जा रहा है अतः यहां पूरे विश्व से सैलानियों का लगातार आना बना रहेगा। यह मंदिर पूरे विश्व में हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए एक महत्वपूर्ण आस्था का केंद्र बनने के साथ-साथ पर्यटन के एक विशेष केंद्र के रूप में भी विकसित होने जा रहा है, इसलिए प्रभु श्रीराम की कृपा से करोड़ों व्यक्तियों की मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ-साथ लाखों लोगों को रोज़गार के अवसर भी प्रदत्त होंगे।
-प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत उप-महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
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