चौथे चरण के बाद रूहेलखंड−बुंदेलखंड और सेन्ट्रल यूपी बनेगा चुनावी अखाड़ा

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अजय कुमार । Apr 12 2019 2:39PM

राज्य की राजधानी लखनऊ से लगे जिला सीतापुर की कुल वोटरः 17.79 लाख वोटरों वाली मिश्रिख सुरक्षित सीट पर भाजपा 1996 में राम लहर के बाद 2014 में मोदी लहर में जीती थी। इस बार भाजपा ने अपनी मौजूदा सांसद अंजू बाला का टिकट काटकर पिछले चुनाव में बसपा से दूसरे नंबर पर रहे अशोक रावत को मौका दिया है।

उत्तर प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों पर चौथे चरण में 29 अप्रैल को मतदान होना है। चौथा चरण इस लिहाज से महत्वपूर्ण है क्योंकि इस चरण में चुनाव फोकस पश्चिमी यूपी से खिसक कर रुहेलखंड, मध्य यूपी और बुंदेलखंड तक में पहुंच रहा है। चौथे चरण में शाहजहांपुर, हरदोई, कानपुर, इटावा, उन्नाव, फर्रूंखाबाद, झांसी, खीरी, जालौन, मिश्रिख, हमीरपुर, कन्नौज और अकबरपुर लोकसभा सीटों पर मतदान होना है, 2014 में मतदान वाली 13 सीटों में से 12 सीटें भाजपा के कब्जे में रही थीं। मात्र कन्नौज संसदीय सीट ही ऐसी है जिस पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव चुनाव जीती थीं। अबकी बार सपा−बसपा गठबंधन में यहां 07 सीटों पर समाजवादी पार्टी और 06 सीटों पर बसपा प्रत्याशी मैदान में है। कई सीटों पर कांग्रेस की मजबूत नुमांइदगी ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। चौथे चरण में जिन दिग्गजों के भाग्य का फैसला होना है, उसमें सपा से डिंपल यादव, अरूण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना, कांग्रेस से सलमान खुर्शीद, श्रीप्रकाश जायसवाल, जफर अली नकवी, अन्नू टंडन, भाजपा के सत्यदेव पचौरी, साक्षी महाराज मुख्य हैं।

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बात क्रमवार 13 संसदीय सीट पर चुनाव की कि जाए तो मुलायम के गृह जिले से सटी इटावा लोकसभा क्षेत्र में करीब 17.39 लाख वोटर हैं। 2104 में सपा के गण में भाजपा का कब्जा हो गया था। इस सीट की महत्ता को समझना हो तो यहां से कांशीराम भी सांसद रह चुके हैं। भाजपा ने इस सीट पर जीत का सिलसिला बनाए रखने के लिए अपने मौजूदा सांसद अशोक दोहरे का टिकट काटकर आगरा के सांसद रामशंकर कठेरिया पर दांव लगाया है। सपा ने पूर्व सांसद प्रेमदास कठेरिया के बेटे कमलेश कठेरिया को मैदान में उतारा है। वहीं, अशोक दोहरे टिकट कटने पर कांग्रेस के सिंबल पर मैदान में हैं। ऐसे में यह सेंधमारी भाजपा को भारी पड़ सकती है। 2014 में भाजपा के वोट व सपा−बसपा के कुल वोट लगभग बराबर थे। इस सीट पर राजपूत, यादव और शाक्य समुदाय की काफी भागीदारी है। करीब 7−8 प्रतिशत मुस्लिम हैं। भाजपा को जहां राजपूतों−शाक्यों के साथ का भरोसा है, वहीं यादव−मुस्लिम सपा−बसपा गठबंधन की गणित मजबूत करते दिख रहे हैं।

राज्य की राजधानी लखनऊ से लगे जिला सीतापुर की कुल वोटरः 17.79 लाख वोटरों वाली मिश्रिख सुरक्षित सीट पर भाजपा 1996 में राम लहर के बाद 2014 में मोदी लहर में जीती थी। इस बार भाजपा ने अपनी मौजूदा सांसद अंजू बाला का टिकट काटकर पिछले चुनाव में बसपा से दूसरे नंबर पर रहे अशोक रावत को मौका दिया है। अशोक 2004 और 2009 में सांसद रहे थे। उन्होंने इस बार पाला बदल दिया है। बसपा ने नीलू सत्यार्थी को मैदान में उतारा है जो बालामऊ से विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं। वहीं कांग्रेस ने भाजपा विधायक सुरेश राही की भाभी मंजरी राही को टिकट दिया है। यहां अति पिछड़ा वोट अहम है।

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कानपुर संसदीय सीट कुल 15.97 लाख वोटरों वाले पूरब के मैनेचेस्टर कानपुर में सियासी हवा काफी बदली−बदली नजर आती रही हैं। यहां की जनता ने कम्युनिस्टों, कांग्रेस व भाजपा सबको जीत का मौका दिया है। हॉ, सपा, बसपा का यहां कभी खाता नहीं खुला। अपने राष्ट्रपति का यह गृह जनपद है। भाजपा ने यहां के मौजूदा सांसद और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बुजुर्ग मुरली मनोहर जोशी को टिकट नहीं देकर योगी सरकार के बुजुर्ग मंत्री सत्यदेव पचौरी पर दांव लगाया है। गठबंधन में सपा की ओर से राम कुमार उम्मीदवार हैं। कांग्रेस से यहां तीन बार के सांसद श्रीप्रकाश जायसवाल को उम्मीदवार बनाया हैं जो 2004 में नजदीकी मुकाबले में सत्यदेव पचौरी को हरा चुके हैं। कानपुर में समाजवादी पार्टी कमजोर दिख रहा है। यहां भाजपा व कांग्रेस की सीधी टक्कर बताई जा रही है। इस सीट पर 35 प्रतिशत वोट ब्राह्मण, बनिया, ठाकुरों का है। कोई मुस्लिम प्रत्याशी न होने के चलते लगभग 15 से 18 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों को कांग्रेस के पक्ष में जाने का अनुमान है क्योंकि सपा यहां कमजोर नजर आ रही है। 

आलू बेल्ट वाली फर्रुखाबाद लोकसभा सीट की नुमांइदगी कभी समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया किया करते थे। भाजपा ने सांसद मुकेश राजपूत को पुनः मैदान में उतारा है। पिछली बार इस सीट पर सपा दूसरे नंबर पर थी। इस बार गठबंधन में यह सीट बसपा के खाते में गई है। बसपा ने मनोज अग्रवाल को टिकट दिया है। यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता सलमान खुर्शीद पर फिर अपनी किस्मत अजमा रहे हैं। फिलहाल यहां लड़ाई त्रिकोणीय है। त्रिकोणीय लड़ाई में अपने कोर वोटरों को सहेजने से ही बात बननी है। 2014 में यहां भाजपा को सपा−बसपा के कुल वोटों से भी अधिक वोट मिले थे जबकि करीब 95 हजार वोटों के साथ सलमान खुर्शीद यहां चौथे नंबर पर रहे थे। इस सीट पर करीब 16 फीसदी दलित और 14 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। राजपूत, लोध और यादव वोटरों की संख्या भी यहां काफी है। ऐसे में कांग्रेस व सपा−बसपा गठबंधन में वोटों के विभाजन का खतरा बना हुआ है। यहां कुल 16.88 लाख वोटर हैं।

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दिग्गज नेता नरेश अग्रवाल की प्रतिष्ठा वाली हरदोई सुरक्षित सीट (कुल वोटरः 17.94 लाख) पर लड़े कोई लेकिन यहां पर सपा छोड़कर भाजपा में आए नरेश अग्रवाल की प्रतिष्ठा हमेशा दांव पर रहती है। यही वजह है भाजपा ने अपनी मौजूदा सांसद अंशुल वर्मा का टिकट काटकर नरेश के करीबी जयप्रकाश रावत को उम्मीदवार बनाया है। जयप्रकाश यहां दो बार भाजपा के और 1999 में नरेश अग्रवाल की लोकतांत्रिक कांग्रेस से सांसद रहे हैं। सपा उम्मीदवार ऊषा वर्मा भी तीन बार सांसद रह चुकी हैं। पिछली बार 2.76 लाख वोट पाकर वह तीसरे नंबर पर रही थीं। इस बार उन्हें बसपा का तो साथ है ही, भाजपा के मौजूदा सांसद अंशुल वर्मा भी सपा में आ चुके हैं। वहीं, कांग्रेस ने पूर्व विधायक वीरेंद्र वर्मा को टिकट दिया है। वह बसपा, सपा से टिकट नहीं मिलने के बाद कांग्रेस में आए थें। ऐसे में यह सीट दल−बदलुओं की प्रयोगशाला भी है। फिलहाल इस सुरक्षित सीट पर ब्राह्मण, ओबीसी व मुस्लिम वोटरों की तादात अच्छी है। यही कारण है कि नरेश अग्रवाल के बोल लगातार सांप्रदायिक हैं जिससे धु्रवीकरण की जमीन बनाई जा सक

शाहजहांपुर सुरक्षित सीट (कुल वोटरः 20.97 लाख) पर जीत का स्वाद कांग्रेस, सपा व भाजपा तीनों ने चखा है। कांग्रेस के दिग्गज नेता जितेंद्र प्रसाद यहां से चार बार सांसद रहे। 2004 में उनके बेटे जितिन प्रसाद भी जीत कर संसद पहुंचे। 2009 में परिसीमन के बाद यह सीट सुरक्षित हुई तो पहले सपा जीती और उस समय तीसरे नंबर पर रहीं कृष्णाराज 2014 में भाजपा से सांसद बनीं। इस सीट से भाजपा दो बार जीती और जीतने वाले दोनों ही नेता केंद्रीय मंत्री बने। फिलहाल इस सुरक्षित सीट पर मुस्लिम और ओबीसी वोटरों की भूमिका निर्णायक है। गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर बसपा ने यहां अमर चंद्र जौहर को उतारा है जो चुनाव मैदान में नए हैं। भाजपा ने केंद्रीय मंत्री कृष्णाराज का टिकट काटकर बसपा से ही आए अरुण सागर को उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में घर के भीतर की नाराजगी भी भाजपा के लिए चुनौती है। योगी सरकार के वरिष्ठ मंत्री सुरेश खन्ना की प्रतिष्ठा भी यहां दांव पर लगी है क्योंकि लोकसभा में यहां पार्टी का चेहरा बदले जाने में उनकी भी अहम भूमिका बताई जा रही है। 

अकबरपुर लोकसभा सीट (कुल वोटरः 17.30 लाख) पर भाजपा के सामने जीत दोहराने की चुनौती है। यहां इस बार फिर भाजपा ने भोले पर दांव लगाया है और गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर बसपा के टिकट पर निशा सचान की दावेदारी है। इस सीट पर पिछड़े वर्ग के वोटरों की अधिक संख्या होने के चलते कांग्रेस व गठबंधन दोनों ने ही पिछड़ों पर दांव लगाया है। शिवपाल यादव की प्रसपा ने कानपुर ग्रामीण के सपा जिलाध्यक्ष रहे महेंद्र सिंह यादव को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने ठाकुर उम्मीदवार उतारा है जिसकी बिरादरी के करीब डेढ़ लाख वोट यहां है। महत्वपूर्ण यह है कि अकबरपुर में 3 लाख से अधिक ब्राह्मण वोटर हैं। इनकी भूमिका निर्णायक होगी।

हमीरपुर लोकसभा सीट( कुल वोटरः 17.38 लाख) से भाजपा ने फिर सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल को मैदान में उतारा है, जबकि बसपा ने एकदम नए चेहरे दिलीप सिंह पर दांव लगाया है। कांग्रेस से एक बार फिर प्रीतम सिंह लोधी मैदान में है। भाजपा को इस सीट पर पिछली बार सपा−बसपा के कुल वोटों से भी 90 हजार वोट अधिक मिले थे। यहां के बड़े चेहरे चाहे वह गंगाचरण राजपूत हों या बसपा से सांसद रहे अशोक सिंह चंदेल हो इस सयम सब भाजपा के पाले में हैं। हालांकि, सपा−बसपा का स्वाभाविक जातीय समीकरण भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ा रहा है।

बुंदलेखंड की जालौन संसदीय सीट (कुल वोटरः 19.17 लाख) पर भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद भानु प्रताप वर्मा पर फिर विश्वास जाताया है। भानु यहां से चार बार सांसद रह चुके हैं। बसपा ने पूर्व विधायक अजय सिंह पंकज को टिकट दिया है। गठबंधन की मुश्किल पूर्व बसपाई ब्रजलाल खाबरी बढ़ा रहे हैं। पिछली बार दूसरे नंबर पर रहे खाबरी 1999 में सांसद भी थे। इस बार वह कांग्रेस के टिकट से लड़ रहे हैं। इस सुरक्षित सीट पर सवर्ण मतदाता करीब 5 लाख है, जबकि अति पिछड़े वोटर भी प्रभावी हैं।

कन्नौज लोकसभा सीट (कुल वोटर 18.55 लाख) पर करीब 23 साल से सपा का कब्जा है, लेकिन 2014 में बड़ी मुश्किल सपा यहां से जीत पाई थी। डिंपल यादव मात्र 19 हजार वोटों से ही भाजपा के सुब्रत पाठक से चुनाव जीती थीं। 2009 में यहां से अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव जीता था। बाद में यूपी का सीएम बनने के बाद जब अखिलेश ने यह सीट छोड़ी तो अपनी पत्नी डिंपल यादव को प्रत्याशी बनाया था। वह चुनाव जीत भी गई थीं। इस बार सपा के लिए राहत की स्थिति यहां बसपा का उसके साथ है तो कांग्रेस ने डिंपल को वॉकओवर देते हुए अपना प्रत्याशी यहां से नहीं उतारा है। यहां कुल वोटरों में यादव, दलित व मुस्लिमों की संख्या 40 फीसदी से अधिक है। हालांकि, सपा−बसपा के इन परंपरागत वोटरों में भाजपा की भी पैठ है। पिछली बार बसपा से लड़े निर्मल तिवारी भी इस बार भाजपा के पाले में हैं।

उन्नाव लोकसभा सीट(कुल वोटरः 21.77 लाख) सपने दिखाने और तोड़ने के लिए जानी जाती है। भाजपा ने मौजूदा सांसद साक्षी महाराज को दोबारा प्रत्याशी बनाया हैं। कहा जाता है कि बीजेपी हाईकमान ने साक्षी का टिकट काटने का मन बना लिया था, लेकिन उनके बगावती तेवरों को देखते हुए बीजेपी ने अपना इरादा बदल दिया। कांग्रेस से 2009 में सांसद रही अन्नू टंडन इस बार भी पंजे के सहारे मैदान में हैं। सपा ने पूजा पाल का टिकट काटकर अरुण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना महाराज को उम्मीदवार बनाया है। अन्ना 2009 में बसपा और 2014 में सपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन कभी चुनाव जीत नहीं पाए। साक्षी महाराज ने जातीय समीकरण गिनाकर भाजपा को धमकाया था कि उन्हें टिकट नहीं मिला तो पार्टी सीट हार जाएगी। इस सीट पर दलित और ओबीसी वोटों की बहुतायत है। खासकर अति पिछड़ा वोटरों की तादाद काफी है। 2014 में साक्षी को सपा−बसपा के कुल वोटरों से 1.21 लाख वोट अधिक मिले थे। उन्हें त्रिकोणीय लड़ाई का भी फायदा मिला था। इस बार भी लड़ाई त्रिकोणीय है। ऐसे में वोटों के बंटवारे में भाजपा की उम्मीद छिपी है।

झांसी संसदीय सीट( कुल वोटरः 20.15 लाख) पर इस बार माहौल बदला हुआ है।इस बार बीजेपी की फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती मैदान में नहीं हैं। उन्होने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। उनके इंकार के बाद भाजपा ने पूर्व सांसद विश्वनाथ शर्मा के बेटे अनुराग शर्मा को टिकट दिया है। गठबंधन में सपा ने पूर्व एमएलसी श्याम सुंदर यादव को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि उनके धुर विरोधियों में शामिल राज्यसभा सांसद चंद्रपाल सिंह यादव भी दावेदार थे। ऐसे में सपा को आंतरिक घमासान का नुकसान उठाना पड़ सकता है। चंद्रपाल ने उमा भारती के खिलाफ 3.80 लाख वोट हासिल किए थे। पिछली बार बसपा से चुनाव लड़कर 2.13 लाख वोट पाने वाली अनुराधा शर्मा भी भाजपा प्रत्याशी के नामांकन में दिखाई दी थीं। कांग्रेस ने यह सीट गठबंधन के तहत जनाधिकारी पार्टी के बाबू सिंह कुशवाहा के लिए छोड़ दी है। पूर्व बसपा नेता कुशवाहा ने अपने भाई शिवशरण को टिकट दिया है। यहां ब्राह्मण, दलित, लोध, कुशवाहा व यादव की अच्छी संख्या है। इसलिए यादव−दलितों का फायदा गठबंधन को मिल सकता है।

लखीमपुरखीरी लोकसभा सीट (कुल वोटर 17.57 लाख) सीट की पहचान अवध के तराई बेल्ट की सीट के रूप में होती है। 2014 में मोदी लहर में करीब 18 साल बाद यह सीट भाजपा ने जीती थी। बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद अजय मिश्र टेनी पर दोबारा भरोसा जताया है। इस सीट पर ब्राह्मण वोटरों की अच्छी संख्या है लेकिन पिछड़े खासकर कुर्मी वोट निर्णायक भूमिका में रहते हैं। सपा−बसपा गठबंधन ने यहां से सपा की पूर्वी वर्मा को उम्मीदवार बनाया है, जिनके दादा−दादी और पिता 10 बार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। बसपा के साथ आने से उनकी दावेदारी और मजबूत दिखती है। वहीं, कांग्रेस ने अपने पुराने चेहरे जफर नकवी को उम्मीदवार बनाया है। 2009 में यहां सांसद रहे जफर 2014 में 1.84 लाख वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे। जफर से कांग्रेसी चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

- अजय कुमार

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