सवालों में अखिलेश का विष्णु मंदिर, हरि को पूजते हैं तो श्रीराम का विरोध क्यों?

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रेनू तिवारी । Aug 25 2018 6:58PM

2019 के लोक सभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक पार्टियां मंदिर के नाम राजनीति में लगी हैं। बाजेपी के नेता जहां राम मंदिर पर राग -अलाप रहे हैं वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मंदिर-मंदिर मत्था टेक रहे हैं।

2019  के लोक सभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक पार्टियां मंदिर के नाम राजनीति में लगी हैं। बाजेपी के नेता जहां राम मंदिर पर राग -अलाप रहे हैं वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मंदिर-मंदिर मत्था टेक रहे हैं। ऐसे में भला समाजवादी पार्टी कैसे पीछे होती। इस बार अखिलेश यादव ने भी मंदिर कार्ड खेला है- जी हां समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भगवान विष्णु का भव्य मंदिर बनवाने का ऐलान किया है। अखिलेश ने कहा अगर उनकी पार्टी वापस सत्ता में आई तो यूपी के इटावा 2000 एकड़ में भगवान विष्णु के नाम पर एक शानदार शहर बसाया जाएगा। इस शहर में भगवान विष्णु का एक भव्य मंदिर भी होगा। ये भगवान विष्णु का मंदिर कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर की तर्ज पर होगा। अखिलेश यादव ने ये भी कहा कि जब ये शहर बसाया जाएगा उससे पहले जानकारो की एक टीम को कंबोडिया भेजा जाएगा ताकि शहर बसाने में तकनीकी जानकारी मिल सके। 

अखिलेश यादव का ये बयान उस वक्त आया जब यूपी के उप- मुख्यमंत्री कैशव प्रसाद मौर्या ने अयोध्या के रान मंदिर का मुद्दा उठाते हुए ये बयान दिया था कि अयोध्या में मंदिर बनाने के लिए कानून भी बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा था कि कोई अन्य विकल्प शेष नहीं रहने पर यह रास्ता अपनाया जा सकता है और संसद के दोनों सदनों में उनकी पार्टी के पास पर्याप्त संख्या बल है।

दूसरी तरफ बीजेपी ने अखिलेश यादव के मंदिर बनाने के फैसले पर व्यंग्य करते हुए कहा कि इटावा में मंदिर बनाना अच्छी बात है लेकिन अयोध्या में इसका विरोध क्यों किया जाता हैं, क्यों अयोध्या में दिवाली मनाने पर विरोधियों के सुर बदल जाते हैं। 

अखिलेश ने आगे कहा कि उन्हें भगवान विष्णु का मंदिर बनवाने के लिए बीजेपी से इजाजत लेने की जरूरत नहीं है। पार्टी के प्रवक्ताओं ने ये भी कहा कि ‘क्या बीजेपी ही मंदिरों का निर्माण करवा सकती है, दूसरी पार्टी के लोग भी हिंदू हैं उनकी भी भगवान में श्रद्धा है। 

अखिलेश यादव हमेशा से बीजेपी के ऊपर धर्म के नाम पर राजनीति का इल्ज़ाम लगाते हैं, अगर कोई दूसरा मंदिर जाए तो जनाब उसे वोटों के ध्रुवीकरण से जोड़कर देखते हैं, लेकिन बात जब खुद के लिए वोट हासिल करने की आई तो साहिब ने भव्य मंदिर बनाने का ऐलान कर दिया। ऐसा कह सकते हैं कि जब चुनावी दंगल में पासा गिरता दिखा तो अखिलेश यादव को हरि की याद आ गई। लेकिन अखिलेश यादव की ये राजनीतिक चाल उन्हें खुद सवालों के घेरे में खड़ा करती है। जनता ये जरूर जानना चाहेगी कि अगर अखिलेश का विश्वास भगवान विष्णु में है तो उन्हीं के रूप भगवान राम के मंदिर बनाने का समाजवादी पार्टी आज तक विरोध क्यों करती आई है। 

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